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सरकारी नौकरी के लिए डॉक्टर का फर्जीवाड़ा: फर्जी सर्टिफिकेट से काम पर लगा, डीएमई दफ्तर ने मामला दबाया; पोल खुली तो इस्तीफा दिया – Madhya Pradesh News

मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। विभाग ने नीमच के मेडिकल कॉलेज के डेंटल डिपार्टमेंट के लिए जिस डॉक्टर को सिलेक्ट किया था, उसने फर्जी अनुभव सर्टिफिकेट से ये नौकरी हासिल की थी। जब म

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इस पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा उस कैंडिडेट ने किया, जो वेटिंग लिस्ट में पहले नंबर पर था। खास बात ये भी है कि डॉक्टर के फर्जीवाड़े को डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) का दफ्तर भी नहीं पकड़ सका। डीएमई ऑफिस के अधिकारियों ने मामले को दबाने की भी कोशिश की। जानिए. कैसे खुली डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एजुकेशन के सिलेक्शन प्रक्रिया की पूरी पोल….

अब जानिए किस तरह से पकड़ा गया फर्जीवाड़ा

  • प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेज श्योपुर, नीमच, मंदसौर, सिंगरौली और सिवनी में असिस्टेंट प्रोफेसर के 5 पदों के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने भर्ती निकाली थी।
  • नीमच मेडिकल कॉलेज के डेंटल विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती की जानी थी।
  • नीमच में इस पोस्ट के लिए 40 कैंडिडेट्स ने आवेदन किया था।
  • 7 जून 2024 को सभी कैंडिडेट्स के इंटरव्यू मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉर्पोरेशन लिमिटेड( MPPHCL) भोपाल के ऑफिस में हुए। इसी दिन रिजल्ट जारी किए।
  • इस एक पोस्ट के लिए डॉक्टर दुष्यंत पाल सिंह को सिलेक्ट किया गया था। वेटिंग लिस्ट में पहले नंबर पर डॉक्टर दीपक शर्मा थे।

डॉक्टर शर्मा ने गड़बड़ी पकड़ी, डीएमई ऑफिस को नजर नहीं आई

दुष्यंत पाल सिंह के सिलेक्शन के बाद जब डॉक्टर दीपक ने उसके डॉक्यूमेंट देखे तो उन्हें इस सिलेक्शन पर शक हुआ, लेकिन डीएमई दफ्तर को ये गड़बड़ी नजर नहीं आई। दरअसल, डॉक्टर दुष्यंत ने जो डॉक्यूमेंट जमा किए थे उसमें उन्होंने खुद को अक्टूबर 2019 से मार्च 2022 तक गौरी देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड हॉस्पिटल, दुर्गापुर पश्चिम बंगाल में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करना बताया था।

वहीं उन्होंने एक और डॉक्यूमेंट जमा किया था जिसमें उन्होंने साल 2021 में खुद को राजस्थान की आईसीएमआर यूनिवर्सिटी में रिसर्च फैलो बताया। डॉक्टर शर्मा ने ये दस्तावेज आरटीआई के जरिए हासिल किए थे। इनके आधार पर डॉ. शर्मा ने 10 जून 2024 को चिकित्सा शिक्षा विभाग को एक शिकायत की।

शिकायत में लिखा कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में सीनियर रैजिडैंट का लगाया गया अनुभव सर्टिफिकेट संदेह की श्रेणी में है। जिसकी जांच होनी चाहिए।

शिकायतकर्ता डॉक्टर दीपक शर्मा ने आरटीआई के जरिए सारी जानकारी जुटाई।

शिकायतकर्ता डॉक्टर दीपक शर्मा ने आरटीआई के जरिए सारी जानकारी जुटाई।

डॉक्टर शर्मा बोले- डीएमई ने मुझे ही गलत ठहरा दिया

भास्कर से बात करते हुए डॉक्टर दीपक शर्मा ने बताया कि शिकायत के बाद एक जांच कमेटी बनाई गई। डीएमई ने 20 जून की रात को फोन किया और कहा कि 21 जून को भोपाल आना है। यदि नहीं आए तो शिकायत रद्द कर दी जाएगी।

शर्मा कहते हैं कि मैं जैसे-तैसे अगले दिन मुरैना से भोपाल पहुंचा। यहां डीएमई दफ्तर के अधिकारियों ने मुझे ही गलत साबित करने की कोशिश की। इसके बाद मैं वापस मुरैना आ गया। अगस्त के महीने में डीएमई की तरफ से मुझे एक लेटर भेजा गया, जिसमें कहा कि आपकी शिकायत हमें निराधार प्रतीत होती है।

हेल्थ कमिश्नर ने कार्रवाई का भरोसा दिया, मगर कुछ नहीं हुआ

डॉ. दीपक कहते हैं कि मैंने दोबारा डीएमई दफ्तर में दस्तावेजों के साथ शिकायत की। जिसमें कहा कि जिस व्यक्ति को सिलेक्ट किया है वो गलत है। एक ही समय में व्यक्ति दो जगह कैसे काम कर सकता है। मैं तत्कालीन हेल्थ कमिश्नर तरुण पिथौड़े से भी मिला। उन्हें सब कुछ बताया। उन्होंने माना भी कि गड़बड़ हुई है।

इसके बाद उन्होंने डायरेक्टर ऑफ मेडिकल हेल्थ भुवनेश श्रीवास्तव को फोन किया। कहा कि मेरा वेटिंग क्लियर करें। साथ ही कमिश्नर सर ने सिलेक्ट हुए व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात भी कही थी। इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। कुछ दिनों बाद तरुण पिथौड़े का ट्रांसफर हो गया। डीएमई ने जांच की बात कहकर मामले को अटका कर रखा।

पोल खुली तो इस्तीफा दिया

सिलेक्शन के बाद दुष्यंत पाल सिंह ने बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर नीमच मेडिकल कॉलेज का डेंटल डिपार्टमेंट जॉइन किया था। मगर जैसे ही फर्जी सर्टिफिकेट की पोल खुली तो उसने रिजाइन कर दिया। डॉक्टर दीपक शर्मा ने नीमच मेडिकल कॉलेज के डीन को पत्र लिखकर इसके बारे में जानकारी चाही।

वहां से जवाब मिला कि जॉइनिंग और रिलीविंग की कार्रवाई डीएमई के स्तर पर होती है। मामला कोर्ट में है इसलिए इस संबंध में कुछ नहीं बता सकते। जबकि दुष्यंत पाल सिंह ने डेढ़ महीने नौकरी की और इस्तीफा नीमच मेडिकल कॉलेज के डीन को सौंपा। भास्कर से बात करते हुए डीन ने इसकी पुष्टि की है।

दूसरी तरफ भास्कर ने दुष्यंत पाल सिंह से भी बात की तो उसने कहा कि उसने इस्तीफा नहीं दिया बल्कि वह छुट्टी पर है। साथ ही फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर नौकरी हासिल करने के आरोपों से भी इनकार किया है।

हाईकोर्ट ने स्टे दिया, चार हफ्ते में देना है जवाब

दुष्यंत पाल के इस्तीफा देने और वेटिंग लिस्ट में पहले नंबर पर आने के बाद डॉक्टर दीपक शर्मा को नियुक्ति नहीं दी गई, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। डॉक्टर शर्मा के वकील आदित्य संघी का कहना है कि कोर्ट में हमने ये दलील दी कि जब पोस्ट खाली गई है तो याचिकाकर्ता को तुरंत नियुक्ति दी जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट के सामने सारे दस्तावेज भी पेश किए। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्टे दिया है।

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