उज्जैन में विशाल शर्मा नाम के शख्स ने खुद को एसआई तो कभी डीएसपी बताकर 30 लाख रुपए की ठगी की। इनमें एक आरक्षक से ठगे गए तीन लाख रुपए भी शामिल हैं। ये इकलौता मामला नहीं है।
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दरअसल, मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मी बनकर ठगी का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। तीन महीने में फर्जी पुलिसकर्मी बनकर रौबदार जिंदगी जी रहे 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। कोई दो साल तक पुलिस की नाक के नीचे अस्पताल पुलिस चौकी में एकदम पुलिसवाले की तरह नौकरी कर रहा था तो किसी ने दलाली कर पुलिसवालों की तनख्वाह से भी ज्यादा की उगाही कर ली।
ये चारों वो चेहरे हैं जो नकली पुलिस बनकर लोगों को ठगते रहे।
आखिर कैसे और क्यों नकली पुलिस बनने का ट्रेंड बढ़ रहा है, पढ़िए पूरी रिपोर्ट… दतिया के रहने वाले आनंद सेन को हाल ही में भोपाल के एमपी नगर से गिरफ्तार किया गया। उसका जुर्म ये था कि वो 4 साल तक नकली पुलिसवाला बनकर लोगों के साथ-साथ पुलिस की आंखों में भी धूल झाेंकता रहा। दो साल तक तो वो पुलिस की वर्दी पहनकर इधर-उधर घूमता रहा। फिर छतरपुर की अस्पताल पुलिस चौकी के ईर्द-गिर्द मंडराने लगा। लोग उसे पुलिस वाला समझकर उसे क्राइम के मामलों की पूरी जानकारी देते थे।
वो इस जानकारी को नोट कर बाकायदा थाने भिजवाने लगा। इस बीच थाने का स्टाफ बदलता गया और नए आने वाले पुलिसकर्मियों ने यही मान लिया कि वो अस्पताल पुलिस चौकी में ड्यूटी देने वाला विभाग का ही सहकर्मी है। थाने से उसकी बाकायदा ड्यूटी भी लगने लगी।
अस्पताल में जल्दी इलाज कराना होगा, जल्दी ऑपरेशन कराना हो या बेड दिलाना हो आनंद हर काम करा देता था। इसके एवज में वो मरीज और उसके परिजन से उगाही करता था। कई मामलों में मरीजों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स और डायग्नोस्टिक सेंटर्स भिजवाकर वहां से भी कमीशन लेता था।
एक एफआईआर के बाद भांडा फूटा 2023 में सुबोध जैन से मेडिकल दुकान का लाइसेंस बनवाने के नाम पर एक लाख रुपए लिए थे। पैसे देने के बाद भी लाइसेंस नहीं बना तो सुबोध ने थाने में आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस अफसरों ने जब आनंद की डिटेल निकाली तो वो भी हैरान रह गए कि वो पुलिस चौकी में वो कैसे ड्यूटी देता रहा।
भांडा फूटते ही आनंद छतरपुर से फरार हो गया। फिर भी उसकी कारस्तानी जारी रही। उसने भोपाल आकर यही खेल फिर से खेलना शुरू कर दिया, लेकिन कुछ ही दिन में पकड़ लिया गया।
अब अनारकली की कहानी…
जितने स्टार उतना रौब, इसलिए वर्दी पर दो लगवाए नकली पुलिस बनकर उगाही करती पकड़ी गई 25 वर्षीय रेखा साकेत सिंगरौली जिले की रहने वाली है। लोगों को वो अपना नाम अनारकली बताती है। पुलिस पूछताछ में उसने बताया कि कोविड के दौरान पुलिस ने जगह- जगह नाकेबंदी कर रखी थी। कहीं भी जाओ रोक- टोक करती थी। मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं था, इसलिए पुलिस की वर्दी ही सिलवा ली।
जिस पुलिसवाले के कंधों पर ज्यादा स्टार होते थे, उसका ज्यादा रौब चलता था, इसलिए वर्दी पर दो स्टार लगवाए। पूरे लॉकडाउन में कहीं किसी ने नहीं रोका, बल्कि लोग सैल्यूट मारते थे। कोविड जाने के बाद वर्दी को इस्तरी कर रख दिया था। तय किया था कि दोबारा नहीं पहनूंगी, लेकिन पिछले कुछ माह से पैसों की तंगी बहुत ज्यादा हो गई थी। तब लगा कि जिस वर्दी ने कोविड में राहत दिलाई, वो आर्थिक तंगी से भी राहत दिला सकती है।
