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शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: अखिल ब्रह्मांड, सारा जगत प्रत्यक्ष परमात्मा का स्वरूप- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

भगवान को जानने-पहचानने के लिए महात्माओं ने कहा है- ‘सब जग ईश्वर रूप है भलो बुरो नहीं कोय, जैसी जाकी भावना तैसो ही फल होय…’ अखिल ब्रह्मांड, सारा जगत प्रत्यक्ष परमात्मा का स्वरूप है। जिसमें भले, बुरे, अच्छे, गुण-दोष आदि है ही नहीं।

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में बुधवार को यह बात कही।

माया के रचे हुए हैं गुण और दोष

महाराजश्री ने बताया, रामचरित मानस में लिखा है- सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक। गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक॥… कहने का मतलब यह है कि गुण और दोष माया के रचे हुए हैं। भगवान में नहीं हैं। जो व्यक्ति माया से ग्रसित है, वे ही अपनी दृष्टि में ये दोनों भगवान में देखते हैं। असल में गुण और दोष दोनों को ही देखना अविवेक है। गुन यह उभय न देखिअहिं के दो अर्थ हैं- पहला तो दोषों को न देखकर केवल गुण ही देखना चाहिए। दूसरा अर्थ यह है कि गुण दोषों को भी न देखकर केवल भगवान को देखना चाहिए, जो गुण और दोषों से रहित गुणातीत हैं। गुण और दोष को देखना अविवेक है, अज्ञानता और मूर्खता है। देखिअ सो अबिबेक… कारण यह है कि वास्तव में संसार प्रत्यक्ष भगवान ही है। इसमें भला-बुरा हो ही नहीं सकता। क्योंकि ईश्वर एक होता है।

सबमें परमात्मा देखना चाहिए

डॉ. गिरीशानंदजी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’… कहने का मतलब जो जैसे मुझे देखता है, मेरा भजन करता है, मैं भी उसका वैसा ही भजन करता हूं। यदि कोई मुझे भले-बुरे रूप में देखता है, तो मैं भी दो रूपों में प्रकट हो जाता हूं और जो कुछ न देखकर केवल मुझे देखता है तो मैं अपने असली रूप में प्रकट हो जाता हूं। जब परमात्मा कृष्ण कंस के दरबार में गए तो किसी को मित्र दिख रहे थे, किसी को पुत्र दिख रहे थे, किसी को भगवान दिख रहे थे लेकिन कंस को यम दिख रहे थे। मित्र रूप में देखने वालों को प्रेम दे रहे थे। पुत्र देखने वालों को वात्सल्य दे रहे थे। भगवान देखने वालों को आशीर्वाद दे रहे थे, कंस ने यम देखा तो उसे मौत दे दी। तुलसीदासजी कहते हैं- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी…इसलिए परमात्मा के प्रति अच्छे से अच्छा भाव रखना चाहिए। सबमें परमात्मा देखना चाहिए। जिस रूप में भी देखो परमात्मा उसी रूप में दिखेंगे और जैसा देखोगे, वैसा ही फल देंगे।

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