बच्चों का विद्यारंभ संस्कार किया गया।
वसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर में विद्या आरम्भ संस्कार किया गया। इसमें तीन से पांच साल के बच्चों को विद्या आरंभ कराई गई। 16 संस्कारों में एक विद्यारंभ संस्कार प्रमुख माना जाता है। कार्यक्रम में बच्चों सहित उनके अभिभावक भी शामिल हुए।
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कार्यक्रम की शुरुआत माता सरस्वती की पूजन से हुई। इसके बाद तीन से पांच वर्ष के बच्चों के लिए विद्यारंभ संस्कार हुआ। सबसे पहले हवन का आयोजन किया गया। इसमें बच्चों ने मंत्रों पर यज्ञ में आहुतियां दीं। इसके बाद स्लेट(बच्चों के लिखने वाली पट्टी) का पूजन हुआ। बच्चों ने उस पर चॉक से ॐ लिखा और उसकी पूजा की। इसी के साथ ही बच्चों की शिक्षा की शुरुआत हुई।
कार्यक्रम में नगरपालिका अध्यक्ष सविता अरविंद गुप्ता, SI अंजलि गुप्ता, महेंद्र रघुवंशी प्रांतीय सह सचिव मध्य भारत प्रांत, प्रांतीय सहघोष प्रमुख विजय, सुभाष दांगी प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर महावीर पुरा सहित अन्य अतिथि मौजूद रहे।
बच्चों ने यज्ञ में आहुतियां दीं।
मध्यभारत प्रांत के सह सचिव महेंद्र रघुवंशी ने बताया कि देशभर में सरस्वती शिशु मंदिर संस्कार और समाज चेतना के केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं। समाज जागरण में अहम भूमिका निभाते हुए संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। संस्थान संस्कृति में जो 16 संस्कार हैं, उनमें से ग्यारहवां संस्कार विद्या आरम्भ संस्कार है। इसलिए विद्यारंभ संस्कार का आयोजन आज किया गया है। इसकी शुरुआत के लिए पट्टी पूजन किया गया। इसमें मां सरस्वती से आराधना करते हैं कि सभी को वह अपना आशीर्वाद प्रदान करें और ये बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में नाम रौशन करें और संस्कारयुक्त शिक्षा ग्रहण करें।
कार्यक्रम में पट्टी पूजन की गई।
बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार, वसंत पंचमी हर साल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल वसंत पंचमी का पर्व 2 तारीखों पर पड़ रहा है, ऐसे में इस साल कुछ जगहों पर 2 फरवरी, तो वहीं कुछ जगहों पर 3 फरवरी को वसंत पंचमी मनाई गई। ये दिन खास तौर पर वसंत ऋतु के आने और देवी सरस्वती की पूजा का होता है। इस दिन विद्या, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है। वसंत पंचमी का त्योहार भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।
कैसे हुई वसंत पंचमी को मनाने की शुरुआत?
वसंत पंचमी का सीधा संबंध माता सरस्वती से है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो सृष्टि में कोई जीवन था, लेकिन वह जीवन शांत और बिना किसी आवाज के था। भगवान ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल छींटा, जिससे देवी सरस्वती प्रकट हुईं। देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर पूरे संसार में मधुर आवाज फैलाई और सृष्टि में जीवन का संचार हुआ। तभी से देवी सरस्वती को ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है, और इस तिथि पर वसंत पंचमी मनाए जाने लगी।
कार्यक्रम में मौजूद छोटे बच्चों का विद्यारंभ संस्कार हुआ।
धार्मिक मान्यताएं
वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। यह दिन विद्यार्थियों के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा इस खास दिन पर छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान भी दिया जाता है, जिसे ‘विद्यारंभ’ कहते हैं।
प्रकृति का उत्सव
वसंत पंचमी को वसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से ठंड का मौसम खत्म होने लगता है और मौसम में बदलाव आता है। खेतों में सरसों के पीले फूल खिलते हैं, जो वसंत पंचमी के पीले रंग को दर्शाते हैं। लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले रंग के पकवान जैसे खिचड़ी और हलवा बनाते हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि।
कामदेव और रति की पूजा
वसंत पंचमी को प्रेम और सौंदर्य का उत्सव भी माना जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, इस दिन कामदेव ने अपनी पत्नी रति के साथ भगवान शिव की तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी। इसी कारण इसे प्रेम और सुंदरता के पर्व के रूप में भी मनाते हैं।
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