सागर के युवा किसान परंपरागत खेती छोड़कर अश्वगंधा की औषधीय खेती कर रहे हैं। कारण, ये फसलें नकदी होती हैं, जो कम समय में मोटा मुनाफा दिलाती हैं। अश्वगंधा ऐसी ही औषधीय खेती है। इस बार एमपी के स्मार्ट किसान सीरीज में सागर जिले के रहली ब्लॉक के ग्राम रजवास
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प्रशांत परंपरागत खेती छोड़कर अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। अश्वगंधा की खेती करने की विधि उन्होंने यूट्यूब के वीडियो देखकर सीखी। शुरुआत में 50 डिसमिल जमीन (आधा एकड़) पर अश्वगंधा लगाई, जिसमें उन्होंने 7 से 10 हजार रुपए खर्चा किया और उपज आने पर 96 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। मुनाफे की खेती देखकर इस बार युवा किसान ने अपनी 6 एकड़ जमीन में अश्वगंधा की फसल लगाई है।
परंपरागत खेती छोड़ अश्वगंधा लगाया किसान प्रशांत पटेल सागर जिले के एक छोटे से गांव रजवास में रहते हैं। उन्होंने ग्रेजुएशन किया है। परिवार में शुरू से परंपरागत खेती होती आ रही है। उनका भी बचपन से खेती की तरफ रुझान था। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने खेती करना शुरू की। उनके पास सात एकड़ जमीन है। साथ में रहली में कियोस्क सेंटर चलाते हैं। खेती करने की शुरुआत में उन्होंने परंपरागत फसलें गेहूं, चना, मसूर की खेती की। लेकिन इन फसलों में लागत और मेहनत ज्यादा लगती है और मुनाफा कम होता है। इस कारण उन्होंने अश्वगंधा की खेती करने का विकल्प चुना।
किसान प्रशांत पटेल बताते हैं कि मोबाइल पर यूट्यूब के माध्यम से प्रदेश की मंडियों में फसलों के भाव देखता था। एक दिन नीमच मंडी के भाव देख रहा था तो उसमें अश्वगंधा के भाव सबसे ज्यादा थे। अश्वगंधा की खेती से जुड़े वीडियो खंगाले, उन्हें देखा। वीडियो देखने के बाद अश्वगंधा की खेती करने का मन बनाया। खेती करने के तरीकों और विधि के वीडियो भी यूट्यूब पर देखे।
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6 एकड़ जमीन पर लगाई अश्वगंधा की फसल।
अश्वगंधा की खेती ऐसे करें किसान किसान प्रशांत ने बताया कि सोयाबीन की फसल आने के बाद खेत खाली हो जाता है। खेत खाली होने के बाद दो बार उसकी गहरी जुताई कराएं। करीब 15 दिन तक खेत को खाली छोड़ दें। मिट्टी को भुरभुरी बना दें। अक्टूबर माह के आखिरी और नंवबर के पहले सप्ताह में बुआई करें।
अश्वगंधा की बुआई दो विधियों से की जा सकती है। पहली बीज का छिड़काव करके और दूसरा नर्सरी तैयार कर बीज को अंकुरित करके पौधों के रूप में रोपे जा सकते हैं। बुआई से पहले बीज को नीम के पत्तों के काढ़े से उपचारित करें, जिससे फफूंदी आदि से हानि न होने पाए।
अश्वगंधा की अच्छी फसल के लिए कतार का फासला 20 से 25 सेमी और पौधे से पौधे का 4-6 सेमी होना चाहिए। बीज 2-3 सेमी से अधिक गहरा नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से निदाई-गुड़ाई भी आसानी से की जा सकती है। एक एकड़ में करीब 7 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। यह फसल बुआई से 160-180 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसके बाद फसल की खुदाई कराई जा सकती है।
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अश्वगंधा के पौधों में आने लगे फूल।
एक एकड़ में 15 हजार खर्च, मुनाफा 1.50 लाख का किसान प्रशांत ने बताया कि अश्वगंधा की उपज लेने के लिए किसान को एक एकड़ में करीब 15 हजार रुपए का खर्चा आता है। इसमें खेती तैयार करना, कीटनाशक का छिड़काव, निदाई-गुड़ाई, खुदाई सभी शामिल होते हैं। फसल तैयार होने पर एक एकड़ में करीब 5 से 6 क्विंटल पैदावार होती है।
मंडी में अश्वगंधा 35 से 40 हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकता है। ऐसे में किसान को एक एकड़ में करीब 1.50 लाख रुपए का मुनाफा होता है। इसके साथ ही अश्वगंधा की जड़ के अलावा तना और बीज भी बिकता है। अश्वगंधा का भूसा 12 से 15 रुपए क्विंटल और बीज करीब 10 हजार रुपए क्विंटल तक बिकता है। किसान अश्वगंधा की खेती करके परंपरागत फसलों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
नीमच व मंदसौर की मंडी में बेचने जाते हैं फसल किसान ने बताया कि अश्वगंधा की उपज सागर जिले में न के बराबर है। पहली बार खेती की है। ऐसे में स्थानीय मंडियों में अश्वगंधा की खरीदी नहीं होती है। उपज बेचने के लिए नीमच और मंदसौर की मंडियों में जाना पड़ता है। इसके लिए पहले हम उपज की ग्रेडिंग करते हैं, फिर उपज लेकर नीमच मंडी जाते हैं। वहां उपज का अच्छा भाव मिलता है। अश्वगंधा की उपज (जड़) में जितना ज्यादा पाउडर होगा, कीमत उतनी अच्छी मिलती है।
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सागर के रहली ब्लॉक के किसान प्रशांत पटेल कर रहे अश्वगंधा की खेती।
दवाइयों में होता है अश्वगंधा का उपयोग किसान ने बताया कि अश्वगंधा को देशी औषधीय पौधा माना जाता है। यह जंगली फसल (जड़ी-बूटी) है। इसका भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में काफी उपयोग होता है। इसकी जड़ों से निकलने वाले पाउडर का उपयोग आयुर्वेद और यूनानी दवाइयों को बनाने में किया जाता है। इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है। परंपरागत फसलों के मुकाबले इसके दाम भी काफी अच्छे मिलते हैं।
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200 एकड़ में लगाई अश्वगंधा की फसल युवा किसान प्रशांत पटेल ने बताया कि सबसे पहले मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से अश्वगंधा की खेती शुरू की। अच्छा मुनाफा हुआ तो गांव और आसपास के युवा किसानों को अश्वगंधा की खेती करने की सलाह दी। उन्हें खेत में लाकर अपनी फसल दिखाई, जिससे वह प्रभावित हुए। नतीजा ग्राम रजवास समेत आसपास के गांवों में करीब 200 एकड़ में इस बार अश्वगंधा की फसल लगाई गई है। यह फसल किसानों के लिए मुनाफे की फसल साबित होगी। आने वाले समय में सागर जिले में अश्वगंधा का रकबा बढ़ने की पूरी संभावना है।
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