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1995 में पहली बार इंदौर आए थे रतन टाटा: इंदौर में पिलरलेस वर्कशॉप से प्रभावित हुए टाटा, पूरे ग्रुप में ये मॉडल लागू किया – Indore News

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इंदौर में पिलरलेस वर्कशॉप का अवलोकन करते टाटा।

इंदौर के साथ टाटा समूह का नाता 82 साल से भी पुराना है। पूरे जीवनकाल में टाटा के इंदौर आने के तीन अवसर बने, लेकिन आना एक बार ही हुआ। 1995 में पहली बार टाटा देवास में टाटा इंटरनेशनल की बोर्ड मीटिंग के लिए आए थे। सांघी ब्रदर्स के शरद सांघी ने जब उन्हें

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स्ट्रक्चर देखकर आश्चर्य जताते हुए कहा, इसे तो सबको बताएंगे। इसके बाद मुंबई जाकर पूरे समूह में नोट जारी कर कहा, इंदौर का स्ट्रक्चर देखें और अपनाएं भी। इसके बाद टाटा मनोरमागंज स्थित शोरूम भी पहुंचे। अवलोकन के बाद सांघी ने कहा, 25 साल पुराने साथियों को प्रमाण पत्र भी आपके हाथों दिलाना चाहते हैं। सीनियर मैनेजर नारायण सुमराणी बताते हैं, प्रमाण पत्र पर टाटा के हस्ताक्षर नहीं थे।

टाटा से कहा, आपके हस्ताक्षर होंगे तो अच्छा लगेगा। टाटा ने कहा, मैं नहीं कर सकता, क्योंकि सांघी समूह दे रहा है। कुछ सोचने के बाद उन्होंने प्रमाण पत्र पलटा और पीछे हस्ताक्षर कर दिए। आज भी घर पर प्रमाण पत्र उलटा ही लगा है। एक सेल्स ऑफिसर ने ऑटोग्राफ की इच्छा जताई, कागज नहीं था। उन्होंने टेबल पर पड़े टिशू पेपर पर हस्ताक्षर कर दे दिया।

टाटा इंटरनेशनल में महिलाओं को बढ़ावा टाटा इंटरनेशनल लेदर, फुटवियर के ग्लोबल बिजनेस हेड रहे डॉ. एन मोहन बताते हैं, टाटा इंटरनेशनल लेदर डिविजन के पीछे रतन टाटा की सोच महिलाओं के लिए रोजगार देना था। देवास में इसको प्राथमिकता से लागू भी किया। उनके इस सोच को जब क्रियान्वयन किया तो कम्युनिटी में बदलाव आया।

आईएमए ने बुलाया, खुद नहीं आ सके तो प्रतिनिधि भेजा 2009 में इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया था। आईएमए के अध्यक्ष नवीन खंडेलवाल बताते हैं, स्वास्थ्य कारणों के चलते वे आ नहीं सके। फोन कर इसकी जानकारी दी और अवॉर्ड के लिए एमडी स्तर के अधिकारी रविकांत को भेजा।

इससे अलावा टाटा के इंदौर आने का एक अवसर 1998 में बना था, जब उन्हें टाटा प्रिसिजन के उद्घाटन में आना था, लेकिन वे आ नहीं सके थे।

मिले तो पूछा, सांस्कृतिक कार्यक्रम करवा रहे हैं आईआईएम के डायरेक्टर प्रो. हिमांशु राय ने टाटा स्टील में 8 साल काम किया। वे बताते हैं, रतन टाटा की खासियत कर्मचारी के साथ जुड़ने की थी। नौकरी छोड़ने के 15 साल बाद जब मैं उनसे मिला तो, चकित रह गया। मुझे तो पहचाना ही, मेरे काम को भी याद रखा। मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में काफी सक्रिय रहता था। मुझसे पूछा, तुम बहुत शौक से सभी कार्यक्रमों में भाग लेते थे न? बहुत अच्छे! अब कैसा चल रहा है? अभी भी भाग लेते हो? वास्तव में यही उनकी लीडरशिप की खासियत थी।

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