0

स्टूडेंट्स बोले-इंदौर एमजीएम कॉलेज का हॉस्टल रावण की लंका जैसा: सीनियर्स पीटते हैं, नशे का सामान मंगाते हैं; प्रोफेसर्स भी करते हैं रैंगिग – Madhya Pradesh News

इंदौर के इस कॉलेज का नाम महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज है, लेकिन ये पिछले कुछ दिनों से रैगिंग, हिंसा, सीनियर्स के खौफ और प्रोफेसर्स के उत्पीड़न के लिए चर्चा में है। दैनिक भास्कर की टीम ने इंदौर के इस कॉलेज में पहुंचकर स्टूडेंट्स से बात की।

.

सभी स्टूडेंट्स के चेहरों पर खौफ तो दिखा लेकिन उन्होंने कहा- हमारे साथ कोई रैगिंग नहीं हो रही है। सीनियर्स तो हमारा सपोर्ट करते हैं। सब कुछ ठीक चल रहा है।

कॉलेज का हर स्टूडेंट यही लाइन दोहरा रहा था। इसी बीच पीछे से एक छात्र ने आवाज लगाई। कहा- सच बता दो।

इसके बाद वो सभी स्टूडेंट्स वहां से चले गए। किसी ने भी कैमरे पर बात नहीं की। दैनिक भास्कर की टीम ने करीब 5 घंटे तक कॉलेज के आसपास कई स्टूडेंट्स से बात की। दो ऐसे स्टूडेंट्स मिले, जिन्होंने कहा- सर जो कुछ भी खबरों में चल रहा है, सब सच है। ये हॉस्टल रावण की लंका जैसा ही है, जिसे कोई नहीं जला सकता। प्रोफेसर्स तक रैगिंग करते हैं। उन्होंने कहा-

इसमें पूर्व डीन से लेकर हॉस्टल वार्डन तक शामिल हैं। कहते हैं कि ये जरूरी है। हॉस्टल में रहने वाले सभी बच्चे अपने कॅरियर, पारिवारिक दबाव और आगे उनके साथ होने वाली बर्बरता की धमकियों से डरे हुए हैं, इसलिए कोई कुछ नहीं बोल रहा है। हम भी इससे ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे। कैमरे पर तो हरगिज नहीं आ सकते।

QuoteImage

रैगिंग के बाद छोड़ना पड़ा हॉस्टल दैनिक भास्कर की टीम ने हाल ही हॉस्टल छोड़ चुके दोनों स्टूडेंट्स को भरोसे में लिया। उनसे वादा किया कि उनका चेहरा, नाम, पहचान गोपनीय रखेंगे। कैमरे पर सारी बातें बता दो। काफी मशक्कत के बाद दोनों बच्चों का डर खत्म हुआ और वो बात करने के लिए तैयार हुए।

एक स्टूडेंट ने कहा- मेरे पापा ऑटो चलाते हैं। बाहर कमरा लेकर नहीं पढ़ सकता, इसलिए हॉस्टल में रह रहा था। मेरे साथ रैगिंग हुई तो उसके बाद मुझे हॉस्टल छोड़ना ही पड़ा। एक हफ्ते पहले मैंने हॉस्टल छोड़ा है। अब अपने शहर से हर दिन अप-डाउन करके कॉलेज अटेंड कर रहा हूं। मैं पढ़ाई पूरी करने के लिए वो मार सह भी लेता लेकिन इस बारे में मेरी मां को पता चल गया था। उन्होंने मुझे नहीं रहने दिया।

सोशल मीडिया X पर इंडियन डॉक्टर्स हैंडल से मामले की शिकायत प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक से की गई है।

सोशल मीडिया X पर इंडियन डॉक्टर्स हैंडल से मामले की शिकायत प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक से की गई है।

पढ़िए, हॉस्टल में रह चुके स्टूडेंट्स की आपबीती

स्टूडेंट 1: 30 चांटे मारे, 25 मिनट तक मुर्गा बनाया पहले छात्र ने बताया- मैं इंदौर के पास के ही शहर का रहने वाला हूं। अक्टूबर से नवंबर तक हॉस्टल में रहा हूं। पहली बार मेरे साथ जो शारीरिक हिंसा हुई थी, वो 10 नवंबर की रात को हुई थी। ज्यादातर बच्चे दीवाली की छुट्टी से वापस आए थे। तब 2017-18 बैच के सीनियर्स ने बेहद शराब पी रखी थी, वो ढंग से चल भी नहीं पा रहे थे। उस दिन उन्होंने हमसे सवाल पूछने शुरू किए।

