विजयपुर से उपचुनाव जीतकर मुकेश मल्होत्रा विधायक बन गए हैं। चुनाव के दौरान वे सिलपुरी गांव के सरपंच थे।
मध्यप्रदेश की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में सबसे चौंकाने वाला नतीजा विजयपुर सीट का रहा है। कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा ने वन मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार रामनिवास रावत को 7 हजार से ज्यादा वोटों से मात दी। मुकेश अब विधायक बन गए हैं, मगर चु
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इससे पहले मुकेश ने 2018 और 2023 का विधानसभा चुनाव भी बतौर निर्दलीय लड़ा था। 2018 में उनकी जमानत जब्त हो गई थी लेकिन 2023 के चुनाव में 44 हजार वोट लेकर वे रावत की जीत के सबसे बड़े मददगार रहे थे।
खास बात ये है कि कांग्रेस में आने से पहले मुकेश मल्होत्रा बीजेपी में थे और उन्हें बीजेपी में लाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर ही थे। किस तरह से मुकेश मल्होत्रा ने राजनीति में कदम रखा और कैसे विधायक का चुनाव जीतने में कामयाब रहे…पढ़िए सरपंच के विधायक बनने की कहानी
नरेंद्र सिंह तोमर ही मुकेश को बीजेपी में लाए सहरिया आदिवासी समुदाय से आने वाले मुकेश मल्होत्रा ने अपनी राजनीति की शुरुआत एकता परिषद् से की थी। ग्वालियर चंबल इलाके में एकता परिषद् आदिवासियों के हितों के लिए काम करती है। एकता परिषद के प्रदेश संयोजक डोंगर शर्मा कहते हैं कि 2011 में मुकेश एकता परिषद के साथ जुड़े थे। वे गांव-गांव जाकर समाज की पंचायत करते थे।
साल 2013 में खलाई गांव में समाज की पंचायत हुई थी। 5 हजार लोग जुटे थे। उस पंचायत में पहली बार मुरैना से सांसद बने नरेंद्र सिंह तोमर भी पहुंचे थे। तोमर, मुकेश के भाषण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुकेश को उसी दिन बीजेपी की सदस्यता दिलाई थी।
इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में तोमर ग्वालियर से सांसद चुने गए। मुकेश इसके बाद तोमर के करीबियों में से रहे। साल 2016-17 में तोमर के हस्तक्षेप से ही मुकेश को सहरिया विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन वो इस पद पर ज्यादा वक्त तक काम नहीं कर पाए।
सहरिया विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहते हुए मुकेश मल्होत्रा ने गांव-गांव जाकर आदिवासियों के बीच पैठ बनाई।
2023 में रावत की जीत की वजह बने थे भाजपा के बागी मुकेश 42 साल के मुकेश शुरू से ही सहरिया आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। वे एलएलबी पास हैं। इस नाते कानून की बारीकियों को भी समझते हैं। 2018 में भी वे बीजेपी से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने सीताराम आदिवासी को टिकट दिया।
उस वक्त मुकेश ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें 2500 वोट मिले लेकिन वो क्षेत्र में सक्रिय रहे। बाद में फिर बीजेपी में शामिल हो गए। साल 2023 में उन्होंने एक बार फिर विधायक का टिकट मांगा लेकिन नहीं मिला।
एकता परिषद के अध्यक्ष रणसिंह परमार कहते हैं कि रामनिवास रावत ने इस चुनाव में मुकेश की मदद की थी क्योंकि मुकेश के चुनाव मैदान में होने से उन्हें ही सीधा फायदा होता दिख रहा था। रावत ये चुनाव 18 हजार वोटों के अंतर से जीत गए, मुकेश 44 हजार वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे।
मुकेश की कैसे हुई कांग्रेस में एंट्री जानकार बताते हैं कि कांग्रेस के पास विजयपुर में रामनिवास रावत के बाद कोई दूसरा बड़ा चेहरा नहीं था। जब रावत ने बीजेपी जॉइन की तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने मुकेश को कांग्रेस जॉइन कराने की रणनीति बनाई। 3 मई 2024 को जब लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने मुरैना में रैली की, तब मुकेश ने कांग्रेस जॉइन कर ली।
