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शिवराज के लिए सीट छोड़ने वाले रूठे नेता को मनाया: बीजेपी ने 2006 की रणनीति से किया डैमेज कंट्रोल; कमलनाथ से मिला टिकट का ऑफर – Madhya Pradesh News

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की परंपरागत बुधनी विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी रमाकांत भार्गव ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। उनकी नामांकन रैली में केंद्रीय मंत्री शिवराज, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तो शामिल हुए

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वैसे ये पहला मौका नहीं है, जब बुधनी में बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा हो। 18 साल पहले 2006 में जब इस सीट पर उपचुनाव हुआ था तब भी ऐसे ही मुश्किल राजनीतिक हालात बने थे। उस वक्त भी मुख्य किरदार राजेंद्र सिंह राजपूत ही थे। बाद में पार्टी ने राजपूत को वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया था। पार्टी सूत्र बताते हैं कि इस बार भी डैमेज कंट्रोल करने के लिए राजपूत को निगम – मंडल अध्यक्ष बनाने का भरोसा दिया गया है।

हालांकि, दैनिक भास्कर से बात करते हुए राजेंद्र राजपूत ने कहा कि उन्हें पद की कोई लालसा नहीं है। 18 साल पहले वे विधायक का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे इसलिए कार्यकर्ता चाहते थे कि इस बार उन्हें मौका मिले। वहीं बुधनी सीट के सह प्रभारी रामपाल सिंह का कहना है कि ये पार्टी का विषय था जिसे बेवजह तूल दिया गया। अब सब ठीक है।

बुधनी में 18 साल पहले किस तरह के राजनीतिक हालात बने थे, उस समय पार्टी ने कैसे डैमेज कंट्रोल किया था और इस बार क्या रणनीति इस्तेमाल की। पढ़िए रिपोर्ट-

बुधनी से बीजेपी उम्मीदवार रमाकांत भार्गव ने 26 अक्टूबर को नामांकन दाखिल किया।

पहले जानिए साल 2005 में क्या था पॉलिटिकल सीन 2003 के विधानसभा चुनाव में बुधनी से राजेंद्र सिंह राजपूत चुनाव जीते थे। उस समय उमा भारती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। कर्नाटक के हुबली में तिरंगा फहराने को लेकर कोर्ट के एक आदेश के बाद उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया। शिवराज सिंह चौहान उस समय भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विदिशा से सांसद थे।

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता बताते हैं कि साल 2005 में केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज को मप्र का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। 29 नवंबर 2005 को उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। अगले छह महीने में यानी 29 मई 2006 तक उन्हें मप्र विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था।

संगठन ने बुधनी सीट से तत्कालीन विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत को विधायकी छोड़ने के लिए कहा। गुप्ता कहते हैं कि राजपूत उस समय उमा भारती के समर्थक थे। उमा ने ही उन्हें बुधनी से टिकट दिलाया था और उनकी जीत में भी अहम भूमिका निभाई थी।

बुधनी से जब शिवराज के चुनाव लड़ने पर सहमति बनी तो राजेंद्र सिंह राजपूत ने केंद्रीय संगठन के सामने विधायकी छोड़ने के लिए हामी तो भर दी थी, मगर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया था। इधर शिवराज ने बतौर मुख्यमंत्री तीन महीने का कार्यकाल पूरा कर लिया था।

इसी बीच फरवरी 2006 में राजेंद्र सिंह राजपूत की तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें भोपाल के चिरायु अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया। राजपूत की तबीयत खराब होने से केंद्रीय संगठन भी सकते में आ गया था। इसके बाद ही राजपूत को निगम मंडल का अध्यक्ष बनाने का कमिटमेंट किया गया था।

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। इसके बाद बुधनी में मई 2006 में वोटिंग हुई और शिवराज ये चुनाव 36 हजार वोट के अंतर से जीते थे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल को हराया था।

18 साल बाद किरदार वही, पॉलिटिकल सीन थोड़ा अलग 18 साल बाद 2024 में बुधनी में एक बार फिर उपचुनाव हो रहा है। साल 2005 के पॉलिटिकल सीन ने बीजेपी को मुश्किल में डाला था, वैसा ही इस बार भी हुआ। फर्क इतना है कि राजेंद्र राजपूत को टिकट देने की मांग को लेकर कार्यकर्ताओं ने विरोध का झंडा बुलंद किया।

दरअसल, 21 अक्टूबर को नसरूल्लागंज में कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई थी जिसमें कार्यकर्ताओं ने बुधनी सीट के सह प्रभारी रामपाल सिंह के सामने रमाकांत भार्गव को टिकट देने का विरोध करते हुए राजेंद्र सिंह राजपूत को टिकट देने की मांग की थी। बुधनी से वे भी टिकट के दावेदार थे।

