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सांची के भी दूध में मिलावट: राजगढ़ की डेयरी ने एक महीने में 4200 लीटर सिंथेटिक दूध खपाया; अफसर बोले- जांच करा रहे – Madhya Pradesh News

मध्य प्रदेश डेयरी फेडरेशन के सांची दूध की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो गए हैं। दरअसल, राजगढ़ जिले में खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग ने पिछले डेढ़ महीने में तीन प्राइवेट डेयरियों पर छापा मारा । यहां से बड़ी मात्रा में नकली दूध बनाने की सामग्री जब्त की गई।

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दस्तावेजों से ये भी पता चला कि एक महीन में डेयरी संचालक ने 4200 लीटर मिलावटी दूध, भोपाल दुग्ध संघ को सप्लाई किया था। खाद्य विभाग ने भोपाल दुग्ध संघ की सहकारी समिति को बेचे गए दूध की रसीदें बरामद की हैं। खाद्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि ये सिलसिला पिछले 6 महीने से चल रहा था।

हैरानी की बात है कि दुग्ध संघ इस मिलावट को पकड़ ही नहीं सका। भास्कर ने जब दुग्ध संघ के अधिकारियों से बात की, तो उन्होंने कहा कि पूरे मामले की जांच की जाएगी। आखिर मिलावटी दूध सांची के कलेक्शन सेंटर पर पकड़ा क्यों नहीं गया? मिलावटखोरों ने किस तरह से सिंथेटिक दूध खपाया? जानिए इस रिपोर्ट में…

राजगढ़ में 13 जनवरी को फूड डिपार्टमेंट ने नकली दूध नालियों में बहाया था।

असली दूध में मिक्स कर मिलावटी दूध बनता था राजगढ़ जिले के फूड डिपार्टमेंट और पुलिस की टीम ने 13 जनवरी 2025 को जितेंद्र गिरी की डेयरी पर नकली दूध बनाने वाली सामग्री जब्त की। जिसमें सोयाबीन तेल के पाउच, मिक्सर ग्राइंडर और यूरिया शामिल है। इस सामग्री को असली दूध में मिक्स कर मिलावटी दूध तैयार किया जाता था।

जिले के सीनियर फूड इंस्पेक्टर शिवराज पावक बताते हैं, जितेंद्र गिरी मिलावटी दूध की सप्लाई भोपाल दुग्ध संघ की सहकारी समिति गोस्वामी दुग्ध संकलन केंद्र, आगर( राजगढ़ का एक गांव) को करता था। सुबह और शाम दोनों समय 70-70 लीटर दूध की सप्लाई होती थी। इस सहकारी समिति से ये दूध सांची के नरसिंहगढ़ स्थित चिलिंग सेंटर को भेजा जाता था।

इसके बाद आगे सांची के भोपाल स्थित प्लांट तक पहुंच रहा था। पावक के मुताबिक जितेंद्र गिरी की डेयरी के दस्तावेजों की जांच की तो ये पता चला कि उसने एक महीने में 4200 लीटर मिलावटी दूध सांची के कलेक्शन सेंटर को भेजा है, लेकिन वह ये काम पिछले कई महीनों से कर रहा था।

गोरखपुरा में भी बन रहा था मिलावटी दूध राजगढ़ में ही 4 फरवरी को फूड डिपार्टमेंट ने कन्हैयालाल दांगी को नकली दूध तैयार करते पकड़ा। यहां माल्टोज पाउडर और तेल से नकली दूध तैयार किया जा रहा था। फूड इंस्पेक्टर पावक बताते हैं गोरखपुरा की सहकारी समिति सांची के नाम से बनाई गई थी। यहां से नरसिंहगढ़ के चिलिंग स्टेशन पर दूध की सप्लाई की जाती थी।

दस्तावेजों की जांच में पता चला कि एक महीने पहले डेयरी संचालक ने सांची के सेंटर को दूध की सप्लाई बंद कर दी थी। पावक कहते हैं-

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उससे पहले ये किस तरह का दूध सांची को सप्लाई कर रहा था ? उसने सप्लाई क्यों बंद कर दी? इसका जवाब डेयरी संचालक ने नहीं दिया है।

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जानिए मिलावटी दूध से कितना मुनाफा कमाया? स्टेट फूड लेबोरेटरी के सीनियर एनालिस्ट कैलाश सिलावट बताते हैं, सिंथेटिक मिल्क तैयार करने वाले लोग सभी सामग्रियों का इस्तेमाल इतने सही अनुपात में करते हैं कि आधुनिक मशीनों के इस्तेमाल के इसे पकड़ना मुश्किल होता है। सिंथेटिक दूध बनाने के लिए सोयाबीन तेल, माल्टोज पाउडर, यूरिया और कास्टिक सोडा का इस्तेमाल करते हैं।

