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सिंगापुर जाने के लिए ‘प्रोग्रामर’ बन गए ‘प्रिंसिपल’: स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने खुद के बनाए नियम तोड़े, 68 लोगों का पहला बैच रवाना – Madhya Pradesh News

स्टार्स परियोजना (स्ट्रेंथनिंग टीचिंग-लर्निंग एण्ड रिजल्ट्स फॉर स्टेट्स प्रोजेक्ट) के तहत मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग का 68 सदस्यीय दल 5 जनवरी को सिंगापुर रवाना हो गया है। स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से इस विदेश यात्रा के लिए उम्र, पद और परफॉर्में

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अधिकारियों ने परफॉर्मेंस का क्राइटेरिया तो बरकरार रखा मगर उम्र और पद का नियम खुद ही तोड़ दिया। खास बात ये है कि जिस अफसर ने ये नियम बनाए वे खुद भी इस अध्ययन दल में शामिल हैं और वो खुद उम्र के क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठते।

साथ ही कुछ अफसरों ने विदेश यात्रा पर जाने के लिए अपना पद ही बदल दिया। वे काम कंप्यूटर प्रोग्रामर का करते हैं और विदेश यात्रा के लिए वो प्रिंसिपल बन गए। विदेश जाने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरों ने किस तरह से नियमों को तोड़ा है? पढ़िए रिपोर्ट..

पहले जानिए क्या नियम बनाए गए थे

सिंगापुर यात्रा के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने परफॉर्मेंस, पद और उम्र का क्राइटेरिया तय किया था।

परफॉर्मेंस : इस क्राइटेरिया के मुताबिक वे प्राचार्य और शिक्षक दौरे के लिए पात्र है, जिनके स्कूल का बोर्ड एग्जाम का रिजल्ट 90% या इससे ज्यादा रहा है।

पद: इस क्राइटेरिया के मुताबिक स्कूलों के प्रिंसिपल और ऐसे टीचर जो प्रिंसिपल के समकक्ष पद पर नियुक्त है वो पात्र है।

उम्र: ऐसे अधिकारी और प्राचार्य जिनका जन्म जनवरी 1966 से पहले नहीं हुआ हो, यानी उनकी उम्र 58 साल से ज्यादा न हो, या वे 2028-29 में रिटायर न हो रहे हो।

अब जानिए किस नियम का पालन हुआ किसे तोड़ा गया

इस विदेश यात्रा के लिए केवल परफॉर्मेंस के नियम का पालन किया गया। दरअसल, ये नियम स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों के लिए था, इसलिए इसका पालन हुआ। इस दौरे पर 49 स्कूल प्राचार्य गए हैं। बाकी दोनों नियम अधिकारियों ने ही तोड़ दिए।

पदनाम बदलकर यात्रा का टिकट कटवाया

स्कूल शिक्षा विभाग के 19 अधिकारी इस दौरे पर गए हैं। इसमें महेश मूलचंदानी, देवेंद्र सिसौदिया और शेखर सराठे राज्य शिक्षा केंद्र में प्रोग्रामर के पद पर काम कर रहे हैं। सिंगापुर यात्रा के लिए इन्होंने अपने नाम के आगे प्रिंसिपल, आईटी( डेटा मैनेजमेंट) लिखवाया। देवेंद्र सिसौदिया का नाम लिस्ट में शामिल था, लेकिन बाद में उनका नाम हट गया और वे ट्रेनिंग प्रोग्राम पर नहीं गए।

साथ ही ऐसे अधिकारी जो दूसरे विभाग से प्रतिनियुक्ति पर स्कूल शिक्षा विभाग में आए हैं वे भी इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए सिंगापुर गए हैं। इसमें प्रतिनियुक्ति पर तैनात ओएसडी चंद्रशेखर सोलंकी है। सोलंकी 5 साल पहले दक्षिण कोरिया के दौरे पर भी गए थे।

1966 से पहले जन्मे अधिकारी भी सिंगापुर यात्रा पर

विदेश यात्रा के नियमों में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि 1966 से पहले जन्मे अधिकारी इस दौरे में शामिल नहीं हो सकते। लेकिन, लिस्ट में 4 ऐसे अधिकारी हैं जिनका जन्म 1966 से पहले हुआ है। खास बात ये है कि राज्य शिक्षा केंद्र के एडिशनल डायरेक्टर शितांशु शुक्ला ने ही ये नियम बनाए हैं।