महिला सफाईकर्मी की शिकायत के बाद पता चला अनारकली ने टीआई बनकर एक महिला सफाईकर्मी से पूछा था कि घरों में झाडू पोंछा कब तक लगाती रहोगी। हमारे थाने की सफाई वाली रिटायर्ड हो रही है। जगह खाली हो जाएगी। तुम कहो तो मैं तुम्हारी नौकरी लगवा सकती हूं। इसके लिए तुम्हें बस 70 हजार रुपए देने पड़ेंगे। महिला सफाईकर्मी ने समझा कि टीआई कह रही है तो बात सच होगी। उसने 70 हजार रुपए दे दिए।
2 महीने बाद भी सफाईकर्मी को नौकरी नहीं मिली तो वह जमौरी थाने पहुंची और टीआई से मिलने की बात कही। सफाईकर्मी की बात सुनकर पुलिस हरकत में आई और अनारकली के घर दबिश दी। पुलिस को दबिश में टीआई की वर्दी भी बरामद हुई।
बेरोजगार रामकुमार की दास्तां… शहडोल जिले में रहने वाला 23 साल का रामकुमार साकेत पिछले 10 महीने से पुलिस की वर्दी के दमपर लोगों से रुपए उधार लेता था। सीधी के मडवास थाने के उपनिरीक्षक केदार परोहा ने बताया कि रामकुमार पुलिस में भर्ती होने का सपना लेकर सीधी आया था। साल भर से कोचिंग कर रहा था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण पैसों की तंगी से जूझ रहा था।
उससे पूछताछ की ताे पता चला उसके लिए अपनी पढ़ाई के लिए रुपयों का बंदोबस्त करना मुश्किल हो रहा था, इसलिए नकली पुलिसवाला बन गया। चूंकि वो पुलिसवाला बनना चाहता था तो पुलिस के बारे में हर जानकारी भी रखता था, जैसे- वर्दी कैसी होनी चाहिए। पुलिस के अधिकार क्षेत्र क्या हैं।
हर माह एक- दो लोगों से वर्दी के दम पर पैसा उधार लेता था। वर्दीवाला समझकर लोग रुपए वापस नहीं मांगते थे। पहली बार 10 महीने पहले 3500 रुपए उधार लिए थे।
पुलिस की वर्दी में लगी नेम प्लेट पर नाम बदला हुआ रखा था। असली नाम रामकुमार साकेत की जगह रामकुमार भारती लिखवाया था। वर्दी देखकर बताना असंभव था कि ये नकली पुलिसवाला है। जब उधारी बहुत ज्यादा हो गई और लोग पैसे वापस मांगने लगे तो दे नहीं पाया।
ऐसे में लोग पैसा लेने थाने पहुंच गए। थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने राजकुमार नाम के किसी व्यक्ति को पहचानने से इनकार कर दिया। इसके बाद पुलिस टीम ने रामकुमार की तलाश की।
शिवानी वर्दी पहन सीधे थाने ही पहुंच गई
पुलिस ने दो दिन पहले भोपाल से एक 24 वर्षीय युवती को गिरफ्तार किया है। नाम है-शिवानी चौहान। इंदौर की रहने वाली ये युवती एडिशनल एसपी की वर्दी पहनकर सीधे थाने ही पहुंच गई और प्रधान आरक्षक पर रौब झाड़ने लगी।
जब थाना प्रभारी सुनील भदौरिया को उसके व्यवहार पर कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने पुलिस डिपार्टमेंट से जुड़े कुछ सवाल पूछे तब वह पकड़ी गई। उसने बताया कि मां को खुश करने के लिए पुलिस की वर्दी पहनकर थाने आई थी।
शिवानी चौहान को पुलिस ने थाने में ही बैठा लिया था।
शहडोल में तो पूरी गैंग नकली पुलिस मिली…
रोहित मिश्रा,सूरज जयसवाल और सुरेश बैगा इन तीनों ने एक गैंग बनाई। इस गैंग का काम था पुलिस की वर्दी में सुनसान रास्तों पर चेकिंग करना और राहगीरों से लूटपाट करना।
