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शिवपुरी के दो भाइयों का सब्जियों से 4 करोड़ टर्नओवर: ​​​​​​​100 एकड़ में लगाते हैं टमाटर, गोभी और शिमला मिर्च; तीन पॉली हाउस भी बनाए – Shivpuri News

शिवपुरी में दो किसान भाई उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर टमाटर और शिमला मिर्च की खेती कर लाखों रुपए कमा रहे हैं। इसके अलावा गोभी, बैगन, तरबूज, खीरा आदि की फसल भी करते हैं। खास बात है कि दोनों भाइयों को कोई फसल के लिए पौध नहीं लानी पड़ती। वे खुद ही 3 एकड़ जम

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दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में दोनों भाई गिरवर और महेंद्र रावत के बारे में जानेंगे कि वे कैसे सब्जियों की खेती करते हैं। यह दोनों भाई 2015 से सब्जियों की पैदावार कर रहे हैं। जिले के कोलारस तहसील के निवोदा गांव के किसान गिरवर रावत और उनका भाई महेन्द्र रावत करीब 100 एकड़ में हरी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। उन्होंने 3 एकड़ जमीन में 4 पॉली हाउस बना रखे हैं। इसमें वह टमाटर, शिमला मिर्च, तीखी मिर्च, गोभी, बैगन, तरबूज और खीरा की पौध खुद ही तैयार करते हैं। वर्तमान में उन्होंने 80 एकड़ में टमाटर की खेती कर रखी है, शेष 5 एकड़ में गोभी और 12 एकड़ में शिमला मिर्च की पैदावार हो रही है।

पॉली हाउस में टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी आदि के पौधे तैयार किए जाते हैं।

पॉली हाउस में बनता है बीज से पौधा गिरवर रावत बताते हैं कि उन्होंने दो एकड़ जमीन में चार पॉली हाउस का निर्माण करके रखा हुआ है। इनमें 3 और चार हजार वर्ग मीटर के पॉली हाउस हैं। सीड (बीज) से पौधे का निर्माण कराने के लिए 150 हॉल की कई ट्रे को लिया जाता है। जिसके प्रत्येक हॉल की गहराई 52 MM की होती है। इसके बाद कोकोपिट खाद को तैयार किया जाता है। बाद में खाद को इन ट्रे में डाल कर सीड (बीज) को डाला जाता है।

करीब 3 से 7 दिन के भीतर टमाटर, शिमला, तीखी मिर्ची, गोभी, बैगन, तरबूज और खीरा बीज अंकुरित हो जाता है। इसके बाद सभी ट्रे को पॉली हाउस में रख दिया जाता है। सभी की पौध तैयार होने में करीब 30 दिन का समय लगता है। इस बीच सभी पौधे में फव्वारा से पानी और जरूरत के हिसाब से फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना पड़ता है। पौधा तैयार होने के बाद इन्हें खेतों में रोपण के लिए ले जाया जाता है।

तकनीक का इस्तेमाल कर टमाटर से मोटा मुनाफा –

गिरवर रावत बताते हैं कि उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करके उन्होंने इस बार 80 एकड़ में टमाटर की फसल की हैं। खेत में टमाटर की पौध लगाने की शुरुवात इस बार उन्होंने 15 जुलाई से की थी। इसके बाद 15 सितंबर तक पौधा टमाटर का फल देना शुरू कर देता हैं। इसके बाद से टमाटर की खेप 15 सितंबर से 10 मार्च के लगभग मंडियों में जाना शुरू हो जाती हैं। उन्हें टमाटर की फसल बेचने मंडी नहीं जाना पड़ता हैं। उनके खेत से दिल्ली और उत्तरप्रदेश के व्यापारी खुद ही टमाटरों को क्रेटों में भरकर हर दिन ले जाते हैं। वर्तमान ने 800 से लेकर 900 क्रेट टमाटर विभिन्न मंडियों में जा रहा हैं। वर्तमान में प्रति क्रेट का भाव 660 रपए चल रहा हैं, लेकिन मंडियों में 500 रुपए से लेकर 1600 रुपए के बीच रहता हैं।