इस बैठक में मौजूद राजेंद्र राजपूत ने कार्यकर्ताओं को शांत कराने की कोशिश की। हालांकि, उन्होंने भी पार्टी संगठन के निर्णय को पीड़ा दायक बताया। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा–

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मैंने बैठक में कार्यकर्ताओं को आने से रोकने का भरपूर प्रयास किया। उनके हिम्मत-हौसले को सलाम है, जिन्होंने एक बुलावे पर आकर मेरा मान-सम्मान रखा। कार्यकर्ताओं का जो फैसला होगा वह मेरे लिए सर्वमान्य होगा। मुझे पद का लालच नहीं हैं। लेकिन, प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व का फैसला पीड़ादायक है।

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बुधनी से टिकट के दावेदार रहे राजेन्द्र सिंह राजपूत भी 21 अक्टूबर की बैठक में मौजूद थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को शांत कराने की कोशिश की थी।

बुधनी से टिकट के दावेदार रहे राजेन्द्र सिंह राजपूत भी 21 अक्टूबर की बैठक में मौजूद थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को शांत कराने की कोशिश की थी।

रामपाल सिंह को भाषण बीच में छोड़ना पड़ा

बैठक में कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के कारण रामपाल सिंह राजपूत को भाषण बीच में ही छोड़ना पड़ा। हालांकि, इस दौरान वे बार-बार उन्हें समझाने का प्रयास करते रहे। लेकिन कार्यकर्ता नारेबाजी करते रहे। प्रत्याशी बदलने की मांग पर अड़े रहे। कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी नहीं बदलने पर कांग्रेस के समर्थन में वोटिंग तक करने की बात कह दी।

रामपाल ने कार्यकर्ताओं से कहा कि- जो निर्णय केंद्रीय नेतृत्व ने लिया हैं, वह पार्टी का है। आप लोगों की भावनाओं को सुनने के लिए मैं आपके बीच आया हूं, आपकी बात को संगठन के बीच रखूंगा। इस बैठक के बाद सहप्रभारी रामपाल सिंह अपनी गाड़ी में राजेंद्र सिंह राजपूत को भोपाल लेकर आए।

यहां बीजेपी संगठन के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक हुई। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी संगठन की तरफ से उन्हें निगम मंडल में अध्यक्ष पद देने का आश्वासन दिया गया है।

कमलनाथ ने राजपूत को दिया था चुनाव लड़ने का ऑफर कार्यकर्ताओं ने राजेंद्र राजपूत को टिकट देने की मांग उठाई थी दूसरी तरफ राजपूत ने भी कहा कि कांग्रेस के राजकुमार पटेल को टिकट मिलने से पहले कांग्रेस ने उन्हें टिकट का ऑफर दिया था। खुद कमलनाथ उनके संपर्क में थे। मगर उन्होंने मना कर दिया और कहा कि मैं चुनाव लडूंगा तो बीजेपी से ही लडूंगा।

राजपूत कहते हैं कि मुझे पद की लालसा नहीं है। इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी उनसे संपर्क साधा था। पूर्व विधायक राजपूत ने कहा- राजकुमार का टिकट घोषित होने के तुरंत बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष का फोन आ गया कि आप समाजवादी से लड़ लो। हम अर्जुन आर्य को पीछे कर लेते हैं। अर्जुन आपके साथ काम करेंगे।

मैंने कहा- नहीं भैया, मैं पार्टी से जुड़ा आदमी हूं। मेरे पिता ने पार्टी के लिए जान कुर्बान कर दी। सीहोर में भाषण देते-देते अपने प्राण छोड़ दिए। मैं उनको कलंकित नहीं करूंगा। पार्टी टिकट देगी तो लडूंगा, ॉनहीं देगी तो मुझे टिकट की भूख नहीं है। इसके बाद मुझे बहुजन समाज पार्टी से भी फोन आया। उनसे भी यही कहा कि पार्टी टिकट देगी तो लडूंगा। दूसरी पार्टी से चुनाव नहीं लडूंगा।

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इसी तरह, विदिशा से सांसद का चुनाव लड़ने वाले रमाकांत भार्गव की कुल संपत्ति 2.40 करोड़ थी, जो बुधनी विधानसभा उपचुनाव के लिए जमा शपथ पत्र में 2 करोड़ 72 लाख 26 हजार 172 रुपए बताई गई है। इनकी संपत्ति में 32 लाख रुपए का इजाफा हुआ है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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