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संत समागम में फैसला- केरल से केदारनाथ तक एकात्म यात्रा: चारों धाम, 4 मठ और 21 राज्यों से निकलेगी; दुनिया मनाएगी आदिशंकर जयंती – Khandwa News

प्रयागराज महाकुंभ में चल रहे एकात्म धाम शिविर में मंगलवार को संत समागम हुआ। मंच पर श्रृंगेरी शंकराचार्य विधुशेखर भारती, जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंदगिरी, स्वामी परमात्मानंद सहित 17 से ज्यादा संत मौजूद थे। प्रस्ताव आया कि केरल से केदारनाथ तक 17 हजार किलो

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कार्यक्रम के समापन संबोधन में श्रृंगेरी शंकराचार्य कहते हैं यह एक ऐतिहासिक क्षण हैं। मैं तीनों प्रस्तावों पर अपनी सहमति देता हूं। ऐसा कहते ही हजारों लोगों से खचाखच भरा सभागार तालियों की गढ़गढ़ाहट से गूंज उठा। संत समागम में आर्ष गुरूकुलम् राजकोट के स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने अपने संबोधन में संतों के बीच 3 प्रस्ताव रखे थे। स्वामी परमात्मानंद ने जैसे ही सभा के समक्ष ये प्रस्ताव रखे, पूरा सभागार ओंकार से गुंजायमान हो उठा।

जानिए, वो 3 प्रस्ताव, जो संत समागम में रखे गए

1. भारत में एकात्म बोध के जागरण हेतु नवंबर 2026 से अप्रेल 2027 तक शंकराचार्य के जन्म स्थान केरल के कालड़ी से शंकराचार्य के निर्वाण स्थान केदारनाथ तक 17000 किमी की शंकर दिग्विजय यात्रा निकाली जाए।

2. आदि गुरू के जन्मोत्सव यानी वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन को विश्व एकात्म दिवस के रूप में मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव भेजा जाए।

3. 2025 से 2035 के दशक को एकात्म दशक के रूप में जाना जाए, इसके लिए भी संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव भेजा जाए।

इस समागम का उद्देश्य शंकराचार्य जी के अद्वैत और एकात्म दर्शन को लोकव्यापी बनाना था। कार्यक्रम में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने आदिशंकराचार्य द्वारा रचित सौन्दर्य लहरी का गायन किया। इस कार्यक्रम के केंद्र में मध्यप्रदेश शासन का आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास का एकात्म धाम था।

शांति, प्रकृति और विज्ञान दुनिया की मांग, अद्वैत दर्शन इनका संरक्षक

परमात्मानंद सरस्वती ने कहा कि हमारी संस्कृति पूरी तरह से धार्मिक है। देश सेकुलर हो सकता है पर संस्कृति तो धार्मिक ही रहेगी, हिंदु धार्मिक है और सम्पूर्ण वैदिक परंपरा धार्मिक है। हमारी संस्कृति सत्य की संस्कृति है। आज की परिस्थितियां ठीक वैसी ही हैं जैसी आदिगुरु शंकराचार्य के जन्म के समय थी।

वेद विरोधी वातावरण था। वेदों को प्रमाण मानने से खारिज कर दिया गया था। समाज कई छोटे समुदायों में बंट गया था। सर्वत्र दुख और अशांति थी। मनुष्य प्रकृति का दमन कर संसार पर वर्चस्व कर रहा है। अमेरिका में बैठा आदमी कम्फर्ट में होकर भी दुखी है और किसी गरीब देश में अनकम्फर्टेबल सिचुएशन के कारण दुखी है।

ऐसे समय में शंकराचार्य ने लोगों को फिर से वैदिक परंपरा से जोड़ा। 1200 साल बाद महाकुंभ का यह आयोजन और यह संत समागम का कार्यक्रम उनके बिना संभव नहीं हो सकता। भाषा, जाति में बंटे समाज को एक करने के लिए अद्वैत दर्शन का लोकव्यापीकरण करना आवश्यक है। इसके बाद परमात्मानंद जी ने इन तीनों प्रस्तावों को रखा।

केरल से केदारनाथ तक 17 हजार किमी की दिग्विजय एकात्म यात्रा

पहले प्रस्ताव में केरल के कालडी से केदारनाथ तक 17 हजार किमी की यात्रा निकालने का था। यह यात्रा देश के चारों कोनों में स्थित चारों पीठों और चारों धामों से होकर गुजरेगी। यह यात्रा 21 राज्यों और 80 पवित्र स्थलों से होकर निकलेगी।

इसकी शुरुआत नवंबर 2027 से शंकराचार्य के जन्मोत्सव यानी अप्रैल 2027 या वैशाख शुक्ल पंचमी को होगी। इसके पक्ष में श्रृंगेरी शंकराचार्य ने कहा कि यह दिग्विजय यात्रा होकर रहेगी। देशभर के संत समुदायों का इसमें पूरा योगदान होगा। स्वामी अवधेशानंद जी ने कहा कि जूना अखाड़े के 15- 20 लाख साधु इस यात्रा में एकजुट होंगे और मैं दूसरे अखाड़ों को भी इसमें शामिल होने के लिए मनाऊंगा।

संतों के समक्ष प्रस्ताव पारित, यूएन में भेजे जाएंगे

संतों ने जिन तीन प्रस्तावों को पारित किया उनमें से दो के लिए यूनाइटेड नेशन में जाना होगा। क्योंकि विश्व दिवस और एकात्म दशक की मांग वहीं से पूरी होगी। जबकि एकात्म दिग्विजय यात्रा संतों, सरकारों और जनता के सहयोग से होगी।

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