इसके बाद हर दूसरी रात को हमें 20 से 25 मिनट तक मुर्गा बनाया जाता था। हर रात 200 से 300 उठक-बैठक लगवाई जाती थीं। मुर्गा बने हुए हमें लगातार गर्दन 90 डिग्री पर झुकाकर यानी शर्ट के थर्ड बटन पर देखना रहता है। ये बहुत दर्दनाक होता है। इसके पीछे सीनियर्स लॉजिक देते थे कि तुम सर्जरी करने जाओगे, ये उसकी तैयारी है।

गलती से ऊपर देख लें तो हमें गालियां देते हुए चांटे मारते। इसके अलावा वो म्यूचुअल भी कराते हैं। इसमें एक बैचमेट को हमारे एक कान में हाथ रखने के लिए कहा जाता है। दूसरे कान में जोर से दूसरे बैचमेट से ही चांटा मरवाते हैं ताकि हमारा इयर ड्रम ना फटे। चांटा धीमा पड़ने पर चांटा मारने वाले बैचमेट को भी सीनियर पीटते हैं।

सीनियर्स हमें 5-6 ब्लॉक में बुलाते थे। वहां उनके कमरे के पास ही लगे वाटर कूलर से पानी भरकर देने को कहते थे। हमें लगातार गालियां देते थे। डांस कराते थे। उनका नियम है। वो कुछ भी कहें, हमें जवाब सॉरी सर में ही देना होता है। ये सब बहुत ज्यादा हो रहा था इसलिए मैंने हॉस्टल छोड़ दिया।

2 बजे से पहले सो नहीं सकते, जूते नहीं उतार सकते हम सुबह कॉलेज जाते हैं। इसके बाद शाम को हॉस्टल पहुंचते थे। हमारे हॉस्टल पहुंचने के 10 मिनट के भीतर ही सीनियर ग्रुप में मैसेज कर ग्राउंड पर बुला लेते थे। हमें वहां रात में कई घंटे खड़ा रहना होता था। इसके बाद हमें खाने का टाइम मिलता था।

फिर वो सभी बच्चों को 2 से 3 कमरों में बैठने को कहते थे। इसके बाद 11 बजे हमें कॉल पर बुलाया जाता था। कॉल यानी रैगिंग। जमीन पर लोहे का डंडा ठोक-ठोक कर बुलाते थे कि फर्स्ट इयर वाले बाहर आ जाओ। फिर हमें छत या ग्राउंड पर ले जाकर मुर्गा बनाया जाता था। उठक-बैठक लगवाई जाती थी। वे कहते थे- हर सवाल का जवाब सॉरी ही देना है।

जब भी सीनियर्स रैगिंग लेने आते थे तो मेन एमसीबी नीचे गिरा देते थे ताकि हॉस्टल में अंधेरा हो जाए। फिर हमें बाहर लाते। हमारी 3 से 4 बार बारीकी से चेकिंग करते थे। हमारे पास रिंग, चेन, कड़ा, फोन, रूमाल कुछ भी नहीं मिलना चाहिए। फिर ब्लॉक 6 और 7 में या फिर छत पर ले जाकर रैगिंग करते थे। हमें सीनियर्स की 100-100 पेज की फाइल तक लिखनी पड़ती हैं। हॉस्टल में हमें पढ़ाई के लिए भी वक्त नहीं मिलता।

प्रोफेसर ने भी रैगिंग की, पोल डांस कराया हमने इस सब की शिकायत इसलिए नहीं की क्योंकि हमारे यहां राजेंद्र मार्को एंटी रैगिंग कमेटी के मेंबर हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर मार्को हॉस्टल के वॉर्डन भी हैं। वे भी हमारी रैगिंग लेने पहुंचे थे। उनका कहना था कि ये पर्सनल डेवलपमेंट का हिस्सा है। ये तुमको मजबूत बनाएगा। जिसको रहना है रहे, नहीं रहना चला जाए। फीस वापस कर दी जाएगी।

2023 वाले एमबीबीएस बैच की पूरी रैगिंग मार्को सर ने ही ली। उनको चांटे भी मारे थे। हम पूर्व डीन संजय दीक्षित सर तक नहीं जा पाते हैं क्योंकि वो खुद सीनियर्स और राजेंद्र मार्को सर को कहते हैं कि आप जाकर रैगिंग लो। बच्चों को स्ट्रॉन्ग बनाओ जबकि वो एंटी रैगिंग कमेटी के हेड हैं। रैगिंग के नाम पर हमारे साथ ऐसी ऐसी चीजें हो रही हैं, जो मैं यहां बोल भी नहीं सकता।

