बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (शुक्रवार) वर्चुअली संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री छिंदवाड़ा में श्री बादलभोई जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय का लोकार्पण करेंगे। वहीं, खरगोन के सेगां
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छिंदवाड़ा में दशहरा मैदान में आयोजन छिंदवाड़ा में सुबह साढ़े 10 बजे दशहरा मैदान (पोलोग्राउंड) पर जनजाति गौरव दिवस का आयोजन होगा। प्रधानमंत्री मोदी यहीं से श्रीश्री बादलभोई जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय का लोकार्पण करेंगे। कार्यक्रम में सांसद बंटी विवेक साहू मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे।
शहडोल में सीएम रहेंगे मौजूद प्रधानमंत्री मोदी करीब 40 मिनट तक जनजातीय समुदाय को संबोधित करेंगे। कार्यक्रम की शुरुआत कन्या पूजन होगी। जहां राज्यपाल मंगुभाई पटेल और सीएम डॉ. मोहन यादव मौजूद रहेंगे। उनका टोपी, जैकेट और वीरन माला पहनाकर स्वागत किया जाएगा। जनजातीय कलाकारों द्वारा यहां प्रस्तुतियां भी दी जाएगी।
प्रधानमंत्री का संबोधन 11 बजे से 11.40 बजे तक होगा। वे 229 करोड़ के विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमिपूजन करेंगे। 12 बजे राज्यपाल और सीएम लाभार्थियों को हितलाभ वितरित करेंगे। 12.10 बजे सीएम का उद्बोधन और उनके बाद राज्यपाल जनजातीय समुदाय को संबोधित करेंगे। इसके बाद 1.30 बजे सीएम और राज्यपाल जबलपुर के लिए रवाना होंगे।
खरगोन में एकलव्य विद्यालय का शिलान्यास करेंगे
पीजी कॉलेज खरगोन के ऑडोटोरियम हॉल में आयोजित कार्यक्रम में जनजातीय गौरव योद्धाओं की प्रदर्शनी व समुदाय की महिलाओं की प्रदर्शनी लगाई गई है। पीएम यहां सेगांव एकलव्य विद्यालय का वर्चुअल शिलान्यास करेंगे। सहायक आयुक्त प्रशांत आर्य ने बताया कि कार्यक्रम में जनजातीय वर्ग की विभिन्न विभागों के हितग्राही एवं नेशनल लेवल के खिलाड़ियों का सम्मान होगा।
छिंदवाडा का संग्रहालय जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित
संग्रहालय की स्थापना 20 अप्रैल 1954 को हुई थी। 8 सितंबर 1997 को इसका नाम बदलकर श्री बादलभोई जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय कर दिया गया था। ट्राइबल रिचर्स इंस्टीट्यूट भोपाल की टीम की देखरेख में इसका कायाकल्प हुआ है।
40.69 करोड़ की लागत से 8.5 एकड़ भूमि पर बना यह संग्रहालय जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित है। संग्रहालय की दीवार पर टंट्या भील, भीमा नायक, बादल भोई, रघुनाथ सिंह मंडलोई, शंकर-शाह रघुनाथ शाह, सीताराम कंवर, राजा गंगाधर गोंड, ढिल्लन शाह गोंड, राजा अर्जुन सिंह गोंड की शौर्यगाथा को चित्रित किया गया है।
संग्रहालय में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को तो मिलेगी ही, खासकर छिंदवाड़ा में आदिवासी परंपरा से जुड़ी शिल्पकारी और यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से जुड़ी जानकारी भी म्यूजियम में मौजूद है।
संग्रहालय की विशेषता
- नए संग्रहालय भवन में जनजातीय संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों को प्रदर्शित करने के लिए 6 गैलरी बनाई गई हैं। इसमें एक कार्यशाला कक्ष, एक लाइब्रेरी, कार्यालय के लिए स्थान, 800 दर्शकों की क्षमता वाला ओपन एयर थिएटर, शिल्प बाजार (शिल्पग्राम) और एक ट्राइबल कैफेटेरिया भी है।
- पहली गैलरी रानी दुर्गावती को समर्पित: रानी दुर्गावती के संघर्ष, उनकी वीरता और उनकी महान विरासत को संजोने वाली यह गैलरी उनके शासन, जनजातीय समाज में उनके योगदान और बाहरी आक्रमणकारियों से उनके संघर्ष को प्रदर्शित करती है।
- दूसरी गैलरी में गोंड राजाओं का संघर्ष : इसमें ब्रिटिश शासनकाल में गोंड राजाओं द्वारा अपने राज्यों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए किए गए संघर्ष का चित्रण किया गया है। यहां गोंड जनजातीय राजाओं की स्वतंत्रता की इच्छा और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ उनकी लड़ाई को दिखाया गया है।
- तीसरी गैलरी में जंगल सत्याग्रह: 1927 के इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के विरोध में जनजातीय समाज द्वारा किए गए संघर्ष को ‘जंगल सत्याग्रह’ के रूप में यहां प्रस्तुत किया गया है। इसमें जंगलों पर अधिकार और वन संसाधनों के उपयोग के लिए जनजातीय समाज के आंदोलन को दर्शाया गया है।
- चौथी गैलरी में भील-भिलाला जनजाति का संघर्ष : भील-भिलाला जनजाति के उन वीर सेनानियों को समर्पित है, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध किया। यहां भीमा नायक, टंट्या भील जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का चित्रण है।
- पांचवी और छठवीं में कला एवं प्रदर्शनी: गैलरी पांच और छह को पेंटिंग और फोटो एग्जीबिशन के लिए आरक्षित किया गया है, जहां समय-समय पर प्रदर्शनी लगाई जाएगी, ताकि जनजातीय इतिहास, संस्कृति और उनके योगदान को जीवंत रखा जा सके।
कौन थे अमर शहीद बादल भोई
स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद बादल भोई का जन्म 1845 में छिन्दवाड़ा जिले की परासिया तहसील के ग्राम डुगरिया तितरा गांव में हुआ। पिता कल्याण सिंह भोई और मां विमला भोई की इकलौती संतान थे। स्वतंत्रता संग्राम में बादल भोई का अविस्मरणीय योगदान रहा है। सन् 1923 में तामिया में सम्पन्न कांग्रेस सभा में बादल भोई के नेतृत्व में हजारों आदिवासियों ने भाग लिया था। उसी सभा के बाद आदिवासी सेनानियों ने छिन्दवाड़ा के जिला अध्यक्ष निवास को घेरा था।
स्वतत्रंता सेनानी अर्जुन सिंह सिसौदिया के अनुसार ‘‘श्री बादल भोई ने अपने साथियों के साथ जिला अध्यक्ष के बंगले को घेरकर सरकारी खजाने पर धावा बोल दिया, जिसके फलस्वरूप निहत्थे आदिवासी क्रांतिकारियों पर लाठी चार्ज हुआ और श्री बादल भोई गिरफ्तार किए गए।
बादल भोई ने स्वतंत्रता सेनानी श्री विश्वनाथ साल्पेकर के नेतृत्व में 21 अगस्त 1930 को रामाकोना में जंगल का कानून तोड़ा। इस पर अंग्रेज सरकार ने बादल भोई को महाराष्ट्र जेल में डाल दिया, जहां सन् 1940 में जहर के कारण उनका देहांत हो गया। स्वतंत्रता- संग्राम में उनके योगदान को रेखांकित करने के उद्देश्य से राज्य शासन द्वारा छिन्दवाड़ा स्थित संग्रहालय का नामकरण ‘श्री बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय’ किया गया है।
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