अभावग्रस्त जीवन, बचपन में मजदूरी की मजबूरी ने राजगढ़ के भौनजी को बेहतरीन शिल्पकार बना दिया। राजगढ़ के बायपास रोड स्थित अंजनीलाल धाम के प्रवेश द्वार, बगवाज के विशालकाय महिषासुर मर्दिनी मंदिर के अलावा दंढ जोड़ स्थित बाबा रामदेव मंदिर सहित जिले भर में अ
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बचपन में दीवारों पर बने चित्र देखकर मिट्टी से मूर्ति बनाने की कला का अभ्यास करने वाले भौनजी अब मंदिरों का निर्माण करने वाले बेहतरीन शिल्पकारों में एक हैं। खास बात ये कि भौनजी के इस काम को सिखाने वाले गुरु कोई और नहीं बल्कि उनका सतत अभ्यास व मेहनत है।
68 साल के भौन जी बताते हैं कि वे बचपन में कंस्ट्रक्शन के काम में बेलदार की मजदूरी किया करते थे। एक सरकारी ठेकेदार के साथ पूरे दिन काम करने पर उन्हें 25 पैसे दैनिक दिहाड़ी मिलती थी। भौनजी इस मजदूरी से इतर एक बेहतरीन शिल्पकार बनना चाहते थे, यही वजह थी कि बचपन में ही वे राजगढ़ के चित्रकार चंद्रकांत भार्गव के द्वारा दीवारों पर बनाए गए चित्रों को देखकर मिट्टी से मूर्ति बनाने लगे।
भौन जी बताते हैं कि करीब 40 साल के अभ्यास और अनुभव के दौरान जीवन में कई बदलाव आए। समय बदलने के साथ वे सीमेंट की कारीगरी से मंदिर में आकर्षक नक्काशियां बनाने लगे और अब हर दिन 1 हजार रुपए कमा रहे हैं।
50 लोगों को स्व-रोजगार से जोड़ा
भौनजी जिले भर में मंदिर बनाने की कारीगरी का काम कर रहे हैं। उन्होंने शिल्प-कला सिखाकर अब तक करीब 50 से ज्यादा लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा है। अब वे राजगढ़ के अंजनीलाल धाम पर स्थित श्रीराम दरबार का शिखर बना रहे हैं, ये शिखर दक्षिण भारत की शिल्प कला पर आधारित है। उनके बेटे राजू, संजू, राहुल व कपिल भी कुशल कारीगरी सीख चुके हैं।
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