टमाटर की पौध लगाने की बिधि –

गिरवर रावत ने बताया कि टमाटर की खेती करने के लिए पहले खेत की जुताई करनी पड़ती हैं। फिर बाद में मशीन से बेड बनाये जाते हैं। इसके बाद खाद फर्टिलाइजर डाला जाता हैं। ड्रिप लाइन बिछाई जाती हैं। मशीन से मल्चिंग कर पौधे की ट्रांसप्लांटिंग की जाती हैं। पौधा लगने के 10 दिन बाद हाथों से प्रत्येक की ड्रेंचिंग (फर्टिलाइजर ) की जाती हैं। बाद में बांस और तार के मदद से पौधों को खड़ा किया जाता हैं। इस बीच जरुरत के अनुसार कीटनाशक का छिड़काव भी किया जाता हैं। इस तरह की प्रक्रिया शिमला, तीखी मिर्ची, गोभी, बैगन, तरबूज और खीरा के लिए की जाती हैं।

सब्जियों से मुनाफे की बात

गिरवर रावत बताते है कि 80 एकड़ में उन्होंने टमाटर लगाया है। इसमें 15 जुलाई से लेकर 10 मार्च तक उनका करीब 2 करोड़ का खर्च होगा, लेकिन अब तक डेढ़ करोड़ उनकी लागत से वापस मिल चुके हैं। बाजार में टमाटर जाने का सिलसिला मार्च के पहले सप्ताह तक जारी रहेगा। सब कुछ ठीक रहा तो उन्हें दो करोड़ रुपए का मुनाफा मिलेगा।

गिरवर बताते हैं कि उनके 12 एकड़ के खेत में 20 अगस्त को शिमला मिर्च की खेती की थी। करीब 40 दिन बाद फल आना शुरू हो चुका हैं। इसकी खेती में 15 लाख की लागत आई थी। उन्हें फरवरी तक चलने वाली शिमला मिर्च से 25 लाख के मुनाफे का अनुमान हैं। इसी प्रकार गोभी 10 अगस्त को बोई थी। 15 अक्टूबर तक फल आना शुरू हो गया था। अक्टूबर माह में बीस दिन के भीतर गोभी पर डेढ़ लाख खर्च कर 8 लाख का मुनाफा कमाया। अब फिर गोभी की फसल तैयार की जा रही हैं।

सोयाबीन और गेहूं की खेती पर रहते थे निर्भर

गिरवर रावत बताते हैं कि उनके पिता रामचरण लाल रावत पारम्परिक खेती गेहूं और सरसों की फसल करते थे। साल 2006 से हम दोनों भाई भी पिता की खेती में मदद करने लगे थे। उस वक्त सरसों और गेहूं से मुनाफा मिलता था, लेकिन संतुष्टि नहीं मिलती थी।गिरवर बताते हैं वह और उसका भाई साल 2015 में अंजड़ क्षेत्र में गए थे। यहां कुछ दिन रूककर टमाटर की खेती को तार और बांस पर होते देखी थी। गांव वापस आकर 4 एकड़ में टमाटर की खेती सपाट खेत में की थी। इसमें 2 लाख का खर्च आया था लेकिन मुनाफा 20 लाख का हुआ था, तभी टमाटर की खेती करने का मन बना लिया था।

टमाटर के पौधों को सीधा रखने के लिए बांस का सहारा लिया जाता है, ताकि वे झुकें नहीं।

टमाटर के पौधों को सीधा रखने के लिए बांस का सहारा लिया जाता है, ताकि वे झुकें नहीं।

लोन लेकर लगवाई ड्रिप सिस्टम

गिरवर ने बताया कि 2016 में 18 लाख का लोन लेकर 50 एकड़ के खेत में ड्रिप सिस्टम लगवाया था। इसमें सरकार की और से तौर पर 45 फीसदी सब्सिडी भी मिली थी। उन्होंने पहली बार ड्रिप सिस्टम और बांस बल्ली और तार की मदद से 2016 में 50 लाख की लागत लगाकर फसल की थी, लेकिन नोटबंदी होने के चलते मुनाफ़ा नहीं मिल सका था। इसके बाद साल 2017 में उन्हें सीड (बीज) का ज्ञान न होने के चलते मुनाफ़ा नहीं हुआ था।

टमाटर फसल की देखभाल होने पर भरपूर पैदावार होती है।

टमाटर फसल की देखभाल होने पर भरपूर पैदावार होती है।

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