राम नाम मणि दीप धरु,जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहु जो चाहसि उजियार… रामजी से बड़ा रामजी का नाम है। रामजी ने तो अहिल्या को तारा लेकिन उनके नाम ने अनेक लोगों को तारा। भगवान के नाम से पत्थर भी तैर गए।
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शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने चंद्रेश्वर महादेव मंदिर बिसनावदा में नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन मंगलवार को यह बात कही। व्यासपीठ का पूजन दारासिंह पटेल, हेमंत वन गोस्वामी आदि ने किया। कथा में विशेष रूप से किशोर चौधरी, राहुल चौधरी, श्रीराम पटेल, रामकिशन सांखला भी शामिल हुए।
आरती करते श्रद्धालु
प्रभु जिसे आप छोड़ दें उसे तो डूबना ही है
महाराजश्री ने एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि समुद्र मंथन के समय रामजी ने सोचा वानरों को शिलाओं पर मेरा नाम लिखने में समय लग रहा है, तो क्यों न मैं ही इन्हें हाथ में स्पर्श करके पत्थर दे दूं। लेकिन पहले परीक्षा तो कर लूं। मेरे हाथ लगाने से पत्थर तैरता है या डूबता है। भगवान एकांत में चले गए, उनके पीछे-पीछे हनुमान पहुंच गए, क्योंकि जहां राम हैं वहां हनुमान हैं। रामजी ने एक पत्थर समुद्र में छोड़ा तो वह डूब गया। दूसरा छोड़ा तो वह भी डूब गया। इसी तरह तीसरा भी डूब गया। भगवान निराश हो गए, वे पलटे तो देखा पीछे हनुमान खड़े थे। रामजी ने पूछा- तुम कब आए? हनुमानजी ने कहा प्रभु आप आए तब मैं पीछे से आ गया। रामजी ने पूछा- तुमने कुछ देखा तो नहीं। हनुमानजी ने कहा- सबकुछ देखा, लेकिन रामजी आप निराश मत होइए। हनुमानजी बहुत बड़े ज्ञानी हैं, उन्होंने रामजी से कहा- प्रभु जिसे आप छोड़ दें उसे तो डूबना ही है।
भगवान जिसे ठुकरा दें, उसे कोई नहीं रखता
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया इसी तरह अयोध्या में बाल्यकाल में भाइयों के साथ भगवान खेल रहे थे। रामजी ने गेंद में लात मारी तो भरतजी ने भी मार दी। जब भरतजी ने मारी तो भगवान ने उसे पकड़ लिया। लोगों ने भरतजी से पूछा- रामजी ने लात मारी तो आपने उसे क्यों ठुकरा दी। भरतजी ने कहा- भगवान जिसे ठुकरा दें, उसे हम नहीं रखते। रामजी से पूछा- भरतजी ने लात मारी तो आपने गेंद क्यों रख ली। रामजी ने कहा भरत संत हैं। जब कोई संत के चरण छूकर आता है, तो मैं उसे रख लेता हूं।
रामजी को भजो और संसार को तजो
महाराजश्री ने कहा कि कलियुग में यज्ञ, जप, तप की आवश्यकता नहीं है। केवल रामजी का नाम भवसागर से तरने के लिए नाव है। कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा।…तुलसीदासजी कहते हैं-अरे मूर्ख मन राम को क्यों नहीं भजता। उसको भजने से ही तू सुखी होगा। यदि मन को सुखी करना है, रामजी को भजो और संसार को तजो।
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