  • सोयाबीन तेल से क्रीम बनाते हैं: सिलावट बताते हैं कि दूध में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर उसका फैट होता है, सिंथेटिक मिल्क बनाने वाले सोयाबीन तेल या पाम ऑयल की मिलावट इसी फैट को तैयार करने के लिए करते हैं।
  • माल्टोज पाउडर: इसे दूध में हल्की मिठास लाने और दूध को गाढ़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे दूध असली जैसा लगता है।
  • यूरिया: सिंथेटिक दूध को सफेद दिखाने के लिए उसमें थोड़ी मात्रा में यूरिया मिलाया जाता है। इससे दूध का नेचुरल कलर लाया जाता है।
  • डिटर्जेंट: कास्टिक सोडा का उपयोग तेल के फैट को दूध में मिक्स करने के लिए किया जाता है। सामान्य तौर पर तेल पानी में तैरने लगता है। सिंथेटिक दूध बनाने वाले सही अनुपात में डिटर्जेंट मिलाकर मिक्सर में दूध को फेंटते हैं।

भोपाल दुग्ध संघ मिलावट क्यों नहीं पकड़ सका? इस मामले में भास्कर ने मिलावटी दूध की प्रोसेस को बारीकी से समझने वाले जानकारों से बात की। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने बताया कि भोपाल दुग्ध संघ दूध की गुणवत्ता जांचने के लिए बीआर (ब्यूटाइरो रिफ्रेक्टोमीटर) मशीन का इस्तेमाल करता है।

ये मशीन दूध में रासायनिक मिलावट को पकड़ने में सक्षम है। इनका इस्तेमाल चिलिंग सेंटर्स पर ही होता है। जिन सेंटर्स पर दूध का कलेक्शन होता है वहां बीआर मशीन से जांच नहीं होती, केवल दूध का फैट मापा जाता है। ये सबसे बड़ा लूप होल है, जिसका फायदा मिलावटी दूध तैयार करने वाले उठाते हैं।

जानकार बताते हैं कि मिलावटी दूध तैयार करने वाले सोच-समझकर फैट की मात्रा तय करते हैं। इन्हें सीधे चिलिंग सेंटर की बजाय कलेक्शन सेंटर पर भेजा जाता है। जहां दूसरे किसानों का दूध भी कलेक्ट किया जाता है। यहां फैट की मात्रा की जांच की जाती है। सोयाबीन तेल की वजह से मिलावटी दूध में फैट की निर्धारित मात्रा होती है।

फैट की जांच करने पर ये दूध पास हो जाता है और दूसरे किसानों के दूध में मिक्स हो जाता है। मान लीजिए एक सेंटर पर 700 से 1 हजार लीटर दूध कलेक्ट होता है तो इसमें 70-100 लीटर मिलावटी दूध मिक्स कर दिया जाता है। इसका पता नहीं चलता। ये दूध चिलिंग सेंटर पहुंचता है। नकली दूध की मिलावट केवल 10 फीसदी होने से चिलिंग सेंटर पर बीआर मशीन रासायनिक मिलावट पकड़ नहीं पाती।

अब जानिए क्या कहते हैं दुग्ध संघ के अधिकारी? भास्कर ने इस मामले में भोपाल दुग्ध संघ के सीईओ आरपीएस तिवारी से बात की। उन्होंने कहा- फूड डिपार्टमेंट जब कार्रवाई करता है, तो वह इसकी जानकारी आधिकारिक तौर पर सांची को देता है। इस मामले में अभी फूड डिपार्टमेंट से कार्रवाई की जानकारी मिली नहीं है।

यदि किसी सहकारी समिति में इस तरह की गड़बड़ी पाई जाती है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है। पूरी समिति भंग कर दी जाती है। फूड डिपार्टमेंट से ऑफिशियल सूचना मिलने पर सप्लाई करने वाली समिति को ब्लैक लिस्ट किया जाएगा और कठोर कार्रवाई की जाएगी।

उन्होंने बताया कि दूध की जांच तीन श्रेणियों में की जाती है-

  • पहली: सहकारी दुग्ध समिति में किट से टेस्टिंग होती है और सचिव को दूध को चखकर देखना होता है।
  • दूसरी: इसके बाद चिलिंग सेंटर में बीआर मशीन से दूध की क्वालिटी की जांच की जाती है।
  • तीसरी: जब टैंकर सांची के मेन प्लांट आता है तब मॉडर्न मशीनों से जांच की जाती है। जिसमें छोटी से छोटी मिलावट भी जांच में सामने आ जाती है।

मिलावटी दूध से लिवर-किडनी डैमेज होने का खतरा मिलावटी दूध सेहत के लिए खतरनाक होता है। सीनियर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डा प्रणव रघुवंशी बताते हैं, नकली दूध से शॉर्ट और लॉन्ग टाइम समस्याएं होती है। शॉर्ट टाइम पीरियड की बात करें तो पेट में दर्द होना, दस्त लगना, उल्टी जैसा महसूस होना, स्किन एलर्जी जैसी प्रॉब्लम हो सकती है।

लॉन्ग टर्म इफेक्ट में पाचन संबंधी समस्याएं होने लगती है, जैसे अपच, पेट में जलन। इसके अलावा केमिकल की वजह से लिवर सिरोसिस जैसी बीमारी का भी खतरा है। कुछ केमिकल कार्सिनोजेनिक होते हैं जिनसे कैंसर भी हो सकता है।

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