छात्र ने पूछने पर बताया- हॉस्टल में हमसे पोल डांस करने के लिए कहा जाता है। शराब का पैग बनाने, सिगरेट लाने और जलाने के लिए कहा जाता है। हॉस्टल में ड्रग्स भी मिलता है। डेढ़ सौ रुपए की पुड़िया मिलती है। रात में बाहर शराब लेने भेजते हैं। हमसे खड़े-खड़े सेक्सुअल एक्टिविटी कराते हैं। एक बार मेरे खड़े-खड़े पूरे कपड़े निकाल दिए थे। ऐसी कई बातें हैं, जो बताई नहीं जा सकतीं।

हॉस्टल में सीनियर्स, जूनियर स्टूडेंट्स को इस तरह मुर्गा बनाकर रखते हैं।

हॉस्टल में सीनियर्स, जूनियर स्टूडेंट्स को इस तरह मुर्गा बनाकर रखते हैं।

कोई सीसीटीवी नहीं, सिर्फ मेन गेट पर एक कैमरा छात्र ने कहा- हॉस्टल में मेन गेट पर एक कैमरा है। बाकी पूरे हॉस्टल में सीसीटीवी कैमरा नहीं है। सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। एक गार्ड है, जो आधे से ज्यादा टाइम नहीं रहता। हॉस्टल के सभी प्रोफेसर्स यहां तक कि पूर्व डीन तक को पता है कि वहां रैगिंग हो रही है, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। कहते हैं कि ये पर्सनल डेपलपमेंट का हिस्सा है।

एक बार किसी ने मार्को सर को शिकायत की थी तो उन्होंने क्लास में आकर बोला था कि ये सब तो होगा ही। आपको जहां तक जाना है, चले जाइए। वो आपके सीनियर्स हैं।

रैगिंग का मुद्दा उठाने वाला छात्र हमारा भगवान स्टूडेंट ने कहा- जिस बच्चे के साथ अभी रैगिंग का मामला सामने आया है, वो हमारे लिए भगवान की तरह है। उसने जो हिम्मत दिखाई है, वो कोई नहीं दिखा पाया। उसके साथ सबसे ज्यादा बर्बरता हुई है। वो अभी भी हॉस्टल में रह रहा है। डिप्रेशन में है। हम उसका नाम डिस्क्लोज नहीं कर सकते। अभी हॉस्टल जाएंगे तो वो खुद भी कुछ नहीं बताएगा। सीनियर्स और फैकल्टी का इतना खौफ है।

कॉलेज फैकल्टी तो सीनियर्स के साथ है और हम जूनियर्स अकेले। क्या कर लेंगे। हम चाहते हैं कि ये सब बंद हो जाना चाहिए।

छात्रों ने यह फोटो भी X पर अपलोड किया है। दावा है कि आधी रात से सुबह होने तक रैगिंग ली जाती है।

छात्रों ने यह फोटो भी X पर अपलोड किया है। दावा है कि आधी रात से सुबह होने तक रैगिंग ली जाती है।

लड़कियों ने शिकायत की तो उन्हें बैचआउट कर दिया स्टूडेंट बोला- साल 2023 बैच की गर्ल्स हॉस्टल की कुछ लड़कियों ने रैगिंग को लेकर शिकायत की थी तो उनको बैच आउट कर दिया गया था। एक तरह से उन्हें कॉलेज का हिस्सा ही नहीं माना जा रहा था। हमारे बैच के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। ये सब बंद हो, ताकि आगे के बैच को इस तरह की तकलीफ नहीं झेलनी पड़े।

नागालैंड और मणिपुर के बच्चे भी यहां रह रहे हैं। उन्हें भी ये सब सहना पड़ रहा है। 30 लाख रुपए के बॉन्ड के चलते गरीब घरों के बच्चे पढ़ाई भी नहीं छोड़ पाते। पढ़ाई छोड़ी तो 30 लाख रुपए भरने पड़ेंगे।

शिकायत करने पर कुछ नहीं होता क्योंकि प्रोफेसर्स और डीन सब मिले हुए हैं। वो हमें एग्जाम में फेल करने लगते हैं। 4 साल फेल होने के बाद स्टूडेंट्स को डीटेन कर दिया जाता है। इसके बाद न वो एमबीबीएस कर सकता है, न ही किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले सकता है। इसी डर के चलते स्टूडेंट्स को ये सहना पड़ रहा है। एक बच्चे की शिकायत का खामियाजा कई बार पूरे बैच को झेलना पड़ता है।

