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सिंगाजी समाधि स्थल पर शरद पूर्णिमा पर मेला: यहां सालभर में आता है 100 क्विंटल घी का चढ़ावा, मन्नत से ठीक होते हैं पशुओं के रोग – Khandwa News

कहने को तो चरवाहे थे, पर अपना सांसारिक जीवन वो छोड़ संत हो गए। उनकी समाधी की पूजा पशुदेवता के रूप में होती है। लोगों का मानना है कि उनका चमत्कार ऐसा है कि बीमार पशु को उनके नाम का एक धागा बांध दो उसका रोग दूर हो जाता है। उनसे मन्नत मांगने वाले सिर्फ घ

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ये कहानी है निमाड़ के संत सिंगाजी की। 464 साल पहले बनी उनकी समाधि पर आज शरद पूर्णिमा पर मेला भर रहा है। यहां दूर-दूर से उन्हें मानने वाले लोग पहुंचते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने पर घी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। आंकड़ों में देखें तो साल भर में यहां 100 क्विंटल घी का चढ़ावा आता है। वहीं आज शरद पूर्णिमा से अगले दो दिन में यहां 50 क्विंटल घी का यहां स्टॉक हो जाएगा।

तो जानिए है कि संत सिंगाजी की कहानी…

पहले जाने कौन थे संत सिंगाजी

बड़वानी जिले के गांव खजूरी में जन्मे सिंगाजी महाराज ने 40 साल की उम्र में खंडवा के पिपलिया गांव में समाधि ली थी। ये समाधिस्थल आज 3 ओर से इंदिरा सागर डैम के बैक वाटर से घिरा हुआ है। डैम बनते समय समाधि डूब में जा रही थी। श्रद्धालुओं की मांग पर तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने यहां टापू बनाकर समाधिस्थल को सुरक्षित किया था।

मालवा-निमाड़ में मशहूर सिंगाजी महाराज संत कबीर के समकालीन संत थे। उन्हें 16वीं शताब्दी के महान कवियों और समाज सुधारकों में माना जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में गृहस्थ होकर भी निर्गुण उपासना की। वे पढ़-लिख नहीं सकते थे, लेकिन फिर भी भक्ति में वो जो पद बनाकर वे जनता के बीच गाते थे, उनके अनुयायी उन्हें लिख लेते थे। उनके पदों को आज भी निमाड़ क्षेत्र में बड़े ही भक्तिभाव से गाया जाता है। ऐसे पदों की संख्या लगभग 800 से भी अधिक बताई जाती है। संत काे पशुओं से बड़ा प्रेम था। ऐसे में उन्हें मानने वाले ज्यादातर पशुपालक है। वे अपने संत से मवेशियों के गुम होने, दूध न देने या फिर बीमार पड़ने पर मन्नत मांगते हैं, और ऐसा करने पर वो मिल जाते हैं या ठीक हो जाते हैं।

वो घटना, जिससे प्रेरित होकर संत बना सिंगाजी

सिंगाजी की प्रतिभा से प्रेरित होकर गांव के जमींदार ने उन्हें अपना सरदार नियुक्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने 12 साल जमींदार की सेवा की। बाद में भामागढ़ के राजा के पत्रवाहक का काम भी किया। एक दिन जब वे घोड़े पर सवार होकर राजा के काम से कहीं जा रहे थे। तब रास्ते में वो गुरु मनरंग स्वामी के प्रवचन सुनने बैठ गए।

उनके प्रवचन से प्रभावित होकर उसी मनरंग स्वामी से अनुरोध किया कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें, लेकिन महात्मा ने कहा कि तुम गृहस्थ जीवन जी रहे हो, इसलिए तुम अपने उस धर्म का पालन करो। फिर भी, अगर तुम इसे अपनाना चाहते हो, तो सबसे पहले तुम्हें मोह-माया का त्याग करना पड़ेगा। इसके बाद सिंगाजी ने उसी समय राजा की नौकरी छोड़कर संन्यास लेने का मन बना लिया।

ऐसे में सिंगाजी को रोकने के लिए राजा ने वेतन बढ़ाने का ऑफर भी दिया, लेकिन ये लुभावना ऑफर भी उन्हें नहीं रोक सका। उन्होंने गुरु मनरंग स्वामी जी से दीक्षा ले ली और 40 साल की उम्र में ही उन्होंने समाधि ले ली।

चढ़ावे के घी का कहा होता है इस्तेमाल

ट्रस्ट से जुड़े लोगों का कहना हैं कि जब मन्नत का सिलसिला शुरू हुआ तो चढ़ावे में आने वाले घी का स्टॉक करना ही बड़ी चुनौती बन गई। इस घी को बेचा नहीं जाता। ऐसे में ट्रस्ट के लोगों ने फैसला लिया कि इस घी का रोजाना उपयोग होगा। ऐसे यहां जो लोग मन्नत के बाद आकर प्रसादी बनाते हैं उसे उसमें इस घी का इस्तेमाल किया जाता है। यहां रोजाना 11-3 बजे तक दाल-बाफले बनाते हैं और भंडारा चलता रहा है। उसी में इस घी का उपयोग होता है। वहीं पूरे साल लगभग 10 से 12 क्विंटल घी का स्टॉक हमेशा रहता है।

राजघराने को मिला संतान सुख

मंदिर के महंत रतनलाल महाराज बताते हैं कि श्रद्धालु संत सिंगाजी महाराज से मवेशियों के सुखी, सुरक्षित रहने के साथ ही संतान सुख की मन्नतें भी मांगते हैं। झाबुआ राजघराने के राजा नरेंद्र सिंह ने संतान सुख के लिए यहां मन्नत मांगी थी। उनकी मन्नत पूरी हुई, तब से उनके वंशज आज भी पैदल निशान लेकर यहां आते हैं। संत सिंगाजी के दरबार में सबसे पहला निशान झाबुआ राजघराने का ही चढ़ता है।

ऐसे पहुंच सकते हैं सिंगाजी धाम

संत सिंगाजी समाधि स्थल खंडवा से 50 किलोमीटर दूर है। खंडवा पहुंचने के लिए कई ट्रेन मिल जाएंगी। यहां से बस या लोकल ट्रेन से बीड़ जाना होगा। बीड़ खंडवा से 40 किलोमीटर दूर है। बीड़ से समाधि स्थल तक के लिए ऑटो चलते हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से इसकी दूरी 72 किलोमीटर है। ओंकारेश्वर से सनावद होकर मूंदी से यहां पहुंचा सकता है। खंडवा से बाइक या कार से जाना हो तो खंडवा से पुनासा रोड पर ही 32 किलोमीटर दूरी पर मूंदी है। मूंदी से 12 किलोमीटर दूरी पर सिंगाजी समाधीस्थल है।

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