आए दिन देखने में आ रहा है कि कुछ पढ़े-लिखे युवक- युवतियां आपस में सामन्जस्य न होने के कारण कुटुंब न्यायालय के चक्कर लगाते रहते हैं। कई जगह तो देखने में आता है कि कुछ युवतियां महिला कानून का दुरुपयोग करते हुए दहेज, घरेलू हिंसा के झूठे दावे लगाकर जिस यु
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में सोमवार को यह बात कही।
प्रेम से तो पशु भी वश में हो जाते हैं, फिर इनसान क्यों नहीं…
महाराजश्री ने एक दृष्टांत सुनाया- एक बार एक संत के पास एक महिला आई। उसका पति उससे रुष्ट रहता था। घर में निरंतर अशांति बनी रहती थी। महिला ने संत को अपना दुख सुनाया और कहा कष्ट निवारण के लिए कोई वशीकरण कवचन दे दीजिए। संत ने उसे समझाया कि पति के दोष-दुर्गुणों पर विचार न करें, सच्चे मन से उसकी सेवा करें, प्रेम से तो पशु भी वश में हो जाते हैं। फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है? महिला को इस बात से संतोष नहीं हुआ। वह तो केवल वशीकरण कवच की मांग करती रही। अंत में संत ने एक कागज पर दो लाइन लिख दी और कहा कि इस कवच को पहनना और पति की प्रेम से सेवा करना। एक वर्ष के बाद महिला बहुत सारे भेंट-उपहार लेकर आई। उसका पति वश में हो चुका था। घर का नरक, स्वर्ग में परिणित हो गया था। श्रद्धापूर्वक उसने संत के चरणों में मस्तक नवाते हुए भेंट प्रस्तुत की और वशीकरण कवच की बड़ी प्रशंसा की। संत ने उपस्थित लोगों से कहा- आप लोग भी इस वशीकरण विद्या को सीख लें। महिला से उन्होंने कवच वापस लिया और खोलकर सबको दिखाया- उसमें एक दोहा लिखा था- दोष देख मत क्रोध कर, मन से शंका खोय, प्रेम भरी सेवा लगन से पति वश में होय…। वह महिला संस्कारी थी। वह किसी कोर्ट में नहीं गई। वरन अपने बिगड़े हुए पति को सुधारने के लिए अच्छे संत की शरण में गई, अच्छी शिक्षा प्राप्त की, क्योंकि वह जानती थी, पति ही परमेश्वर है, पार्टनर नहीं। पर आज संयुक्त परिवार में न रहने की इच्छा से पार्टनर मानने वाली युवतियां अपने पति पर दावा लगा देती हैं, क्योंकि वे सेवा करना नहीं बल्कि सेवा करवाना चाहती हैं। हमारी भारतीय परंपरा में पति को परमेश्वर मानने के कारण ही सीता, सावित्री, अनुसूइया आदि पूजी जाती हैं।
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