रतलाम का त्रिवेणी मुक्ति धाम बुधवार शाम लोगों के दीप दान करने से जगमगा गया। परिसर को रंगोली से सजाया गया। छोटे-छोटे बच्चे फुलझड़ी जलाते नजर आए, आतिशबाजी भी की। महिलाओं ने ढोल की थाप पर नृत्य किया। त्रिवेणी मुक्तिधाम के अलावा शहर के भक्तन की बावड़ी और ज
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संस्था के गोपाल सोनी ने बताया, दीपावली पर्व 5 दिवसीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हम अपने घर-आंगन व्यवसाय स्थल को रोशनी से जगमग करते हैं। लेकिन हमारे पूर्वजों को याद करते हुए हम मुक्तिधाम में रंगोली बनाकर दीपक लगाकर आतिशबाजी करते हैं। हमारे पूर्वजों को याद करने के साथ यदि वे किन्हीं कारणों से अंधकार में हैं, तो उन्हें प्रकाश की ओर ले जाने की प्रार्थना करते हैं। यही हमारी हमारे पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होती है, क्योंकि आज हम जो कुछ भी हैं, उसमें हमारे पूर्वजों का योगदान एवं आशीर्वाद है। शास्त्रानुसार इस दिन हमें हमारे पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए यमराज को दीपदान करना चाहिए।
मोनिका शर्मा पूरे परिवार के साथ अपने बच्चों को लेकर मुक्तिधाम में आईं। उनका बताया कि रतलाम में यह परंपरा 2006 से चली आ रही है। पहले यहां आने से सब डरते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
त्रिवेणी मुक्तिधाम में रांगोली बनाई गई।
यह है मान्यता… गोपाल सोनी के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है। यमराज के कोप से बचने के लिए इस दिन व्रत-पूजन का विधान है। इसके करने से यमयातना से मुक्ति मिलती है। नर्क के कष्टों को नहीं भोगना पड़ता। इसके लिए यमराज को दीपदान करने का महत्व है।
बताया जाता है कि राजा बलि ने वामन भगवान से यह वरदान मांगा था कि इस दिन जो यमराज को दीपदान करेगा वह एवं उसका परिवार दुखों से मुक्त हो जाएगा। नारद एवं पद्म पुराण के अनुसार पूर्वजों के प्रसन्न होने पर समस्त देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि जिन पर पूर्वज प्रसन्न होते हैं, उन पर गृहों व देवताओं की कृपा होती है। पूर्वजों की प्रसन्नता ही पितृदोषों को नष्ट कर देती है।
देखिए तस्वीरें…
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![मुक्तिधाम में आतिशबाजी करते हुए।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/10/30/img-20241030-wa0080_1730299768.jpg)
मुक्तिधाम में आतिशबाजी करते हुए।
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