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मुगलों पर विजय की निशानी है रतनगढ़ माता मंदिर: जहर उतार देती है दरबार की मिट्टी; डकैत मानते थे मां को अपना रक्षक – Gwalior News

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विंध्याचल पहाड़ी पर विराजमान मां रतनगढ़ का दरबार।

मध्य प्रदेश में कई चमत्कारिक मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है दतिया का रतनगढ़ माता का मंदिर। इसके चमत्कारों की कहानी दूर-दूर तक फैली हुई है। विंध्याचल पर्वत पर रतनगढ़ देवी का प्रसिद्ध मंदिर विद्यमान है। कहते हैं यहां कि मिट्‌टी या भभूत शरीर पर लगाने भर

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दतिया जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर मर्सेनी (सेंवढ़ा) गांव है। यहां एक मंदिर रतनगढ़ मां का और दूसरा ठीक सामने कुंवर बाबा मंदिर का है। कुंवर बाबा, मां रतनगढ़ देवी के भाई हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन के बाद यदि कुंवर बाबा के दर्शन न किए जाएं तो मां के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते हैं। रतनगढ़ माता मंदिर डकैतों के आराध्य स्थल के रूप में भी विख्यात है। आइए जानते हैं रतनगढ़ वाली माता मंदिर की कहानी…

पहाड़ी पर स्थित मां रतनगढ़ का दरबार। चारों तरफ हरियाली और नदी से घिरा मंदिर।

मंदिर के आसपास बहती है सिंध नदी दतिया स्थित मां रतनगढ़ का मंदिर पहाड़ी पर है। बताते हैं कि कभी यहां किला हुआ करता था। जो कई सौ साल पहले भूमिगत हो गया और उस पर यह मंदिर स्थापित हुआ है। इसके पास से सिंध नदी बहती है, जो दो तरफ से मंदिर को घेरती है। प्रत्येक नवरात्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं।

ये है मां रतनगढ़ की मान्यता स्थानीय लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि रतनगढ़ माता मंदिर की मिट्टी और भभूत में बहुत शक्ति है। जो कोई बीमार यहां की भभूत खाता है, उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं जहरीले जीवों का जहर भी बेअसर हो जाता है।

कुंवर बाबा के दर्शन से सर्पदंश का इलाज कुंवर बाबा के बारे में मान्यता है कि जब वे जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे। इसीलिए जब किसी इंसान को कोई विषैला जीव (सांप, बिच्छु) काट लेता है, तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंधन लगाते हैं। जहर से पीड़ित लोग दिवाली की भाई दूज पर कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करते हैं। लोग कहते हैं कि भाईदूज पर यहां 20 से 25 लाख लोग पहुंचते हैं।

रतनगढ़ माता कभी रतनगढ़ की राजकुमारी हुआ करती थीं।

रतनगढ़ माता कभी रतनगढ़ की राजकुमारी हुआ करती थीं।

मां मांडुला ने जंगल में ली थी समाधि प्रसिद्ध रतनगढ़ माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। ऐसा प्रचलित है कि महाराज रतनसिंह के किले पर कब्जा करने की नीयत से मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 से 1321 के बीच साजिश रची थी। खिलजी ने सेंवढ़ा से रतनगढ़ आने वाला पानी बंद करा दिया था। तब राजकुमारी मांडूला और उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव ने अलाउद्दीन खिलजी के फैसले का कड़ा विरोध किया था।

रतन सिंह की बेटी मांडुला पर भी अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर थी। यही कारण था कि विरोध के बाद खिलजी ने वर्तमान मंदिर रतनगढ़ वाली माता के परिसर में बने किले पर आक्रमण कर दिया। आक्रमणकारियों की बुरी नजर से बचने के लिए राजकुमारी मांडुला ने जंगल में समाधि ले ली और धरती मां से प्रार्थना की, कि वो उन्हें अपनी गोद में स्थान दें।

लोग ऐसा कहते हैं कि धरती में हुई एक दरार में वह समा गई थी। इन्हीं राजकुमारी माडुंला को मां रतनगढ़ वाली माता के रूप में पूजा जाता है। साथ ही मां रतनगढ़ के भाई राजकुमार कुंवर गंगा रामदेव भी युद्ध में शहीद हो गए। इसके बाद इसी मंदिर में कुंवर बाबा के रूप में उनकी भी पूजा की जाने लगी।

