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रबी फसलों के लिए कृषि विभाग की सलाह: कौन-सी खाद कब, किस विधि से, कितनी मात्रा में दें, इसका ख्याल रखें किसान – Mauganj News

रबी फसल की बुआई का समय शुरू हो गया है। जिले में रबी फसलों की बोवनी दिसंबर तक की जाती है। इस समय किसान को दो मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिए, पहला बीज तथा दूसरा उर्वरक, अगर बीज गुणवत्ता पूर्ण है और उर्वरक का प्रयोग समुचित नहीं है तो फसल पर उलटा प्रभाव

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यह सलाह कृषि विभाग ने किसानों को दी है। इसके तहत गेहूं सिंचित के लिए अनुशंसित नत्रजन फास्फोरस पोटाश तत्व 120:60:40 सिंचित पछेती बोनी 80:40:30 असिंचित गेहूं 60:30:30 एवं चना के लिए एनपीके. 20:60:20 एवं गंधक 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपयोग में लाना चाहिए। प्रायः कृषक बंधु डीएपी एवं यूरिया का बहुतायत से प्रयोग करते हैं।

डीएपी की बढ़ती मांग, ऊंचे रेट एवं मौके पर स्थानीय अनुपलब्धता से कृषकों को कई बार समस्या का सामना करना पड़ता है, परंतु यदि किसान डीएपी के स्थान पर अन्य उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, एनपीके (12:32:16), एनपीके (16:26:26) एनपीके (14:35:14) एवं अमोनियम फास्फेट सल्फेट का प्रयोग स्वास्थ्य मृदा कार्ड की सिफारिश के आधार पर करें तो वे इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

कृषि विभाग ने कहा कि प्रायः कृषक नत्रजन फास्फोरस तो डीएपी एवं यूरिया के रूप में फसलों को प्रदाय करते हैं, परंतु पोटाश उर्वरक का उपयोग खेतों में नहीं करते, जिससे कृषक की उपज के दानों में चमक व वजन कम होता है और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को हानि होती है। इसलिए किसानों को आवश्यक है कि वे डीएपी के अन्य विकल्पों क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुरूप प्रयोग करें। जहां डीएपी उर्वरक का प्रभाव भारी भूमि में अधिक प्रभावशाली होता है, वहीं एनपीके उर्वरकों का प्रभाव हलकी भूमि में ज्यादा कारगर होता है। एसएसपी के प्रयोग से भूमि की संरचना का सुधार होता है, क्योंकि इसमें कॉपर 19 प्रतिशत एवं सल्फर 11 प्रतिशत पाया जाता है।

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