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50 करोड़ साल पहले पृथ्वी के चारों तरफ भी थे शनि ग्रह जैसे छल्ले!

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कैसा हो अगर हमारी पृथ्वी के चारों तरफ भी खूबसूरत छल्ले तैर रहे हों जैसा कि शनि ग्रह के चारों तरफ दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा पहले हो चुका है। एक नई रिसर्च में दावा किया गया है हमारी पृथ्वी के चारों तरफ किसी समय में एक रिंग सिस्टम रहा होगा जैसा कि शनि ग्रह के इर्द-गिर्द दिखाई देता है। यह लगभग 46.6 करोड़ साल पहले की बात रही होगी। तो कैसे दिखते होंगे पृथ्वी के छल्ले? आइए जानते हैं रिपोर्ट इस बारे में क्या बताती है। 

सौरमंडल में शनि ही वर्तमान में एक ऐसा ग्रह है जिसके चारों तरफ खूबसूरत छल्ले पाए जाते हैं। लेकिन अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लैटर्स (Earth and Planetary Science Letters) में एक नया शोध प्रकाशित किया गया है जो पृथ्वी के चारों तरफ छल्ले यानी रिंग्स होने की कल्पना करता है। लगभग 46.6 करोड़ साल पहले ये छल्ले मौजूद रहे होंगे। कहां से आए होंगे ये छल्ले, और कहां चले गए? 

दरअसल शोध में कहा गया है कि वह समय भारी उल्कापात का रहा होगा। इसे ऑर्डोविशियन प्रभाव (Ordovician impact) कहा गया है। जिसमें भारी संख्या में उल्काएं आसमान से एकसाथ पृथ्वी पर गिरी होंगी। स्टडी के मुख्य लेखक एंडी टॉमकिंस, मोनाश यूनिवर्सिटी, ने 21 एस्टरॉयड इम्पेक्ट क्रेटर्स (एस्टरॉयड के टकराने से बने गड्ढों) की पोजीशन को स्टडी किया है। यह ऑर्डोविशियन काल की बात है। शोधकर्ता ने जो पाया वह हैरान करने वाला था। ये सभी क्रेटर्स इक्वेटर पर 30 डिग्री के भीतर मौजूद थे। जबकि पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत भूमि वाला भाग इस क्षेत्र से अलग बना रहा। 

शोधकर्ता टीम ने अनुमान लगाया कि एक बड़ा एस्टरॉयड पृथ्वी के बहुत करीब आया होगा जो इसकी रोश लिमिट (Roche Limit) को भी पार कर गया होगा। इसकी वजह से एस्टरॉयड बहुत सारे छोटे टुकड़ों में टूटा होगा। ये छोटे टुकड़े पृथ्वी की कक्षा के चारों ओर फैल गए होंगे। धीरे-धीरे समय के साथ ये टुकड़े फिर सतह पर गिर गए होंगे जिनसे ये क्रेटर्स बने होंगे। 

यह नया शोध भूविज्ञान की सीमाओं को कहीं ज्यादा आगे ले जाने वाला मालूम होता है। शोधकर्ता मान रहे हैं कि इस रिंग सिस्टम ने धरती की जलवायु को भी प्रभावित किया होगा क्योंकि इनके इस तरह इकट्ठा हो जाने से सूर्य का प्रकाश इन्होंने रोक लिया होगा और धरती पर एक क्षेत्र में छाया पसर गई होगी। इसकी वजह यहां पर ठंड का एक दौर चला होगा जिसे हिर्नेशियन आइसहाउस कहा जाता है। यह ऐसा काल था जिसमें धरती पर पिछले 50 करोड़ सालों में सबसे ज्यादा ठंड रही होगी। 
 

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