उनके कांग्रेस जॉइन करने के साथ ही ये तय हो गया था कि उपचुनाव में वे ही कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस की आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में लाने की रणनीति को भांपते हुए बीजेपी ने भी पांसा फेंका। बीजेपी ने विजयपुर से टिकट के दावेदार सीताराम आदिवासी को सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया।
सीताराम आदिवासी ने भी कहा कि वे उपचुनाव के टिकट के दावेदार नहीं है। इस तरह से बीजेपी ने रामनिवास की राह आसान जरूर की, मगर आदिवासी वोटर्स को साध नहीं सकी। मुकेश कांग्रेस की टिकट पर पहली बार में ही सरपंच से सीधे विधायक चुन लिए गए।
एकता परिषद के अध्यक्ष रणसिंह परमार कहते हैं कि मुकेश की जीत सही मायने में आदिवासियों की जीत है। हम सिर्फ यह चाहते थे कि चाहे किसी भी पार्टी से हो, यहां की कमान आदिवासी को मिले।
रामनिवास रावत ने 30 अप्रैल को बीजेपी जॉइन की और मुकेश मल्होत्रा ने ठीक चार दिन बाद 3 मई को कांग्रेस जॉइन कर ली। उस समय लोकसभा चुनाव चल रहे थे।
500 युवाओं के साथ पैदल भोपाल पहुंचे एकता परिषद के अध्यक्ष परमार कहते हैं कि सहरिया आदिवासियों के लिए मुकेश शुरू से लड़ाई लड़ते रहे हैं। 2020 में वे आदिवासी युवाओं के साथ पैदल भोपाल पहुंचे थे। तब उनका मुद्दा था कि युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। उनके पास स्वरोजगार के साधन नहीं है।
उन्होंने जीतो-जोतो अभियान शुरू किया था। वे गांव-गांव जाकर आदिवासियों से कहते थे कि अपनी जमीन पर अपना अधिकार प्राप्त करो। वन भूमि पर अधिकार के लिए भी वे आदिवासियों को जागरूक करते रहे हैं। 2020 में श्योपुर हाईवे पर शबरी माता मंदिर के लिए जमीन आवंटित थी। दबंगों ने खेती कर ली थी। तब मुकेश मल्होत्रा ने इसके लिए लड़ाई लड़ी थी।
मुकेश मल्होत्रा (पीला गमछा ओढ़े) 2020 में आदिवासी युवाओं के हक के लिए पैदल भोपाल पहुंचे थे।
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से बड़ी बढ़त परमार कहते हैं कि विजयपुर विधानसभा सीट दो हिस्सों में बंटी है- बीरपुर और कराहल। बीरपुर रावतों के प्रभाव वाला हिस्सा है। बीरपुर के बूथों से रावत को सिर्फ 7200 वोटों की लीड मिली। 2023 में ये 15 हजार से ज्यादा थी। जब कराहल की काउंटिंग शुरू हुई तो मुकेश ने वोटों का फासला जल्दी दूर कर लिया। इसके बाद आखिरी के 3 राउंड में वो पीछे ही नहीं हुए।
चुनाव के आखिरी दिनों में जिस तरह से आदिवासियों पर हमले हुए, उससे आदिवासी उनके पक्ष में ज्यादा ताकत से लामबंद हो गए। उन्हें इसका फायदा मिला। ग्वालियर अंचल के वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि मुकेश मल्होत्रा जमीन से जुड़े रहे हैं। पिछले चुनाव में भी उन्होंने अपनी ताकत दिखाई थी। मुकेश लंबे समय से आदिवासियों और क्षेत्र के लोगों के लिए काम करते रहे हैं।
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विजयपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर 18 हजार वोटों से जीतने वाले रामनिवास रावत भाजपा के टिकट पर 7 हजार 364 वोटों से चुनाव हार गए। उनकी इस हार के पीछे सबसे बड़ी वजह आदिवासी वोटर्स रहे हैं। दरअसल, चुनाव में आदिवासी वोटर्स ही हार जीत का फैसला करते आए हैं। 2023 के चुनाव में रावत इन्हीं वोटर्स के समर्थन से ही 6वीं बार विधायक बने थे। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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तारीख- 8 जुलाई 2024। स्थान- राजभवन का सांदीपनि हॉल। आवाज गूंजती है- ‘मैं राम निवास रावत.. राज्य मंत्री पद की शपथ लेता हूं..।’
गलती का अहसास होता है, भूल सुधार करते हैं, दोबारा शपथ लेते हैं। दरअसल, राज्य के मंत्री की जगह राज्य मंत्री बोल गए थे। चार महीने बाद विजयपुर के मतदाताओं ने भी भूल सुधार कर अपना मत जाहिर कर दिया है। रावत के लिए उनका सीधा मैसेज – दल आपने बदला है, हमने नहीं। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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