वो खुद भी इस यात्रा पर गए हैं। उनकी जन्मतिथि 1964 हैं यानी वे साठ साल के हैं। इसके अलावा राज्य शिक्षा केंद्र के एडिशनल डायरेक्ट ओमकारलाल मंडलोई, राज्य शिक्षा केंद्र के फाइनेंस कंट्रोलर पंकज मोहन और प्रोग्रामर महेश मूलचंदानी का जन्म भी 1965 में हुआ है। इसी तरह प्रोग्रामर शेखर सराठे का जन्म भी 1964 में हुआ है।

यानी इन सभी की उम्र 58 साल से ज्यादा है। उम्र का क्राइटेरिया इसलिए भी रखा गया था ताकि ट्रेनिंग प्रोग्राम से सीखी गई तकनीक को अधिकारियों को जमीन पर उतारने का मौका मिल सके। वे रिटायर हो जाएंगे तो फिर उसका फायदा नहीं मिल सकेगा। मगर, ये सभी अधिकारी 2028 या 2029 में रिटायर होने वाले हैं।

अधिकारी बोले- नियमों को तोड़कर विदेश जाने वालों से खर्च वसूलेंगे

इस बारे में दैनिक भास्कर ने जब स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव और आईएएस अधिकारी संजय गोयल से बात की तो उन्होंने कहा कि इस स्टडी टूर पर शिक्षकों को भेजने का मकसद है कि वे लोग यहां से पढ़ाने की नई तकनीकें सीखें और वापस लौटकर प्रदेश के छात्रों को उन तकनीकों का लाभ दिलाएं।

जो लोग इस टूर पर गए हैं वो प्रदेश के मास्टर ट्रेनर होंगे। ये सभी लोग वापस आएंगे तब इनसे प्रेजेंटेशन के जरिए पूछा जाएगा कि इन्होंने 6 दिन में वहां क्या सीखा और देखा। जहां तक उन लोगों का सवाल है जो नियमों को तोड़कर विदेश यात्रा पर गए हैं। यदि ये साबित हो जाता है कि उन्होंने नियम तोड़े हैं, तो उनसे यात्रा का पूरा खर्च वसूल किया जाएगा।

पांच साल पहले भी हुई थी विदेश यात्रा

पांच साल पहले, स्कूल शिक्षा विभाग ने दक्षिण कोरिया की यात्रा आयोजित की थी, जिसमें तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी, प्रमुख सचिव और अन्य विभागीय अधिकारी सहित 200 से अधिक लोग शामिल थे। यह यात्रा तीन चरणों में आयोजित की गई थी और इसमें करीब 10 करोड़ रुपए का खर्च आया था।

दक्षिण कोरिया की इस यात्रा के बाद टीम ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, और तत्कालीन प्रमुख सचिव को प्रेजेंटेशन भी दिया था। रिपोर्ट में शैक्षणिक सुधारों के लिए कई सिफारिशें की गई थीं। इनमें स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार, हाई-टेक क्लास रुम और व्यवसायिक पाठ्यक्रम को शामिल करने जैसे सुझाव शामिल थे।

इन सुधारों को लागू करने के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कोई खास असर नहीं दिखा। इसके अलावा विभाग दिल्ली के सरकारी स्कूलों और फिर बेंगलुरु के स्कूलों को देखने के लिए भी प्राचार्यों को भेज चुका है। इन यात्राओं पर भी 5-7 लाख रु. खर्च हुए थे।

दक्षिण कोरिया गए अधिकारियों ने कुछ नहीं सीखा

दक्षिण कोरिया के टूर पर गए अधिकारियों के दल में कुछ अधिकारी अभी भी विभाग में काम कर रहे हैं तो कुछ रिटायर हो गए हैं। भास्कर ने रिटायर हो चुके अधिकारियों से पूछा कि उन्होंने वहां क्या सीखा था और स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता कैसे सुधरी तो उनमें से एक भी जवाब नहीं दे पाया।

ब्रजेश सक्सेना, रिटायर अधिकारी, राज्य शिक्षा केंद्र: ‘हम वहां एजुकेशन पॉलिसी का अध्ययन और अवलोकन करने गए थे’। जब उनसे पूछा गया कि वहां क्या सीखा और कौन सी नीति लागू हुई, तो बोले- ‘विभाग से रिटायर हुए काफी समय हो गया है। आप विभाग के वर्तमान अधिकारियों से पूछें।’

आर. के. तिवारी, रिटायर अधिकारी, राज्य शिक्षा केंद्र: ‘आप वर्तमान में पदस्थ अधिकारियों से पूछिए। मैं अब रिटायर हो चुका हूं।’

अरुण भार्गव, रिटायर अधिकारी, राज्य शिक्षा केंद्र: आपको क्यों जानना है? अभी के अधिकारियों से पूछिए, इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

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