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सरकार ने कह दिया- सिंगरौली में नया शहर बनाएंगे: जमीनी हकीकत- 1 लाख लोगों को नहीं पता कहां बसेंगे; 10 हजार मकानों की नपती हुई – Madhya Pradesh News

‘प्रदेश की खनन राजधानी कहे जाने वाले सिंगरौली को, खनन के साथ विकास के मद्देनजर एक नए नगर के रूप में विकसित किया जा रहा है। इससे लगभग 50 हजार नागरिकों को एक नवीन एवं सुव्यवस्थित नगर की सुविधाएं मिल सकेंगी।’

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प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने 12 मार्च को अपने बजट भाषण में सिंगरौली को नई जगह बसाने का जिक्र किया था। दरअसल, सिंगरौली के एक प्रमुख कस्बे मोरवा को शिफ्ट किए जाने की तैयारी है। इस कस्बे के नीचे 800 मिलियन टन कोयले का भंडार है। यह इतनी मात्रा में है कि इससे एनटीपीसी सिंगरौली की 20 साल की जरूरत पूरी होगी।

दैनिक भास्कर ने सिंगरौली के सबसे बड़े कस्बे मोरवा पहुंचकर इस प्रोजेक्ट की जमीनी हकीकत जानी। यहां रहने वाले लोगों से बात की, तो पता चला कि लोग यहां से हटने के लिए मानसिक तौर पर तैयार है। मगर, वे इस पसोपेश में है कि इतनी बड़ी आबादी को कहां बसाया जाएगा? प्रशासन ने अब तक स्थिति साफ नहीं की है।

वहीं प्रशासन का कहना है कि लोगों को कहां बसाया जाएगा ये नॉर्दर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) तय करेगा। राजस्व विभाग का केवल सहयोग रहेगा। दूसरी ओर एनसीएल भी बताने की स्थिति में नहीं है कि नया शहर कहां और कितनी दूर होगा। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट

पहले जानिए क्या है मोरवा को विस्थापित करने की प्लानिंग सिंगरौली में नॉर्दर्न कोल फील्ड्स की 10 कोयले की खदानें हैं। इन्हीं में से एक है जयंत खदान। जयंत प्रोजेक्ट के उत्तरी हिस्से से मोरवा कस्बा सटा हुआ है। लोग बताते हैं कि 5-10 साल पहले खदान से मोरवा जाने वाली सड़क थी, वो भी अब खदान की चपेट में आ चुकी है। बाद में एक नई सड़क बनाई गई है। अब जयंत खदान का एक्सटेंशन किया जा रहा है।

एनसीएल के पीआरओ राम विजय सिंह बताते हैं, देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2030 तक 1.5 बिलियन टन कोयला उत्खनन का लक्ष्य रखा गया है। जयंत एक्सटेंशन परियोजना सस्ती ऊर्जा के उत्पादन के लिए इसी दिशा में उठाया जा रहा बड़ा कदम है। वे बताते हैं-

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जयंत कोल माइन से वर्तमान में प्रतिवर्ष 30 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है। इस एक्सटेंशन के बाद जयंत से प्रतिवर्ष 37 मिलियन टन कोयला उत्पादन शुरू हो जाएगा।

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एमपी और यूपी के इलाकों में फैली हैं एनसीएल की 10 खदानें

एमपी और यूपी के इलाकों में फैली हैं एनसीएल की 10 खदानें

पिछले साल धारा-9 लगी, 10 हजार मकानों की नपती मोरवा कस्बे में केंद्र सरकार के निर्देश पर पिछले साल फरवरी में धारा-9 लगा दी गई है। कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन व विकास) अधिनियम 1957 के तहत आने वाली इस धारा में मोरवा के मकानों की नपती की जा रही है। एनसीएल के पीआरओ राम विजय सिंह के मुताबिक धारा-9 लागू होने के बाद अधिगृहीत किए जाने वाले क्षेत्र का ड्रोन सर्वे कराया गया।

इसके बाद मकानों की नपती का काम शुरू हो चुका है। अब तक 10 हजार से ज्यादा मकानों की नपती हो चुकी है। इसके बाद धारा-11 लागू होगी, जिसमें मुआवजा बांटने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। मोरवा कस्बे की जमीन के नीचे 800 मिलियन टन कोयला है। इसे निकालने के लिए 40 हजार मकान और करीब एक लाख की आबादी को पुर्नस्थापित किया जाएगा। इसमें 24 हजार करोड़ से ज्यादा का मुआवजा बांटा जाएगा।

किस जगह बसाएंगे किसी को नहीं बताया मोरवा के सामाजिक कार्यकर्ता कालिका प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि 1960 तक यह छोटा सा आदिवासी गांव होता था। तब यहां चारों ओर जंगल था। खदानें आना शुरू हुई तो बसाहट बढ़ती गई। यहां के लोगों ने ही खदानें चलाने वालों का पेट भरा है, उनकी जरुरतों के सामान जुटाए हैं, लेकिन विस्थापन उनकी नियति में है।

यहां फरवरी से धारा- 9 लग चुकी है, कई मकानों की नपती हो गई, लेकिन अब तक यह नहीं बताया हमें बसाएंगे कहां? जहां बसाएंगे वहां पेड़ भी हैं कि नहीं? आसपास तो नंगे पहाड़ और पत्थर ही बचे हैं, जहां बसाने वाले हैं वहां सालों पहले से पौधरोपण किया जाना चाहिए था। क्या केवल सड़क-नाली बना देने से नया शहर बस जाएगा? एनसीएल कुछ बताने को तैयार नहीं ?

