फैलता इंदौर और उसमें बढ़ती हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को भारी कीमत चुकाना पड़ रही है। 5 बड़े प्रोजेक्ट के लिए 511.5 हेक्टेयर जंगल की जमीन जाने वाली है। वन विभाग का नियम है कि 1 हेक्टेयर जमीन में कुल 350 पेड़ होते हैं। इस हिसाब से 1 लाख
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इंडस्ट्री के लिए 400 हेक्टेयर जमीन बेटमा में
इंडस्ट्री क्लस्टर के लिए वन विभाग की 400 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया है। इस जमीन पर कहीं पेड़ थे तो कहीं खाली थी। खाली जमीनों पर भविष्य में पौधे लगाए जाना थे।
फ्लायओवर के लिए भी
रिंग रोड, एबी रोड पर अलग-अलग फ्लायओवर निर्माण के चलते भी बड़ी संख्या में पेड़ों को शिफ्ट किया गया था। कुछ पेड़ काटे भी गए थे।
3890 वर्ग किमी में फैला है इंदौर
710 वर्ग किलोमीटर है हमारी वन भूमि
450 वर्ग किमी जमीन पर ही जंगल है
नदी जोड़ो में 25 हेक्टेयर जमीन गई
नर्मदा-गंभीर नदी जोड़ो परियोजना में 21 हेक्टेयर जमीन पर पाइप लाइन बिछाई गई थी। इस प्रोजेक्ट के लिए 7350 पेड़ों को काटा गया था। नर्मदा-शिप्रा के लिए भी 4 हेक्टेयर जमीन चोरल रेंज की गई थी।
जंगल यहां कटा, भरपाई 200 किलोमीटर दूर
विडंबना यह है कि जंगल हमारे हिस्से के कट रहे हैं, लेकिन भरपाई दूसरे जिलों में बंजर भूमि मिलने के रूप में हो रही है। बेटमा में 400 हेक्टेयर जमीन गई। उसके बदले में जमीन शाजापुर जिले में मिली। इंदौर-सनावद रोड के लिए जंगल कटा तो भरपाई बड़वाह तहसील में खाली जमीन मिलने के रूप में की गई। इसी तरह अन्य प्रोजेक्ट के लिए मुआवजे के रूप में धार व झाबुआ जिले में जमीन मिली है। दरअसल, इंदौर जिले में अब राजस्व की जमीनें ही नहीं बची हैं, इसलिए दूसरे वन मंडलों में जमीन देकर भरपाई की जा रही है।
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