दमिश्क4 मिनट पहले
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सीरिया में 11 दिन से जारी गृह युद्ध के बीच चरमपंथी ग्रुप हयात तहरीर अल-शाम ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति बशर अल असद देश छोड़कर भाग चुके हैं। असद के देश छोड़ने के बाद सीरियाई PM ने विद्रोहियों को सत्ता सौंपने का प्रस्ताव दिया है। राजधानी दमिश्क में स्थानीय समय के मुताबिक रविवार शाम 4 बजे से सोमवार सुबह 5 बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया।
ब्रिटेन और इजराइल समेत कई यूरोपी देशों ने बशर सरकार के खात्मे का स्वागत किया है। वहीं, रूस के विदेश मंत्रालय का कहना है कि बशर अल-असद ने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया है। रूसी मीडिया का दावा है कि, असद ने मॉस्को में शरण ली है।
बशर विद्रोही गुटों को शांतिपूर्वक सत्ता सौंपने के लिए राजी हो गए हैं। दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि असद को बचाने में उनके सहयोगी रूसी राष्ट्रपति पुतिन की कोई दिलचस्पी नहीं है।
राष्ट्रपति असद के देश छोड़ने के बाद सीरियाई नागरिक उनके आवास में घुस गए। नागरिकों ने राष्ट्रपति भवन में लूटपाट की और वहां मौजूद सामान अपने साथ ले गए।
दमिश्क में विद्रोहियों के घुसने के बाद देश छोड़ने के लिए एयरपोर्ट पर भगदड़ मची।
लड़ाकों ने दमिश्क में कई जगह असद परिवार की निशानियों को नष्ट करना शुरू कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति और बशर के पिता हाफिज अल-असद के स्टैच्यू को रौंदता विद्रोही।
अलेप्पो से शुरू हुई जंग 11 दिन में दमिश्क पहुंची
सीरिया में 27 नवंबर को सेना और सीरियाई विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम (HTS) के बीच 2020 के सीजफायर के बाद फिर संघर्ष शुरू हुआ था। इसके बाद 1 दिसंबर को विद्रोहियों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया। इसे राष्ट्रपति बशर अल असद ने सीरिया की जंग के दौरान 4 साल की लड़ाई के बाद जीता था।
अलेप्पो जीतने के 4 दिन बाद विद्रोही गुटों ने एक और बड़े शहर हमा और फिर 6 दिसंबर को दारा पर कब्जा कर लिया। दारा वही शहर है, जहां से 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई थी और पूरे देश में जंग छिड़ गई थी। इसके बाद विद्रोही लड़ाके दारा शहर की तरफ से राजधानी दमिश्क में घुस गए।
संघर्ष की वजह से अब तक 3.70 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। हालांकि लोग असद सरकार के गिरने की खुशी मना रहे हैं।
इजराइल-सीरिया के बीच बफर जोन में घुसे इजराइली सैनिक
सीरिया में असद के भागने के बाद इजराइली सेना दोनों देशों के बीच बने बफर जोन गोलान हाइट्स में घुस गई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इजराइली नागरिकों की सुरक्षा के लिए किया गया है। दरअसल, 1967 की सिक्स डे वॉर के दौरान इजराइल ने सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। इजराइल, सीरिया के साथ 83 किलोमीटर की सीमा साझा करता है।
सीरिया में असद के भागने के बाद इजराइली सेना दोनों देशों के बीच बने बफर जोन गोलान हाइट्स में घुस गई है।
भारत के नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी
सीरिया के हालात को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कल ही ट्रैवल एडवाइजरी जारी कर दी थी। भारतीय नागरिकों से तत्काल सीरिया छोड़ने के लिए कहा गया है। साथ ही भारतीयों से सीरिया जाने से भी मना किया गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा, कि सीरिया में रह रहे भारतीय दमिश्क में स्थित भारतीय दूतावास के संपर्क में रहें।
राजधानी दमिश्क में गोलीबारी कर जश्न मनाया गया।
3 पॉइंट्स में समझिए… विद्रोह का क्या होगा असर…
1. वर्चस्व की लड़ाई: यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस की प्रोफेसर मोना याकूबियन का कहना है कि यह पश्चिम एशिया में वर्चस्व की लड़ाई है। सीरिया भूराजनीतिक रूप से अहम है। इसकी सीमा इराक, तुर्किये, जॉर्डन, लेबनान व इजराइल जैसे देशों से लगती है। सीरिया पर नियंत्रण अहम व्यापार मार्गों, ऊर्जा गलियारों तक पहुंच प्रदान करता है, और पूरे क्षेत्र में प्रभाव डालने के लिए एक आधार प्रदान करता है।
2. रूस पर बड़ा असर: विद्रोह का रूस पर बड़ा असर होगा। पश्चिमी एशिया में सीरिया उसका सबसे भरोसेमंद पार्टनर है। साथ ही 2011 में बशर के खिलाफ विद्रोह के बाद से रूस बशर को हर तरह की सैन्य, आर्थिक व रणनीतिक मदद देता रहा है। इस कारण रूस चाहता है कि बशर सत्ता में बने रहें। साथ ही विद्रोहियों को अमेरिकी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में यदि बशर जाते हैं तो इसका बड़ा नुकसान रूस को होगा।
3. तेल की कीमत में उछाल संभव:
भारत व सीरिया के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। विद्रोह नहीं रुका तो कच्चे तेल के दामों में उछाल देखने को मिलेगा। इससे भारत पर असर पड़ेगा। वहीं, हाल में पावर और सोलर प्लांट प्रोजेक्ट पर दोनों मुल्क साथ काम कर रहे हैं। भारत ने 2022 में इसके लिए 28 करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा की थी। विद्रोह के बढ़ने पर इन प्रोजेक्ट पर असर होगा। 2008 में बशर भारत का दौरा कर चुके हैं।
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