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52 साल बाद रिटायर हुए डीजल इंजन की कहानी: रेलवे ने पड़ोसी देशों से बुलाए थे टेंडर,किसी ने नहीं खरीदा; अब कबाड़ में बिक रहे – Jabalpur News

जबलपुर में सतपुला यार्ड के पास खड़े डीजल लोको को काटा जा रहा है।

पश्चिम मध्य रेलवे में कभी 30 से ज्यादा डीजल लोको इंजन चला करते थे। करीब 52 साल के सफर के बाद ये रिटायर कर दिए गए। अब इनकी जगह इलेक्ट्रिक इंजन ने ले ली है। इन डीजल लोको इंजन को इंटरनेशनल निविदा बुलाकर पहले बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल समेत पड़ोसी देशो

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अब जबलपुर और कटनी के यार्ड पर खड़े इन डीजल इंजनों को उन्हीं ट्रैक पर तोड़ा जा रहा है, जहां कभी ये दौड़ा करते थे। पश्चिम मध्य रेलवे में पहली बार हो रही लोको इंजन तोड़ने की प्रक्रिया देखने दैनिक भास्कर की टीम मौके पर पहुंची। पटरी पर खड़े इंजन को काटने के लिए मजदूरों की टीम गैस कटर लेकर जुटी हुई है।

96 हजार किलो वजनी एक इंजन को तोड़ने में कम से कम 3 दिन का समय लग रहा है। इसके बाद छोटे-छोटे हिस्सा में बांटा जाना है। जहां से इन्हें ट्रकों में भरकर कबाड़ियों के गोदाम ले जाया जाएगा।

ट्रैक पर ही इंजन को तोड़ने की बड़ी वजह यह थी कि इतने भारी इंजन को गोदाम तक ले जाना खर्चीला और चुनौतीपूर्ण था। रेलवे ने भी मौके पर ही खड़े डीजल लोको की नीलामी की थी, इसके बाद का खर्चा खरीदार को उठाना था। ऐसे में कबाड़ियों ने ट्रैक पर ही इंजन को ताेड़ने का फैसला लिया। पढ़िए, शुरुआत से अंत की कहानी…

80 डीजल लोको की लगाई गई सेल पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) का पूरी तरह से इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है। यही वजह है कि रेलवे ने काम से दूर हो चुके डीजल लोको को बेचने की तैयारी शुरू की। 80 से अधिक डीजल लोको को बेचने के लिए अंतरराष्ट्रीय सेल लगाई गई थी। पड़ोसी देश बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल को भी निविदा के लिए बुलाया गया था।

उम्मीद थी कि भारत के पड़ोसी देश भारतीय रेल के डीजल लोको खरीद लेंगे, लेकिन उन्होंने इस पर दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बाद रेलवे ने देश में ही बेचने के लिए नीलामी शुरू कर दी। WCR के जबलपुर मंडल में खड़े डीजल लोको को खरीदने के लिए जबलपुर सहित आसपास के राज्यों से कबाड़ी पहुंचे थे। जबलपुर के सतपुला यार्ड में खड़े चार डीजल लोको अभी तक बिक चुके हैं।

झारखंड से आई लोको काटने वाली टीम सतपुला के पास खड़े 4 डीजल लोको को झांसी और जबलपुर के कबाड़ियों ने खरीदा है, जिन्हें काटने के लिए झारखंड से मजदूरों को लाया गया है। 10 सदस्यीय टीम बीते एक सप्ताह से दिन-रात डीजल लोको को काटने में जुटी हुई है। गैस कटर से डीजल लोको को काटा जा रहा है।

डीजल से सस्ता है इलेक्ट्रिक इंजन 12 डिब्बों वाली पैसेंजर ट्रेन को खींचने वाला एक डीजल इंजन 6 लीटर तेल में 1 किलोमीटर का माइलेज देता है। 24 डिब्बों वाली एक सुपर फास्ट को खींचने वाला डीजल इंजन भी 6 लीटर तेल में 1 किलोमीटर का ही माइलेज देता है। जबकि 12 डिब्बों वाली एक्सप्रेस ट्रेन का इंजन 1 किलोमीटर का माइलेज देने के लिए करीब 4.5 लीटर डीजल पीता है।

इसके मुकाबले इलेक्ट्रिक इंजन का खर्चा कम है, करीब 250 किलोमीटर की रनिंग के लिए इलेक्ट्रिक इंजन को 5 हजार किलोवॉट बिजली लगती है। इतना ही नहीं डीजल लोको जहां धुएं से प्रदूषण फैलाता है, तो वहीं इलेक्ट्रिक इंजन में प्रदूषण न के बराबर होता है।

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