भास्कर ने जब पीआरओ राम विजय सिंह से पूछा कि वह मोरवा कस्बे के लोगों को कहां बसाने वाले हैं? तो उन्होंने कहा- ये अभी नहीं बता सकते। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि जगह का खुलासा करेंगे तो जमीनों की खरीद फरोख्त का एक बड़ा खेल होगा। वहीं प्रशासन भी इसके बारे में बताने को तैयार नहीं है।

अब जानिए क्या कहते हैं मोरवा के लोग…

अंदाजा नहीं था कि खदान इतनी जल्दी पास आएगी भास्कर की टीम सिंगरौली रेलवे स्टेशन से साढ़े तीन किमी दूर मोरवा बस स्टैंड पहुंची। यहां मुलाकात हुई पान की दुकान चलाने वाले गयाप्रसाद जायसवाल से। जायसवाल के पिता 45 किमी दूर एक गांव में रहते थे। जायसवाल बताते हैं कि पिताजी के साथ पूरा परिवार सिंगरौली आ गया। 90 के दशक में ये दुकान शुरू की थी।

जब मैंने दुकान खोली तब कोयले की खदान मोरवा से काफी दूर थी। उस वक्त भी सभी को पता था कि खदान यहां तक आएगी। तब केवल सरकारी कंपनी एनसीएल की खुदाई करती थी। लोग कहते थे इतने धीरे-धीरे खुदाई हो रही है तो यहां तक खदान आने में 50 साल लगेंगे। मगर अचानक सब बदल गया। कंपनी ने जब से ठेके पर काम देना शुरू किया तब से तेजी से खुदाई होने लगी।

लोग बोले- हमें पता ही नहीं है कि कहां जाना है इसी बस स्टैंड पर सैलून चलाने वाले अरविंद कहते हैं, मैं पिछले 12 साल से दुकान चला रहा हूं। यहां के लोग अच्छे हैं, मगर अभी नर्वस हैं। सरकार ने नया शहर बनाने की बात की है, मगर किसी को नहीं पता कि जाना कहां है। इसी से लोग डरे हुए हैं। मेरी दुकान भी किराए की है। कहीं भी जाएंगे तो तीन-चार साल जमने में ही लगेगा। तब तक दाना पानी कैसे चलेगा, कुछ पता नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता कालिका प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि यहां से उजड़ने वालों में कई लोग ऐसे भी हैं जो करीब चार दशक पहले रिहंद बांध बनने पर उजड़े थे। अब फिर विस्थापित होंगे। बार-बार विस्थापित होना शायद यहां के लोगों की नियति है।

मोरवा कस्बा सिंगरौली नगर निगम का हिस्सा है।

मोरवा कस्बा सिंगरौली नगर निगम का हिस्सा है।

मंदिर भी उजड़ेगा, मस्जिद भी जाएगी मोरवा बाजार बस स्टैंड के आसपास फैला हुआ है। इसी इलाके में शिव मंदिर भी है तो यहीं से कुछ दूरी पर शहर की मस्जिद भी है। शहर के साथ यहां के धर्मस्थल भी शिफ्ट होंगे। मंदिर से जुड़े दिलीप शुक्ला बताते हैं, यह मंदिर करीब 60 साल पुराना है। जब कस्बा बना तब ये छोटा सा मंदिर था।

पहले यहां पानी की व्यवस्था नहीं थी। तब हम लोग तीन किमी दूर से पानी लाते थे। मोरवा विस्थापित होने वाला है, क्या मंदिर भी हटेगा? इस सवाल के जवाब में शुक्ला कहते हैं- जहां जाएंगे वहां मंदिर जाएगा। हम लोगों का आसरा ही यही है। अब सब हमारे हाथ में तो नहीं है।

मोरवा कस्बे का मुख्य बाजार।

मोरवा कस्बे का मुख्य बाजार।

लोगों के बीच चर्चा- एनसीएल पैसा देकर बसने का विकल्प देगा सिंगरौली के सामाजिक कार्यकर्ता अमरेश कहते हैं कि लोगों को पता नहीं है कि उन्हें कहां बसाया जाएगा? मगर, लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि एनसीएल के पास लोगों को बसाने का कोई प्लान नहीं है। लोगों को मुआवजा देकर ये कह दिया जाएगा कि वो जहां बसना चाहते हैं वहां जाकर बस जाएं।

अमरेश कहते हैं कि ज्यादातर लोग यही विकल्प चुनना पसंद करेंगे। मोरवा में रहने वाले लोग प्रदूषण का दंश झेल रहे हैं। वो दीवारें दिखाते हुए कहते हैं- यहां कितना भी रंग रोगन किया जाए, कोयले की डस्ट की वजह से दीवारें काली हो जाती हैं। कोयले की धूल को कम करने के लिए टैंकरों से पानी का छिड़काव होता है मगर ये नाकाफी है।

कोयले की डस्ट की वजह से मोरवा में हर घर की दीवार पर कालिख है।

कोयले की डस्ट की वजह से मोरवा में हर घर की दीवार पर कालिख है।

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