उज्जैन के नई पेठ स्थित प्राचीन मां गजलक्ष्मी मंदिर में गुरुवार सुबह 7 से 11 बजे तक दिवाली के मौके पर मां लक्ष्मी का 2100 लीटर दूध से अभिषेक हुआ। इस बार मंदिर के गर्भगृह को को 21 लाख रुपए के नोटों सजाया गया है। यहां सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धाल
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पंडित सागर शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि, गज लक्ष्मी का मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है। यहां राजा विक्रमादित्य राजलक्ष्मी के रूप में इनकी पूजा करते थे। पुराने शहर के नई पेठ स्थित मां गजलक्ष्मी मंदिर में गुरुवार को दीपावली पर्व पर सुबह से ही मां लक्ष्मी का दूध से अभिषेक करने के लिए श्रद्धालु मंदिर पहुंचने लगे। इस दौरान भक्त अपने साथ दूध, कमल का फूल साथ लेकर आए। आज रात 2 बजे तक माता के दर्शन होंगे। इसके बाद सुहाग पंडवा के पूजन की तैयारी शुरू होगी। लक्ष्मी पूजन के बाद संध्या से देर रात्रि तक श्रद्धालु लक्ष्मी माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु यहां पर कमल का फूल चढ़ाकर मनोकामना मांगते है।
माता गज लक्ष्मी के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़।
21 लाख रुपए के नोटों से सजा मंदिर के गर्भगृह रतलाम के लक्ष्मी मंदिर की तरह उज्जैन में गज लक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह को भी 21 लाख रुपए के नोटों से सजाया गया। मंदिर परिसर को आर्टिफिशल फूलों से सजाया गया है। मंदिर को सजाने के लिए 100, 200 और 500 के नोटों का इस्तेमाल किया गया है। पंडित सागर शर्मा ने बताया कि भाई दूज तक मंदिर इसी तरह नोटों से सजा रहेगा। इसके लिए मंदिर के 100 लोगों ने मिलकर नोटों को एकत्रित किया है। इसे 51 लाख रुपए तक के नोटों से सजाया जाएगा। मंदिर की सुरक्षा के लिए 8 गार्ड और 6 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
21 लाख रुपए के नोटों से सजा गर्भगृह।
गज लक्ष्मी के साथ विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा भी विराजित मंदिर के पुजारी अवधेश शर्मा ने बताया, माता गज लक्ष्मी की प्रतिमा एक ही पाषाण पर निर्मित स्फटिक से बनी दो हजार साल पुरानी है। मां गजलक्ष्मी की यह प्रतिमा ऐरावत हाथी पर सवार होकर पद्मासन मुद्रा में है। इसे सम्राट विक्रमादित्य के समय का बताया जाता है। इसके साथ ही यहां विष्णु के दशावतार की काले पाषाण पर निर्मित अद्भुत प्रतिमा भी मौजूद है। मंदिर में मां गजलक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा भी है। यह प्रतिमा अति प्राचीन है। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु के छोटे-छोटे रूप में 24 अवतारों का वर्णन है। मंदिर आने वाले लोग भगवान विष्णु के भी दर्शन करते हैं। देश के किसी मंदिर में ऐसा नही है। माना जाता है कि माता गजलक्ष्मी को विक्रमादित्य अपनी राजलक्ष्मी मानकर पूजन करते थे।
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