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सबके सुने ताने “तुम दिव्यांग हो, कैसे खेलोगे?”…अब गोल्ड मेडल जीतकर दिया जवाब

पलामू. आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि “जब आंखों में अरमान लिया, मंजिल को अपना मान लिया, तो मुश्किल क्या आसान क्या, ठान लिया तो ठान लिया.” इस कहावत को पलामू जिले के खिलाड़ी राजेश कुमार मेहता जो कि दिव्यांग हैं, ने साबित कर दिखाया है कि आप जबतक खुद से नहीं हारते आपको कोई हरा नहीं सकता.

दरअसल, कंबोडिया के तनुई सिटी में आयोजित 12वीं एशियन पैरा गेम्स में पलामू के रहने वाले राजेश कुमार मेहता ने गोल्ड मेडल जीता है. जिसके लिए उन्होंने चंदे से पैसा इकठ्ठा किए थे. वहीं जिला पुलिस कप्तान रिश्मा रमेसन, समाज कल्याण पदाधिकारी नीता मैम, और नगर आयुक्त जावेद ने भी योगदान दिया था. जिसके बाद वो इस प्रतोगिता में भाग लेने पहुंचे थे. राजेश कुमार मेहता एक पैर से दिव्यांग है.

देश के नाम लाया मेडल
राजेश कुमार ने लोकल18 से खास बातचीत में कहा कि ये मेडल उन्होंने देश के नाम लाया है. इस खेल में जाने के लिए उन्हें 85 हजार रुपए की आवश्यकता थी. घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि इतना पैसा मिल सके. जिसके बाद उन्होंने चंदा इकट्ठा करना शुरू किया. जिसमें जिला प्रशासन का भी सहयोग मिला. तब जाकर उन्होंने इस खेल में हिस्सा लिया. एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने बताया कि उनका इंटरनेशनल प्रतियोगिता के लिए दो बार पहले भी चयन हुआ था. मगर पैसों के अभाव में प्रतियोगता में भाग नहीं ले सके. अबकी बार चंदा इकट्ठा कर खेल में भाग लेने पहुंचे और गोल्ड मेडल जीतकर लाए.

एक हादसे में गवाया था पैर

उन्होंने अपना पैर बचपन में ही गवा दिया. वर्ष 2004 में स्कूल जाते समय ट्रक की चपेट में आने से दुर्घटना घटी. जिसके बाद एक पैर को उन्होंने गवा दिया. हालांकि खेल में बचपन से हीं रुचि थी. लेकिन खेलने जाते समय लोगों द्वारा ताना दिया जाता था, कि तुम्हारा पैर नहीं है कैसे खेलोगे. लेकिन अपने दिव्यांगता को समस्या न समझते हुए एक पैर से हीं प्रैक्टिस करना शुरू किया. आज इंटरनेशन मैच में गोल्ड मेडल जीता है.

पोलियो की वजह से पिता की गई थी जान
उनकी घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. उनके पिता ब्रमदेव महतो का देहांत 2013 में पोलियो की वजह से हो गया. वे किसान थे. उनके जाने के बाद जिम्मेदारी भाई के कंधों पर आ गया. भाई पेंट पुट्टी का काम करते हैं. जिससे जैसे तैसे घर चलता है. राजेश अभी ग्रेजुएशन में इंग्लिश ऑनर्स से पढ़ाई कर रहे हैं. इसके साथ खेल में भी भाग लेते रहते हैं. अबतक वो नेशनल प्रतियोगिता में 13 मेडल जीत चुके है. वहीं इंटरनेशन मैच में पहली बार गोल्ड मेडल जीते है. भविष्य से देश के लिए और मेडल लाने का सपना है.

लोग देते थे ताने

उन्होंने कहा की जब भी खेलने जाते थे तो लोग ताने देते थे कि तुम दिव्यांग हो तुम कैसे खेलोगे. जिला स्कूल में अक्सर देखने को मिलता था कि खिलाड़ी खेल रहे हैं. मुझे भी रुचि रहती थी, लेकिन कोच संजय त्रिपाठी शुरू में दिव्यांगता की वजह से अवसर नहीं देते थे. बाद में उन्होंने रिक्वेस्ट करने पर मौका दिया. तब जाकर हम खेल में भाग ले पाए. आज मेडल जीते. लोग ताना देते थे उन्हें गलत साबित करना था, इसलिए भी उन्होंने खेल के प्रति रुचि दिखाते हुए सफलता हासिल किया है.

आर्थिक तंगी बड़ी समस्या

उन्होंने बताया की उनका आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है जिस वजह से लोग ज्यादा सपोर्ट नहीं करते है. उन्होंने  जिला प्रशासन से निवेदन किया है कि भविष्य में उन्हे ऐसे खेलों में भाग लेने का जरूर अवसर दें ताकि वो जिला और देश के नाम और मेडल ला सके.

Tags: Jharkhand news, Local18, Palamu news, Sports news, Success Story

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