स्पेसडॉटकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, मेटल पार्ट की 3डी प्रिंटिंग में मेटल को पिघलाना होता है। स्पेस में बिना गुरुत्वाकर्षण के प्रिंटिंग में दिक्कतें आना लाजिमी था। इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने इंटरनेशल स्पेस स्टेशन (ISS) पर चीजें हालात के हिसाब से सेट कीं।
साइंटिस्टों ने कई महीनों तक टेस्ट किए और प्रिंटर को सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के माहौल में ढाला। इसके बाद उन्होंने स्पेस में मेटल पार्ट का पहला हिस्सा 3डी प्रिंटिंग की मदद से तैयार किया। टीम की योजना 2 और चीजों को प्रिंट करने की है। अभी जो चीज प्रिंट की गई उसे क्वॉलिटी चेक के लिए पृथ्वी पर भेजा जाएगा।
3D प्रिंटिंग ऐसे की गई स्पेस में
वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एक स्टेनलेस स्टील तार को लेजर के जरिए पिघलाया। उससे मेटल का रेशा तैयार किया, जिससे 3डी प्रिंटिंग की गई। यूराेपीय स्पेस एजेंसी का कहना है कि अंतरिक्ष में एक मेटल पार्ट को 3D प्रिंट करके वैज्ञानिकों ने स्पेस में मैन्युफैक्चरिंग की काबिलियत हासिल कर ली। यह भविष्य के मिशनों में मददगार होगी। वैज्ञानिकों को लगता है कि लंबी दूरी के स्पेस मिशनों में जरूरत पड़ने पर वह स्पेयर पार्ट्स और कंस्ट्रक्शन से जुड़ी चीजें तैयार कर पाएंगे।
3D प्रिंटिंग का इस्तेमाल स्पेस में बड़े पैमाने पर संभव हुआ तो वैज्ञानिकों को पृथ्वी से सामान ले जाने की जरूरत नहीं होगी। रॉ मटीरियल को अंतरिक्ष में ले जाकर वहां जरूरत की हर चीज मैन्युफैक्चर की जा सकेगी।
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