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रात्रि चौपाल में डीपीस ने बताया शिक्षा का महत्व: अभिभावकों से स्थानीय भाषा बातचीत कर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया – Shivpuri News

शिवपुरी जिले में कड़कड़ाती ठंड और न्यूनतम पारा 6 डिग्री के आसपास। इस सर्दी के बीच डीपीसी दफेदार सिंह सिकरवार अपने अमले में शामिल शिवपुरी बीआरसीसी बालकृष्ण ओझा व जन शिक्षक दीवान शर्मा, पूर्व जनशिक्षक अरविंद सरैया के साथ देर शाम आदिवासी बाहुल्य बारा और

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इसके बाद डीपीसी सिकरवार ने विशुद्ध देहाती भाषा में मजदूरी और खेती करने वाले इन आदिवासी वर्ग के अभिभावकों से संवाद शुरू किया। तमाम उदाहरणों के सहारे उन्हें शिक्षा का महत्व बताया। अलाव के सहारे शुरू हुई यह रात्रि चौपाल चंद मिनटों में शिक्षा का अलख जगाने का आधार बन गई। अंत में अभिभावकों ने शपथ ली कि वे अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेजेंगे और प्रतिदिन उनकी मॉनिटरिंग भी करेंगे कि आज स्कूल में क्या पढ़ाया। होम वर्क दिया या नहीं, मध्याह भोजन में क्या और कैसा मिला?

क्यों पड़ी आवश्यकता? दरअसल, जिले के सरकारी स्कूलों में खासतौर पर मजदूर, खेतीहर व आदिवासी बाहुल्य वाले गांव के सरकारी स्कूलों में छात्र उपस्थिति लगातार कम पाई जा रही है। दोपहर के समय शिक्षक संपर्क के लिए बस्ती में पहुंचते हैं तो अधिकांश अभिभावक मजदूरी या खेती के कार्य पर निकल जाते हैं।

ऐसे में डीपीसी सिकरवार ने नवाचार के तहत परहित संस्था के मनोज भदौरिया और अपने अमले के साथ इस रात्रि चौपाल की परिकल्पना सृजित की और शुक्रवार देर रात वे वारा और पतारा गांव में रात्रि चौपाल लगाने पहुंचे।अब इसे अन्य गांव में भी आगामी दिनों में जारी रखा जाएगा।

कहा- ये फसल बर्बाद हुई तो भरपाई नहीं होगी चौपाल के दौरान डीपीसी अभिभावकों से जुड़े और उन्होंने कहा कि यदि आपकी पकी-पकाई फसल ओलावृष्टि या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो जाए तो कितने साल में उसकी भरपाई हो पाती है। इस पर अभिभावक बोले कि उभरने में तीन-चार साल लग जाते हैं। इसी बात पर डीपीसी ने कहा कि फसल के मामले में तो तीन-चार साल में भरपाई हो जाती है, लेकिन यदि बच्चों की शिक्षा की फसल उजड़ गई तो उसकी कभी भरपाई नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि अमूमन मार्च अप्रैल में परीक्षा के समय आप लोग मजदूरी के लिए बाहर चले जाते हैं तो ऐसे में ध्यान में रखें कि बच्चों को अपने साथ न ले जाएं। किसी परिजन के साथ घर छोड़ जाएं ताकि वह परीक्षा देने से वंचित न रहें। बीआरसीसी बालकृष्ण ओझा ने कहा कि बच्चे की शिक्षा के लिए मां की जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसलिए सभी माताएं अपने बच्चों को न केवल समय पर स्कूल भेजें, बल्कि उससे यह भी पूछें कि आज क्या पढ़ाया, क्या होमवर्क दिया?

उन्होंने उदाहरण दिया कि प्रदेश के कई जिलों व छत्तीसगढ़ के कई आदिवासियों ने शिक्षा का महत्व समझा और अपने बच्चों को पढ़ाया नतीजे में आज वे हमारे जिले में ही तमाम सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं। दोनों अधिकारियों ने अपने मोबाइल नंबर भी अभिभावकों को दिए और आश्वस्त किया कि यदि स्कूल के संचालन में कोई कोताही नजर आए तो उन्हें फोन लगाकर अवगत कराएं।

दिन में घर पर नहीं मिलते हैं अभिभावक डीपीसी शिवपुरी दफेदार सिंह सिकरवार का कहना है कि जिले के कई स्कूलों में खासतौर पर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बच्चों की न्यून उपस्थिति लगातार मॉनिटरिंग में सामने आ रही थी, दोपहर के समय अभिभावक मजदूरी या खेती के कारण गांवों में संपर्क के लिए नहीं मिलते थे। इसलिए हम नवाचार के तहत ऐसी चिह्नित बस्तियों में रात्रि चौपाल के जरिए अभिभावकों से संपर्क कर उन्हें शिक्षा का महत्व समझाकर बच्चों को स्कूल भेजने प्रेरित कर रहे हैं उम्मीद है यह पहल सार्थक साबित होगी।

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