अक्टूबर में 104 थे, 59 स्टूडेंट बचे, 9 और छोड़ने वाले हैं स्टूडेंट ने कहा- कॉलेज 14 अक्टूबर से शुरू हुआ था। तब हॉस्टल में 104 स्टूडेंट थे। 2 महीने में ही अब 59 रह गए हैं। 9 हॉस्टल छोड़ने की फिराक में हैं। सीनियर्स से बच-बचकर फ्लैट ढूंढ रहे हैं क्योंकि उनकी परमिशन के बिना तो हॉस्टल से बाहर भी नहीं जा सकते। अब आप बताइए 50% बच्चे क्यों कम हुए? जबकि हॉस्टल में हमें कमरा, कैंटीन, ग्राउंड, जिम सब मिल रहा है। वो भी मात्र 1 हजार रुपए साल के कमरे और 3 हजार महीने कैंटीन के हैं।

स्टूडेंट 2: रैगिंग झेल सकता था, लेकिन टॉर्चर के बारे में मां को पता लग गया

दूसरे छात्र ने कहा- हॉस्टल जैसी चीज मेरे लिए ही बनी है। मेरे पिता जी ने इतना संघर्ष कर मुझे पढ़ाया है। वो ड्राइवर हैं। उनके लिए मैं कुछ भी झेल सकता था लेकिन बात हद से ज्यादा बढ़ चुकी थी।

बेहद चांटे पड़ते हैं, कुछ स्टूडेंट्स के कान का पर्दा तक फट गया छात्र ने कहा- हॉस्टल में बेहद चांटे पड़ते हैं। हमारे बैच में 2 लोगों को बचपन से सुनने में दिक्कत थी लेकिन हॉस्टल आने के बाद समस्या और बढ़ गई है। एक अन्य छात्र के चांटे खा-खाकर कान के पर्दे में छेद हो गया है। एक बच्चे को मिर्गी की शिकायत थी। उस बच्चे को सोने नहीं दिया जाता था तो उसे 9 साल बाद मिर्गी का दौरा पड़ गया था।

सीनियर्स कॉलेज से आने के बाद हमें ग्राउंड में खड़े रखते थे। बाजार से अपना नशे का सामान मंगवाते थे, फिर हमें 2 बजे तक सोने नहीं देते थे। वो नशे के साथ हमें नचवाकर और गालियां देकर अपना मनोरंजन करते थे।

फिर सुबह 9 बजे कॉलेज जाना होता था। जब कोई इंसान सो नहीं पाएगा तो उसका क्या हाल होगा, आप सोचकर देखिए।

अकेले वॉशरूम नहीं जा सकते, रात 2 बजे तक जूते नहीं उतार सकते ​​​​​​​सीनियर्स हमारी कॉलेज ड्रेस को फंडे कपड़े बुलाते हैं। फंडे कपड़े का मतलब उनके रूल में लिखे कपड़े। हमें ये कपड़े दिनभर और रात 2 बजे तक पहनने पड़ते हैं। शर्ट, पैंट, बेल्ट और जूते। सीनियर्स हमें आदेश देते थे कि रात 2 बजे तक न तो कोई सोएगा और न ही जूते उतरेंगे। हम सोते वक्त ही जूते उतार सकते थे। बिना जूते के दिखाई दिए तो हम पर चांटे बरसाए जाते थे।

इसके अलावा रूल है कि हम अकेले वॉशरूम नहीं जा सकते थे। कभी भी जाना हो तो किसी एक बैचमेट को लेकर ही जाना होता था। अकेले जाते मिले तो हमारी रैगिंग होती थी। इसके पीछे का क्या कारण है, हम नहीं जानते।

सोशल मीडिया हैंडल X पर स्टूडेंट ने यह फोटो ट्वीट कर घटना की जानकारी दी है।

सोशल मीडिया हैंडल X पर स्टूडेंट ने यह फोटो ट्वीट कर घटना की जानकारी दी है।

रूल को फंडा, गलती को फटकी और रैगिंग को कॉल पर बुलाना कहते हैं स्टूडेंट बोला- ये रूल सीनियर्स के भी सीनियर्स ने बनाए हैं। यहां 2014 बैच तक के सीनियर्स पढ़ते हैं लेकिन ये रूल्स उससे पहले से चलते आ रहे हैं। सीनियर्स अपने बनाए नियमों को फंडे बोलते हैं। जब कोई रूल तोड़ता है या गलती करता है तो उसे फटकी कहते हैं। इसके बाद हमें कॉल पर यानी रैगिंग के लिए बुलाया जाता है।

