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‘मोदी के मन में मध्य प्रदेश’, और मोहन के मन में मोदी

मोदी के मन को समझ कर चलने से राजनीतिक तौर पर मोहन यादव का कद किसी भी अन्य नेता से बड़ा हुआ या छोटा, इसका आकलन बेहद मुश्किल है। ऐसे में यादव के लिए किसी तुलनात्मक अध्ययन के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचती है, यही मोहन यादव के पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है।

By dhananjay singh

Publish Date: Wed, 11 Dec 2024 02:40:24 PM (IST)

Updated Date: Wed, 11 Dec 2024 03:10:21 PM (IST)

सीएम डॉ. मोहन यादव। फाइल फोटो

HighLights

  1. सीएम की कार्यप्रणाली पर केंद्र की मोदी सरकार की गहरी छाप दिखाई पड़ती है।
  2. सीएम मोहन यादव ने सुशासन और निवेश-रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता में रखा।
  3. मध्य प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार ने आम आदमी को भी राहत प्रदान की है।

धनंजय प्रताप सिंह, नवदुनिया, भोपाल। डॉ. मोहन यादव बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल का पहला साल 13 दिसंबर को पूरा करने जा रहे हैं। उनके काम का लेखा-जोखा उस नारे में ही सिमटता नजर आता है, जिसके बूते पर भाजपा ने सत्ता बरकरार रखी थी। पिछले साल विधानसभा चुनाव में ‘मोदी के मन में एमपी, एमपी के मन में मोदी’ के सुपरहिट नारे ने सारे अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा को बड़ी जीत दिलाई थी।

सुशासन से लेकर लोक कल्याण की योजनाओं तक, सांस्कृतिक पुनर्जागरण से लेकर निवेश तक और प्रशासनिक कसावट से लेकर रोजगार के अवसरों तक देखें तो डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप ही हर कदम फूंक-फूंक कर रखा है। सरकार में उनकी कार्यप्रणाली पर केंद्र की मोदी सरकार की गहरी छाप दिखाई पड़ती है।

सरकारी की छवि पर कोई दाग नहीं आया

‘मोदी के मन’ का ही प्रभाव माना जाएगा कि मुख्यमंत्री को सत्ता और संगठन का साथ मिलता रहा है। वरिष्ठ मंत्रियों के अलावा पहली बार कैबिनेट में शामिल मंत्रियों के साथ भी मुख्यमंत्री का बेहतर तालमेल रहा, जिसके चलते सरकार की छवि पर कभी कोई दाग नहीं लगा।

संगठन ने भी हर कदम पर मोहन यादव का साथ दिया, जिससे मोहन यादव अपनी दिशा में लगातार आगे बढ़ते गए। यादव की कार्य संस्कृति से स्पष्ट है कि सीएम ने सुशासन और निवेश-रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता में रखे हैं।

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कानून व्यवस्था में सुधार ने आम आदमी को दी राहत

भोपाल- इंदौर से बीआरटीएस को हटाने का मुद्दा हो या फिर सरकारी बस चलाने और राजस्व अभियान चलाकर आम आदमी की मुश्किलों को कम करने के उनके प्रयासों ने सुशासन का रास्ता भी साफ किया है।

गांव से शहर तक अब अधिकारियों की उपस्थिति, कानून व्यवस्था में सुधार ने आम आदमी को राहत प्रदान की है। उन्हें कई मामलों में राहत मिली है। यही वजह है कि इसे बदलाव का एक साल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

29 लोकसभा सीटों पर भाजपा की विजय के साथ कई रिकॉर्ड

एक वर्ष के कार्यकाल में मोहन यादव ने 29 लोकसभा सीटों पर भाजपा की विजय के साथ कई रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिए हैं। इंदौर में एक दिन में 12 लाख पौधारोपण का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, वहीं पीएम स्व-निधि योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, पीएम आवास योजना, कृषि अधोसंरचना निधि, प्रधानमंत्री, मातृ वंदना योजना, स्वामित्व योजना, नशामुक्त भारत अभियान, आयुष्मान भारत योजना मी मध्य प्रदेश का उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है। इसके साथ ही खुले में मांस की बिक्री पर रोक लगाना हो या धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज लाउडस्पीकर की आवाज कम करना हो, उन्होंने ऐसे फैसलों में कभी संकोच नहीं किया।

सुशासन का परिचय देने में कभी नहीं किया संकोच

विधानसभा चुनाव के बाद जब डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया, तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पिछले दो दशक में भाजपा का पर्याय बन चुके शिवराज सिंह चौहान की बड़ी लकीर के आगे टिके रहने और उनसे बड़ी लकीर खींचने की थी।

यादव ऐसी किसी रेस में पड़ने की बजाय केंद्र की मंशा के अनुरूप चौहान से भी बड़ी लाइन यानी मोदी के नेतृत्व की लकीर को और गहरी बनाने में जुट गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के अनुरूप उन्होंने किसान, गरीब, युवा और महिला के कल्याण पर जहां फोकस किया, वहीं निवेश के लिए राज्यस्तरीय आयोजनों के बजाय संभाग स्तर पर रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव का आयोजन शुरू किया।

मोहन यादव ने सुशासन का परिचय देने में भी संकोच नहीं दिखाया। कलेक्टर से लेकर अधिकारियों-कर्मचारियों पर उन्होंने सीधे कार्रवाई कर जनता के बीच बेहतर संदेश दिया।

सत्ता और संगठन में तालमेल

मोदी के मन को भली-भांति समझने और उसके मुताबिक ही मध्य प्रदेश को आगे ले जाने का फार्मूला मोहन यादव के लिए सरकार के अलावा संगठन में भी कारगर साबित हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पहली बार मुख्यमंत्री बने मोहन यादव की संगठन पर मजबूत पकड़ नहीं मानी जाती है।

कैबिनेट में भी उनसे कई वरिष्ठ नेता मंत्री हैं, लेकिन आशंकाओं के विपरीत उन्हें कभी सत्ता या संगठन में किसी तरह की चुनौती या विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। इसे मोदी का ही प्रभाव माना जाएगा कि उनके हर फैसले में मन या बेमन सत्ता और संगठन को कदम मिलाना ही पड़ा।

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