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सागर में निकला कांधे वाली काली का चल समारोह: माता को कांधे पर लेकर निकले भक्त, आगे चला पलीता, चल माई काली माई के जयकारों से गूंजा शहर – Sagar News

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तीनबत्ती तिराहे पर आतिशबाजी के साथ मां दुर्गा का स्वागत किया, जयकारें गूंजे।

सागर में शनिवार को दुर्गा विसर्जन समारोह की धूम रही। देर रात शहर की प्रसिद्ध पुरव्याऊ टौरी की कांधे वाली काली का चल समारोह निकला। पुरव्याऊ टौरी से माता को कंधों पर बैठाकर भक्त विसर्जन के लिए लेकर निकले। इसके बाद हर ओर चल माई काली माई के जयघोष ही सुना

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आगे मशाल चल रही थी। सैकड़ों की संख्या में युवा सड़क पर दौड़ लगा रहे थे। वहीं पीछे श्रद्धालुओं के कांधे पर सवार मां दुर्गा जी की प्रतिमा चल रही थी। इस दृश्य को निहारने के लिए चल समारोह मार्ग पर हजारों लोग पहुंचे। माता का दिव्य और अलौकिक दृश्य हर कोई अपने कैमरे में कैद करने में जुटा था। देर रात माता का विसर्जन चकराघाट पर किया गया।

माता के दर्शन करने देर रात कटरा बाजार में उमड़ा भक्तों का जन सैलाब।

ब्रिटिशकाल में उजाले के लिए जली थी मशाल

कांधे वाली काली के आगे चलने वाली मशाल की कहानी भी रोचक है। बताया जाता है कि ब्रिटिशकाल में रोशनी की व्यवस्था नहीं होती थी। इसी के चलते मशाल के उजाले में मां को विसर्जन के लिए ले जाया जाता था। पलीता के साथ मां के चल समारोह की यह परंपरा तभी से चली आ रही है। 120वीं साल भी पलीता कमेटी ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। विशाल मशाल काफी दूर से ही मां के आगमन का संकेत दे देती है। चल माई काली माई के जयघोष के साथ भक्त मां को कंधों पर विसर्जन के लिए ले जाते हैं।

माता के दर्शनों के लिए उमड़ा जनसैलाब।

माता के दर्शनों के लिए उमड़ा जनसैलाब।

तीनबत्ती तिराहे पर माता के आते ही हुई आतिशबाजी

पुरव्याऊ टौरी की माता का चल समारोह देर रात तीनबत्ती तिराहे पर पहुंचा। जलती हुई मशाल और सड़क पर लोगों को दौड़ते देख हर तरफ चल माई काली माई के जयकारे लगने लगे। जैसे ही माता तिराहे पर पहुंची तो भक्तों ने फूलों की बरसात की। वहीं जमकर आतिशबाजी हुई। इस दौरान कटरा बाजार मार्ग पर स्वागत टेंट लगाए गए। जहां चल समारोह का स्वागत किया गया।

माता को कंधों पर लेकर निकले भक्त।

माता को कंधों पर लेकर निकले भक्त।

120 सालों से माता की स्थापना और परंपरा निभाई जा रही

जानकार बताते हैं कि शहर की सबसे प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कांधे वाली काली का एक सदी से भी ज्यादा का गरिमामय इतिहास है। पहली बार वर्ष 1905 में मां की स्थापना हुई थी। तभी से मां महिषासुर मर्दिनी के वैभव और स्वरूप में कहीं कोई परिवर्तन नहीं आया। इसके बाद से लगातार माता की स्थापना की जा रही है और पुरानी परंपराओं को निभाते हुए त्योहार मनाया जाता है।

गोलाकुआं क्षेत्र में माता की आरती करते भक्त, दर्शन करने लगी भक्तों की भीड़।

गोलाकुआं क्षेत्र में माता की आरती करते भक्त, दर्शन करने लगी भक्तों की भीड़।

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