ग्वालियर में लावारिस लाशों के कब्रिस्तान से झंझोड़ देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। कुत्तों ने गड्ढों से लाशें बाहर खींच लीं। नोंचकर हडि्डयां चबा डालीं। मैदान में हडि्डयां और खोपड़ी खुले में पड़ी हैं।
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दरअसल, लावारिस लाशों को पुलिस कम गहराई का गड्ढा खोदकर दफना देती है, ताकि बाद में किसी के क्लेम करने पर शव निकाला जा सके।
ग्वालियर में मिलने वाली लावारिस लाशों को शहर के झांसी रोड इलाके में नीडम के पीछे श्मशानघाट की जमीन के एक हिस्से में दफनाया जाता है। यहां हो रही लावारिस लाशों के साथ बेकद्री का मामला एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर शव निकालने के बाद सामने आया। लोगों का कहना है कि कुत्ते कभी हाथ, तो कभी पैर उठा लाते हैं।
अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला दैनिक भास्कर रिपोर्टर यहां पहुंचे, तो अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला था। हवा में तेज बदबू थी। कहीं शवों के ऊपर से कुत्तों ने मिट्टी हटा दी है, तो कुछ शव बाहर निकल रहे हैं। एक कोने में कुत्ता हड्डी चबाता दिखा।
इतने में रिपोर्टर के पास रमेश कुमार सिंह आए। वे पास ही रहते हैं। आते ही पूछा, ‘आप कौन हैं?’ सवाल के जवाब में रिपोर्टर ने सवाल किया, ‘क्या ऐसे ही हालात रहते हैं यहां? इस पर वे बोले, ‘यह तो फिर भी बहुत ठीक है।’
झकझोर देने वाली तीन तस्वीरें…
नीडम के पीछे श्मशानघाट की जमीन के एक हिस्से में लावारिस लाशों को दफनाया जाता है।
कम गहराई होने से कुत्ते मिट्टी हटाकर लाशों को खींच लेते हैं।
लोगों का कहना है कि कुत्ते लाशों को नोंचते और खाते हैं।
देखरेख करने वाला बोला- शराब पीकर गाड़ जाते हैं बॉडी ग्वालियर पुलिस कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद रेडक्रॉस सोसायटी या एनजीओ ऑनलाइन सर्विस एसोसिएशन की मदद से लावारिस शवों को दफनाती है।
नीडम के श्मशान घाट में मिले सुनील राजपूत ने बताया, ‘यहां न तो कोई कर्मचारी है, न चौकीदार है। 2002 से मैं ही देखरेख करता हूं, इसका मुझे एक पैसा नहीं मिलता।’
उन्होंने बताया, ‘लाश को पुलिस की निगरानी में लाना चाहिए, लेकिन पुलिस वाले कम ही आते हैं। लाश लाने वाले पहले यहां बैठकर शराब पीते हैं, फिर पहले से खुदे पड़े गड्ढे में डालकर ऊपर से मिट्टी डाल जाते हैं।’
पास ही रहने वाले रमेश बाल्मीक कहते हैं, ‘दस पंद्रह दिन पहले की बात है, कुत्ते बॉडी खा रहे थे। कर्मचारी दो से तीन फीट गहरे गड्ढे में ही बॉडी गाड़कर चले जाते हैं।’
क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिम्मेदारी पुलिस की ऑनलाइन सर्विस एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश बाबू कुशवाहा का कहना है-
हमारी टीम साथ में जाती है। हमारे पास कोई परमानेंट कर्मचारी नहीं है। हमारा पूरा काम नहीं है, हम तो पुलिस की मदद करते हैं। शवों की बेकद्री की बात कई बार बताई, लेकिन कोई सुनता नहीं। पूरी जिम्मेदारी पुलिस की होती है।
जांच कराई जाएगी सीएसपी अशोक सिंह जादौन का कहना है-
जब कभी लावारिस लाश मिलती है, तो हम पूरी जिम्मेदारी से प्रशासन की मौजूदगी में गड़वा देते हैं। इसकी पूरी प्रोसेस होती है। सबसे पहले शव को 24 से 48 घंटे डेड हाउस में रखा जाता है। अखबारों में सूचना छपवाते हैं। इसके बाद भी पहचान नहीं होती है, तो पंचनामा तैयार कर प्रशासन की मदद से उसे दफनाया जाता है। शवों की बेकद्री का मामला सामने आता है, तो जांच कराई जाएगी।
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