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रोते गुजरीं शामें, बच्चों ने GPS से दिखाया रास्ता, मेडल विनर ने सुनाई दास्तां

नई दिल्ली. पैरा एथलीट मोना अग्रवाल ने अपने पहले पैरालंपिक में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन कर दिया. उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल इवेंट (SH1) इवेंट में कांस्य पदक जीता. दो बच्चों की मां मोना ने मेडल जीतने के बाद अपने संघर्ष के दिनों को याद किया. उन्होंने बताया कि कैसे वह अपने बच्चों को छोड़कर ट्रेनिंग के लिए उनसे दूर जाती थीं और बच्चे अपनी मां की मासूमियत को देखते हुए उन्हें जीपीएस के जरिए घर आने को कहते थे. बच्चों को लगता था कि उनकी मां कहीं रास्ता ना भटक जाएं. अपने बच्चों से दूर रहने और यहां तक कि वित्तीय समस्याओं का सामना करने के संघर्षों से गुजरने के बाद मोना ने पैरालंपिक में पदक जीतने का अपना सपना पूरा किया.

मोना अग्रवाल (Mona Agarwal) हर दिन निशानेबाजी परिसर में उस समय इमोशनल हो जाती थीं जब उनके बच्चे वीडियो कॉल पर मासूमियत से यह समझते थे कि वह घर वापस आने का रास्ता भूल गई हैं. और उन्हें वापस लौटने के लिए जीपीएस की मदद लेनी होगी. पहली बार पैरालंपिक खेलों में भाग ले रही 37 साल की मोना ने शुक्रवार को महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल में ब्रॉन्ज मेडल जीता. वह काफी समय तक स्वर्ण पदक की दौड़ में बनी हुई थी जो अंततः भारत की अवनि लेखरा के पास गया.

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‘मम्मा आप रास्ता भूल गई हो’
मोना ने ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद मीडिया को बताया, ‘जब मैं अभ्यास के लिए जाती थी तो अपने बच्चों को घर पर छोड़ना पड़ता था. इससे मेरा दिल दुखता था. मैं हर दिन उन्हें वीडियो कॉल करती थी और वे मुझसे कहते थे, ‘मम्मा आप रास्ता भूल गई हो, जीपीएस पर लगा के वापस आ जाओ. मैं अपने बच्चों से बात करते समय हर शाम रोती थी … फिर मैंने उन्हें सप्ताह में एक बार फोन करना शुरू कर दिया.’ मोना ने अन्य बाधाओं के बीच वित्तीय कठिनाइयों का सामना करने को भी याद किया।

‘वह मेरा सबसे मुश्किल समय में से एक था’
बकौल मोना अग्रवाल, ‘वह मेरा सबसे मुश्किल समय में से एक था, वित्तीय संकट एक और बड़ी समस्या थी. मैंने यहां तक पहुंचने के लिए वित्तीय तौर पर काफी संघर्ष किया है. मैं आखिरकार सभी संघर्षों और बाधाओं से पार पाकर पदक हासिल करने में सक्षम रही. मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है. यह मेरा पहला पैरालंपिक है, मैंने ढाई साल पहले ही निशानेबाजी शुरू की थी और इस अवधि के अंदर पदक जीतना शानदार रहा.’

2010 में छोड़ दिया था घर
पोलियो से पीड़ित मोना ने कहा कि उन्होंने खेल में अपना करियर बनाने के लिए 2010 में घर छोड़ दिया था. लेकिन 2016 तक उन्हें नहीं पता था कि पैरालंपिक जैसी प्रतियोगिताओं में उनके लिए कोई गुंजाइश है. उन्होंने कहा, ‘मुझे 2016 से पहले पता नहीं था कि हम किसी भी खेल में भाग ले सकते हैं. जब मुझे अहसास हुआ कि मैं कर सकती हूं, तो मैंने खुद को यह समझने की कोशिश की कि मैं अपनी दिव्यांगता के साथ खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हूं. मैंने तीन-चार खेलों में हाथ आजमाने के बाद निशानेबाजी को चुना.’ पेरिस पैरालंपिक में भारत की ओर से 84 एथलीट भाग ले रहे हैं. भारतीय पैरा एथलीटों से इस बार 25 पदक की उम्मीद की जा रही है. टोक्यो पैरालंपिक में भारत ने 19 मेडल जीते थे.

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