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शाह बानो का किरदार निभाएंगी यामी गौतम: 1985 ट्रिपल तलाक केस से जुड़ी है फिल्म, नई चुनौती को लेकर बेहद उत्साहित हैं एक्ट्रेस

13 मिनट पहले

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मां बनने के बाद यामी गौतम एक बार फिर बड़े पर्दे पर धमाकेदार वापसी करने जा रही हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक्ट्रेस, शाह बानो की लाइफ पर आधारित फिल्म में लीड रोल में नजर आएंगी। बता दें कि शाह बानो ने अपने पति से तलाक के बाद मेंटेनेंस पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी थी। यह केस 1985 में ट्रिपल तलाक, महिलाओं के अधिकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था। शाह बानो के पक्ष में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला देशभर में सामाजिक और कानूनी चर्चा का विषय बन गया था।

शाह बानो का ट्रिपल तलाक केस मामले में काफी योगदान रहा है। यामी गौतम इस फिल्म के जरिए दर्शकों को इसी केस की अहमियत समझाएगी। बताया जा रहा है कि यामी गौतम शाह बानो का किरदार निभाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। यह उनके करियर का एक आइकॉनिक रोल होगा। वो इस नई चुनौती को लेकर बेहद उत्साहित हैं।

शाह बानो के लाइफ पर बनने जा रही फिल्म का डायरेक्शन सुपर्ण वर्मा करेंगे। जो इससे पहले द फैमिली मैन सीजन 2, राना नायडू और द ट्रायल का डायरेक्शन कर चुके हैं। इस फिल्म का निर्माण जंगली पिक्चर्स, विशाल गुरनानी और जूही पारीख मेहता के साथ मिलकर करेगा।

कौन थीं शाह बानो

शाह बानो मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली थीं। 1978 में उनके पति मोहम्मद अहमद ने 62 वर्ष की उम्र में तलाक देकर घर से निकाल दिया था। शाह बानो के 5 बच्चे थे। पति से गुजारा भत्ता पाने का मामला 1981 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पति का कहना था कि वह शाह बानो को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में सीआरपीसी की धारा-125 पर फैसला दिया। यह धारा तलाक के केस में गुजारा भत्ता तय करने से जुड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो को गुजारा भत्ता देने के मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।

राजीव गांधी सरकार ने फैसला पलट दिया था

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाह बानो के पक्ष में आए न्यायालय के फैसले के खिलाफ देश भर में आंदोलन छेड़ दिया। देश के तमाम मुस्लिम संगठनों का कहना था कि न्यायालय उनके पारिवारिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करके उनके अधिकारों का हनन कर रहा है।

जब देश में इसका विरोध हुआ तो उस वक्त की राजीव गांधी सरकार ने 1986 में एक कानून बनाया। यह कानून द मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एक्ट 1986 कहलाया। इसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को डाइल्यूट कर दिया। कानून के तहत महिलाओं को सिर्फ इद्दत (सेपरेशन के वक्त) के दौरान ही गुजारा भत्ता मांगने की इजाजत मिली। राजीव गांधी सरकार के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा दे दिया था।

2019 में बना ट्रिपल तलाक पर बना कानून

उस वक्त BJP ने कहा था – हम सत्ता में आएंगे, तो पर्सनल लॉ में बदलाव करेंगे। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए सरकार से इस पर कानून बनाने के लिए कहा। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार को लगा कि दशकों पुराना एजेंडा पूरा करने का यही सही मौका है। 30 जुलाई 2019 को मोदी ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बना दिया।

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2025-01-15 01:00:00
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