फर्स्ट इयर के बच्चों को ये नियम फॉलो करने होते हैं। नियम तोड़ने पर ब्लॉक 6 की छत पर सभी को ले जाया जाता है। फिर उन्हें हाइट वाइज खड़ाकर मुर्गा बनाया जाता है। उठक-बैठक लगवाई जाती है। चांटे मारे जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि फर्स्ट इयर वालों की बस कॉल लगती है। सेकंड इयर वालों की भी कॉल लगती है। उनकी कॉल उनके सीनियर लगाते हैं। हमारे दिमाग में डाल दिया गया है कि मेडिकल फील्ड ही ऐसी है। यहां ऐसा ही चलता है।

रैगिंग के दौरान खड़े होकर 90 डिग्री पर सिर झुकाकर नीचे देखने की सजा भी मिलती है।

रैगिंग के दौरान खड़े होकर 90 डिग्री पर सिर झुकाकर नीचे देखने की सजा भी मिलती है।

कलेक्टर ने जांच समिति बनाई, डीन ने स्टूडेंट से बात की इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग का मामला सामने आने के बाद प्रशासन हरकत में आया है। दैनिक भास्कर द्वारा यह मुद्दा प्रमुखता से उठाए जाने के बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने जांच समिति गठित की है। कॉलेज के प्रभारी डीन डॉ. नीलेश दलाल ने स्टूडेंट से चर्चा की। उनके साथ हॉस्टल वार्डन राजेंद्र मार्को और एंटी रैगिंग कमेटी के प्रमुख डॉ. वीएस पाल भी मौजूद थे।

दरअसल, 2024 बैच के जूनियर छात्रों ने इस संबंध में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X के माध्यम से शिकायत की है। छात्रों ने लिखा- रात 10.30 बजे उन्हें बुलाया जाता है। फिर सिर झुकाकर खड़ा कर दिया जाता है। सुबह 5-6 बजे नशा उतरने तक सीनियर उन्हें पीटते हैं।

उन्हें 6-6 घंटे तक रूफटॉप पर सिर झुकाकर खड़ा रखा जाता है। आते-जाते पीटते हैं। असहज कपड़ों में छत पर बुलाते हैं। शहर में कहीं रावण की लंका है तो वह कॉलेज का बॉयज हॉस्टल है, जहां सिर्फ सीनियर्स का नियंत्रण है। इन्हीं कारणों से इस वर्ष 30 छात्रों ने हॉस्टल छोड़ दिया है।

हालांकि, यह रैगिंग कब हुई, सोशल मीडिया पोस्ट पर इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और वार्डन से भी किसी तरह की शिकायत नहीं की गई है। मामले में Indian Doctor नाम के X अकाउंट से प्रधानमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री को भी शिकायत की गई है।

रैगिंग के दौरान लड़कों को लड़कियों के अंडर गारमेंट्स पहने के लिए मजबूर किया जाता है।

रैगिंग के दौरान लड़कों को लड़कियों के अंडर गारमेंट्स पहने के लिए मजबूर किया जाता है।

वार्डन और डीन बोले- किसी ने शिकायत नहीं की हॉस्टल वॉर्डन राजेंद्र मार्को ने घटना के बाद कहा था कि मेरे पास किसी छात्र ने रैगिंग को लेकर कोई शिकायत नहीं की। अब तक जिन छात्रों ने हॉस्टल छोड़ा है, उसके कई कारण हैं। इस संबंध में कुछ दिन पहले एक पेरेंट ने फोन किया था। लेकिन उन्होंने न तो अपना नाम बताया और न ही स्टूडेंट का। इसके बाद हमने चौकसी बढ़ा दी थी। सीनियर छात्रों पर नजर रखी जा रही है।

पूर्व डीन संजय दीक्षित ने कहा था कि ​​​​​​​रिटायरमेंट के पहले मेरे मोबाइल पर शिकायत आई थी। इसके बाद हॉस्टल में एंटी रैगिंग कमेटी बनाई गई थी। जांच के दौरान कमेटी के सामने किसी भी छात्र ने लिखित या मौखिक शिकायत नहीं की।

#सटडटस #बलइदर #एमजएम #कलज #क #हसटल #रवण #क #लक #जस #सनयरस #पटत #ह #नश #क #समन #मगत #ह #परफसरस #भ #करत #ह #रगग #Madhya #Pradesh #News
#सटडटस #बलइदर #एमजएम #कलज #क #हसटल #रवण #क #लक #जस #सनयरस #पटत #ह #नश #क #समन #मगत #ह #परफसरस #भ #करत #ह #रगग #Madhya #Pradesh #News

Source link