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सौरभ शर्मा की अग्रिम जमानत निरस्त, अभी भी दुबई में ही है RTO का पूर्व आरक्षक

मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग में आरक्षक रहते भोपाल के सौरभ शर्मा ने खूब भ्रष्टाचार किया, जिसके खुलासे पूरे देश को हैरान कर रहे हैं। अब पता चला है कि सौरभ शर्मा ने सरकारी नौकरी भी फर्जी तरीके से पाई थी। बड़ा भाई पहले से सरकारी नौकरी में है, यह बात सौरभ की मां ने छिपाई थी।

By Arvind Dubey

Publish Date: Thu, 26 Dec 2024 07:36:07 AM (IST)

Updated Date: Thu, 26 Dec 2024 07:13:10 PM (IST)

अपनी पत्नी के साथ सौरभ शर्मा (फाइल फोटो)

HighLights

  1. फरार सौरभ शर्मा ने अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी
  2. अधिवक्ता के माध्यम से जिला कोर्ट में लगाई थी अर्जी
  3. अपराध की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने निरस्त की

अमित मिश्रा, ग्वालियर। मप्र परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा ने गुरुवार को अपने अधिवक्ता के माध्यम से जिला कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी पेश की। जिसकी सुनवाई करते हुए विशेष न्यायाधीश (लोकायुक्त) राम प्रसाद मिश्र ने उनकी अग्रिम जमानत निरस्त कर दी।

शासन की ओर से विशेष लोक अभियोजक विवेक गौर ने जमानत पर आपत्ति प्रस्तुत की। न्यायालय ने माना कि अपराध की गंभीरता तथा अन्वेषण में आरोपित से पूछताछ किए जाने की आवश्यकता है और आरोपित की अनुपलब्धता के तथ्य को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता ।

वकील ने कहा- सौरभ नहीं लेता कोई पेंशन

सौरभ की ओर से ग्वालियर से उसके अधिवक्ता उपस्थित हुए। सौरभ के अधिवक्ता आरके पाराशर ने बताया कि आरोपित छापामारी के समय लोक सेवक नहीं था। न्यायालय में अपनी दलील में उन्होंने कहा कि सौरव पीसी एक्ट में लोक सेवक की परिभाषा के अंतर्गत ही नहीं आता है। उसने वर्ष 2023 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और वह सरकार से किसी तरीके की पेंशन प्राप्त नहीं करता है।

चौंकाने वाली बात है कि पूर्व आरक्षक अनुकंपा नियुक्ति से नौकरी में आया था और मात्र छह से सात वर्ष नौकरी कर उसने पद से वीआरएस ले लिया था। अगर उसे जमानत का लाभ दिया जाता है तो वह लोकायुक्त जांच में उनका पूरा सहयोग करेगा।

जमानत निरस्त होने के लिए ये तर्क

इस पर आपत्ति लेते हुए सरकारी अधिवक्ता विवेक गौर ने पक्ष रखा की पूर्व आरक्षक का मूल पद लोक सेवक का है। उसके घर से अकूत संपत्ति बरामद हुई है, जांच में किसी भी तरह का सहयोग नहीं कर रहा है।

अगर उसे जमानत का लाभ दिया जाता है तो गिरफ्त में नहीं आएगा और उसके द्वारा अर्जित की हुई अकूत संपत्ति किन साधनों से प्राप्त की। इस बात की जानकारी नहीं जुटाई जा सकेगी। इसलिए जमानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए।

मां ने झूठा शपथ पत्र देकर सौरभ शर्मा को दिलाई थी अनुकंपा नियुक्ति

इस बीच, पता चला है कि सौरभ को नौकरी दिलाने के लिए उसके पिता डॉ. राकेश कुमार शर्मा के निधन के बाद उसकी मां उमा शर्मा ने षड्यंत्र रचा। उनका बड़ा बेटा सचिन शर्मा छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी में था, लेकिन उन्होंने झूठा शपथ पत्र दिया।

नियुक्ति के लिए दिए गए शपथ पत्र में बड़े बेटे की सरकारी नौकरी का सच छिपाया। शपथ पत्र में लिखा था- बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहता है, वह शासकीय सेवा में नहीं है।

इसी शपथ पत्र के आधार पर सौरभ को परिवहन विभाग में अनुकंपा नियुक्ति मिली और फिर वह परिवहन विभाग के दांव-पेंच सीखकर मंत्री और अफसरों के करीब पहुंच गया। परिवहन विभाग की काली कमाई का बड़ा हिस्सा मैनेज करने लगा।

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लोकायुक्त पुलिस ने जब्त किए नियुक्ति के दस्तावेज

  • लोकायुक्त भोपाल से ग्वालियर आई टीम उसके नियुक्ति संबंधी दस्तावेज परिवहन मुख्यालय से जब्त कर ले गई है। इसमें शपथ पत्र भी शामिल है। सौरभ के पिता डॉ. राकेश का निधन 20 नवंबर 2015 को हुआ था।
  • उनके दो बेटे- सचिन और सौरभ हैं। बड़ा बेटा सचिन उस समय परिवार के साथ छत्तीसगढ़ के रायपुर में था, क्योंकि वह सरकारी नौकरी में है। वर्तमान में सचिन डिप्टी डायरेक्टर फाइनेंस है।
  • 12 जुलाई 2016 को उमा द्वारा सौरभ की नियुक्ति के लिए शपथ पत्र दिया गया। इसमें लिखा गया कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य शासकीय अथवा निगम मंडल, परिषद आयोग में नियमित या नियोजित नहीं है।
  • छोटा बेटा सौरभ ही उनकी देखरेख करता है, उसी पर निर्भर हैं, इसलिए सौरभ को नियुक्ति दिए जाने की बात उमा द्वारा शपथ पत्र में लिखी गई। अब मां और सौरभ पर हो धोखाधड़ी की एफआईआर हो सकती है।
  • एफआईआर के अतिरिक्त शासन को गुमराह कर नौकरी हासिल की गई तो उसने जितने समय विभाग में नौकरी की उसका पूरा वेतन और भत्तों की वसूली भी की जा सकती है।

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अफसरों से लेकर मंत्री तक की हर बात की करता था रिकॉर्डिंग

सौरभ के बारे में परिवहन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी दबी जुबान में बताते हैं कि वह मामूली आरक्षक था, लेकिन उसका रहन-सहन अफसरों जैसा था। वह सूट-बूट में रहता था। परिवहन विभाग में बड़े पद पर रहे एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सौरभ पर एक मंत्री की कृपा रही। वह इतना शातिर था कि जो अफसर और नेता उसको अपना करीबी मानते थे, उनकी कॉल रिकॉर्डिंग करता था।

वह मोबाइल के अलावा ऐसी डिवाइस का इस्तेमाल करता था। एक माननीय जब बाहर जाते थे तो ड्राइवर तक साथ नहीं जाता था, लेकिन सौरभ साथ रहता था। जहां माननीय रुकते थे, वहीं सौरभ के रुकने का इंतजाम होता था। लेनदेन के सारे गोपनीय काम वह देखता था।

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