धीरे-धीरे इनका हौसला बढ़ा तो शहडोल कोतवाली थाने से कुछ ही दूरी पर पुलिस की वर्दी में वाहनों की जांच करने लगे। लोगों के पर्स, एटीएम और ज्वेलरी चेक करते थे। इसी बीच एक रात उन्होंने बाइक सवार दंपती को पूछताछ के नाम पर रोक लिया। उनके पास कुछ हजार रुपए नकद और एटीएम थे। वो दिखने में कमजोर भी थे। पूछताछ के बहाने तीनों दंपती को कुछ ही दूर एक खंडहर में ले गए। वहां दोनों को बंधक बना लिया और रातभर कैद में रखा।
उनसे बाइक, कैश, मोबाइल और एटीएम कार्ड लूट लिए। लूटने के बाद दंपती को सुबह छोड़ दिया। वहां से निकलकर दंपती नजदीकी थाने पहुंचा और उसने रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस टीम हरकत में आई और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
रोहित मिश्रा,सूरज जयसवाल और सुरेश बैगा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
नौकरी नहीं मिली तो वर्दी ही कमाई का शॉर्ट कट नजर आया एमपी नगर थाना इंचार्ज जयहिंद शर्मा ने बताया कि आनंद सेन की उम्र 28 साल है। उसने 12वीं तक की पढ़ाई की है। उसके पिता हेयर कटिंग की दुकान चलाते हैं। वह पुलिसवाला बनना चाहता था। कुछ साल पुलिस की तैयारी करने के बाद भी सफलता नहीं मिली तो नकली पुलिस वाला बन गया।
पुलिस ने जब उसकी मां से बात की तो पता चला कि वह घरवालों से बहुत कम बात करता था। महीनों में कभी- कभार घर आता था।
इन्वेस्टिगेशन टीम में शामिल कुंवर सिंह का कहना है कि जांच के दौरान उसकी आंखों में किसी तरह का डर नहीं था। जब हम कह रहे थे कि 3 साल जेल में रहेगा तो उसका जवाब था- भेज दो मुझे जेल। कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे अपने किए पर तनिक भी शर्मिंदगी नहीं थी।
इसी तरह अनारकली सिर्फ 8वीं पास है। उसकी शादी सिंगरौली में हुई है। पति मुंबई में मजदूरी करता है और अकसर घर से बाहर रहता है। 5 साल की बेटी है, जिसकी परवरिश और पढ़ाई का खर्च उठाना उसके लिए भारी हो रहा था।
रामकुमार की कहानी भी इनसे अलग नहीं है। बीए पास 23 साल के रामकुमार ने पुलिस की वर्दी का इस्तेमाल रौब दिखाने के लिए नहीं बल्कि अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए किया। उसे यही सही रास्ता लगा। जब पकड़ा गया तो गिड़गिड़ाने लगा कि मेरे माता-पिता को कुछ मत बताना। उन्हें पता चलेगा तो वो मर जाएंगे।
बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ी है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के रिटायर्ड डीजी एन.के. त्रिपाठी का कहना है कि पिछले कुछ सालों में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। इन युवाओं का सपना पुलिस या दूसरी सरकारी नौकर पाने का होता है।
समाज में पुलिस की वर्दी की आड़ में वसूली और पैसे ऐंठने लगते हैं। समाज के सामने पुलिस की बहुत नकारात्मक छवि बनी हुई है, पुलिस भ्रष्टाचार करती है, पुलिस अत्याचारी है, पुलिस रिश्वतखोर है। ये छवि उन लोगों में और भी गहरी बनी हुई है जिन्होंने कभी पुलिस का सामना नहीं किया।
ऐसे लोग पैसे देकर अपना काम आसानी से कराना चाहते हैं, ऐसे लोगों का ही फायदा नकली पुलिस बनने वाले बेरोजगार ज्यादा उठाते हैं।
अब महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल में समाज शास्त्र के प्रोफेसर शेखर ठाकुर कहते हैं कि सोशल मीडिया के दौर में लोगों में महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। ये लोगों को गलत रास्ते अख्तियार करने को मजबूर करता है।
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