महाभारत युद्ध में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलिए, जिससे कि मैं देख सकूं कि मुझे किनसे युद्ध करना है। जब उसने अपने सगे संबंधियों, ताऊ भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य और आदरणीयों को देखा तो वह थरथर कांपने लगा, उसका
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।
गीता के उपदेश में सारे संसार को मार्गदर्शन
महाराजश्री ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए गीता के उपदेश में कहा है कि यदि भावनाओं में आकर अधर्मी का साथ देने वालों को देखकर भयभीत हों और युद्ध छोड़ दो तो वह अधर्म होगा, क्योंकि अधर्मी का साथ देने वाले भी उतने ही अधर्मी होते हैं जितना वह अधर्म करने वाला। इसलिए भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, तुम्हारे सगे-संबंधियों से और अधिक पाप न हो इसलिए इनसे युद्ध करके इनको मारना ही धर्म है। यदि अधर्मियों को दंडित नहीं किया गया, मारा नहीं गया तो उनके हाथों से और पाप होगा। इसलिए इन्हें पाप से बचाने के लिए दंड देना इनके लिए और हमारे लिए दोनों के लिए हितकर है। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश के माध्यम से सारे संसार को मार्गदर्शन दिया है।
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