छत्रपति शिवाजी ने कराया था मंदिर का निर्माण विंध्याचल पर्वत पर विराजमान मां रतनगढ़ का मंदिर छत्रपति शिवाजी की मुगल साम्राज्य पर विजय की निशानी है। मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था। उस समय शिवाजी को हार मिली थी। तब रतनगढ़ वाली माता और कुंवर बाबा ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास को देवगढ़ के किले में दर्शन दिए थे और शिवाजी को मुगल साम्राज्य से फिर से युद्ध के लिए प्रेरित किया था। मां के आशीर्वाद के बाद शिवाजी ने मुगल सेना से फिर युद्ध किया था और मुगल साम्राज्य को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद शिवाजी ने मंदिर को निर्माण कराया था।

दिवाली की दूज हर साल लगने वाले मेले में एक दिन में 20 लाख लोग जुटते हैं।

दिवाली की दूज हर साल लगने वाले मेले में एक दिन में 20 लाख लोग जुटते हैं।

बीहड़ के डाकू मां को मानते थे आराध्य बीहड़, बागी और बंदूक के लिए चर्चित ग्वालियर-चंबल का डकैतों से नाता सैकड़ों वर्ष पुराना है। मां रतनगढ़ वीरों और शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां कई कुख्यात डकैत रहा करते थे। रतनगढ़ वाली माता मंदिर में चंबल इलाके के सभी डकैत पुलिस को चुनौती देते हुए नवरात्र में दर्शन करने आते थे और घंटा चढ़ाते थे।

कई बार ऐसा हुआ है कि पुलिस पहरा देती रही और डकैत घंटा चढ़ाकर निकल गए। डकैत मानते थे कि मां उनकी रक्षा करती है। बड़े डकैतों में मानसिंह, जगन गुर्जर, माधव सिंह, मोहर सिंह, मलखान सिंह से लेकर फूलन देवी ने माता के चरणों में माथा टेका और घंटा चढ़ा कर आशीर्वाद लिया है।

रतनगढ़ पर चढ़ाए घंटों की होती थी नीलामी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु प्रतिवर्ष हजारों घंटे मां के दरबार में चढ़ाते हैं। मंदिर पर एकत्रित हुए घंटों की पूर्व में नीलामी की जाती थी। वर्ष 2015 में प्रशासन की पहल पर यहां पर एकत्रित घंटों को गलवाकर विशाल घंटा बनाया गया था और इसे रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्र में 16 अक्टूबर 2015 को चढ़ाया गया था। देश के सबसे वजनी इस पीतल के घंटे को जिसको तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चढ़ाया था।

बताते हैं कि इस विशाल घंटा की ऊंचाई 6 फीट और गोलाई 13 फीट है। इसे नौ धातुओं से मिलाकर बनाया गया था। इस घंटे की खासियत है कि 4 साल के बच्चे से लेकर 80 साल का बुजुर्ग भी आसानी से बजा सकता है। इस विशाल घंटे को टांगने के लिए लगाए गए एंगल व उन पर मड़ी गई पीतल और घंटे के वजन को जोड़ा जाए तो लगभग 51 क्विंटल होता है।

मां से मन्नत मांगी वह पूरी हो गई

‘MP के देवी मंदिरों के दर्शन’ सीरीज से जुड़े पिछले पार्ट यहां पढ़ें…

पार्ट 1- 800 फीट ऊंचे पर्वत पर विराजी हैं विजयासन देवी:विकराल रूप धर किया था रक्तबीज का संहार; 1401 सीढ़ियां चढ़कर होते हैं मां के दर्शन

पार्ट 2- देवास टेकरी यहां माता का शक्तिपीठ नहीं, रक्तपीठ:300 फीट ऊंची चोटी पर बहन के साथ विराजीं तुलजा भवानी; 5 पान के बीड़े का भोग

पार्ट 3- विक्रमादित्य ने 12 बार शीश काटकर चढ़ाया:यहां आज भी तंत्र सिद्ध करते हैं तांत्रिक; ऐसा है उज्जैन का 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर

पार्ट 4- मालवा के भादवा माता मंदिर को आरोग्य तीर्थ की मान्यता:दावा- बावड़ी के जल से लकवा, मिर्गी जैसे रोग ठीक हो जाते हैं

पार्ट 5- दतिया में राजसत्ता की देवी माता पीतांबरा:पीएम-सीएम से लेकर जज, उद्योगपति भी फरियाद लेकर पहुंचते हैं

पार्ट 6- मंदिर खुलने के पहले ही मां का श्रृंगार: मैहर में त्रिकूट पर्वत पर विराजीं मां शारदा; रात में पुजारी भी नहीं रुक सकते

पार्ट 7- बगलामुखी मंदिर का गर्भगृह 3 करोड़ के सोने से दमका:चारों दिशाओं में श्मशान, पास में नदी; भक्त कराते हैं शत्रु नाश के लिए अनुष्ठान

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