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7 की उम्र में ठेले पर गाया गाना: बॉलीवुड को दिए कई हिट नंबर्स, एक कॉन्सर्ट कर 10 बच्चों की जान बचाती हैं पलक मुच्छल

3 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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आमतौर पर चार साल की उम्र में बच्चे खाने और खेलने के अलावा कुछ नहीं सोचते। ऐसे में इस उम्र की एक लड़की, जो न सिर्फ अपना करियर तय कर रही थी बल्कि समाज के लिए कुछ करने का भाव भी रखती थी। एक साल बाद ही यानी महज पांच साल की उम्र में उस लड़की ने सोशल वर्क शुरू भी कर दिया। इसके लिए उसने अपनी आवाज को ताकत बनाया। आज वो लड़की आवाज और सोशल वर्क दोनों ही दुनिया में नाम बना चुकी है।

आज की सक्सेस स्टोरी में पढ़िए सिंगर पलक मुच्छल की कहानी। इंदौर जैसे छोटे से शहर से निकलकर मुंबई में अपने दम पर पहचान बनाने वाली पलक ने अब तक अपने मिशन ‘दिल से दिल तक’ के जरिए 3,473 बच्चों की हार्ट सर्जरी करवाई है। इस मिशन के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

आठ मार्च को पलक के मिशन को 25 साल पूरे हो जाएंगे। ऐसे में पलक की सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी….

पलक हिंदी के अलावा 17 अलग-अलग भाषाओं में गाना गाती हैं।

पलक हिंदी के अलावा 17 अलग-अलग भाषाओं में गाना गाती हैं।

चार साल की उम्र में सोच लिया था सिंगर बनूंगी

मेरे अंदर मेच्योरिटी बचपन से मौजूद थी। मैंने ढाई साल की उम्र में गाना शुरू कर दिया था। चार साल की उम्र में मैंने ये तय कर लिया था कि मुझे प्लेबैक सिंगिंग करनी है। म्यूजिक की दुनिया में, मैं अपने घर की पहली इंसान हूं। मुझे इस फील्ड की कोई जानकारी नहीं थी। जब मैंने तय कर लिया तो मेरी मां ने उस हिसाब से सारी प्लानिंग शुरू कर दी थी।

मैं और मां जब कैसेट के पीछे सिंगर का नाम देखते थे तो पूछते थे कि ये नाम कैसे आता है? फिर कहीं से पता चला कि क्लासिकल सीखना जरूरी होता है। तो मैं कल्याण जी-आनंद जी के ग्रुप में मेंबर बन गई। मम्मा ने अल्फाज-अदायगी के लिए उर्दू सिखाई। गजलें सीखीं। प्लेबैक सिंगिंग के लिए मुंबई आना जरूरी था। ऐसे में मेरे लिए घरवाले इंदौर में सबकुछ छोड़कर मुंबई शिफ्ट हो गए।

कारगिल युद्ध में जवानों के लिए पैसे जमा किए

मेरी उम्र पांच साल थी, जब 1999 कारगिल में वॉर हो रही थी। मुझे याद है मां ने न्यूजपेपर पढ़कर बताया कि जवानों की फैमिली की मदद के लिए बहुत सारे लोग आगे आ रहे हैं। मैंने मां से कहा, मैं भी मदद करना चाहती हूं। मैं आसपास की दुकानों में गई और वहां जाकर लता जी का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गया। मुझे 25 हजार रुपए मिले थे। उस अभियान से मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास आवाज की ताकत है।

सात साल में अपनी उम्र के बच्चे की सर्जरी का जिम्मा लिया

मैं बहुत छोटी थी, जब मुझे एहसास हो गया था कि मुझे समाज के लिए कुछ करना है। जब मैं ऐसे लोगों को देखती थी, जिनके पास मेरे जितने साधन नहीं हैं तो मुझे दुख होता था। उस वक्त मेरे मन में आता था, काश मैं इनकी मदद कर सकती। फिर मुझे मेरी आवाज मिली। तब मुझे लगा कि मैं इसके जरिए लोगों की जान बचा सकती हूं। पहले बच्चे के लिए मैंने और मेरे भाई पलाश ने इंदौर में परफॉर्म किया।

लोकेश जो कि मेरी ही उम्र का था। उसकी सर्जरी के लिए मैंने सड़क पर ठेले को स्टेज बनाकर गाना शुरू कर दिया था। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि पहली परफॉर्मेंस में 55 हजार रुपए इकट्ठे हो जाएंगे।

लोकेश की सर्जरी करने वाले डॉक्टर शेट्टी ने कहा कि वो फ्री में उसकी सर्जरी कर देंगे। फिर मैंने उस पैसे के लिए लोगों से पूछा कि और कोई जरूरतमंद बच्चा हो तो मुझसे आकर मिले। पहले दिन ही सात हार्ट पेशेंट आए। फिर मेरे पास शो भी आने लगे।

मैं इसी फॉर्मेट में अब तक काम कर रही हूं। बच्चे वेटिंग लिस्ट में होते हैं, मैं शोज करती हूं और शोज के पैसे से उनकी सर्जरी होती है। पहले 3 घंटे गाती थी तो एक बच्चे की जान बचा पाती थी। आज एक ही शो से 10-12 बच्चों की जान बच जाती है।

ऑक्सीजन सपोर्ट पर बच्चों को देख इमोशनल हो जाती हूं

मैं बचपन से इमोशनली सेंसिटिव थी। कई दफा बच्चे जब एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सपोर्ट पर आते हैं या उनकी फैमिली से सर्जरी के पहले मिलती हूं तो इमोशनल हो जाती हूं। मैं सर्जरी के दौरान ऑपरेशन थिएटर में होती हूं। वहां गीता का पाठ करती हूं, लेकिन सर्जरी के बाद उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर राहत मिलती है। वो पल इमोशनल और मजबूती दोनों का एहसास करवाता है।

अपने मिशन की वजह से हमेशा कर्ज में रहती हूं

सिंगिंग करियर से ज्यादा चुनौती मुझे मिशन को लेकर आती है। मुझे बच्चों के लिए सोचना पड़ता है। कई दफा मैं शो करती हूं, उस वक्त बच्चे अस्पताल में भर्ती होते हैं। मैं शो करके वापस आती हूं फिर उनकी सर्जरी कराती हूं। पैसे देने होते हैं। इंदौर में एक हॉस्पिटल है। जहां मुझे 10 लाख तक का क्रेडिट मिलता है। मैं पहले सर्जरी करा देती हूं फिर उन्हें पैसे देती हूं। बच्चों की सर्जरी लगातार चलती ही रहती है। ऐसे में मेरे ऊपर हमेशा उधार रहता है, लेकिन मैं इस कर्ज को अच्छा मानती हूं।

सिंगिंग की डेमो सीडी लेकर लोगों से मिलती थी

जब हम इंदौर छोड़कर मुंबई शिफ्ट हुए तब हम किसी को नहीं जानते थे। यहां आने के बाद मैं सबको बहुत कॉन्फिडेंस के साथ कॉल करती और अपने बारे में बताती। मैं लोगों से कहती, मेरा नाम पलक है। मैं गाना गाती हूं। मैं मुंबई में हूं और अगर मेरे लिए कोई काम हो तो मुझे बताइएगा। मुंबई आने से पहले मैंने अलग-अलग जॉनर में गाना गाकर एक सीडी रिकॉर्ड करवाया था। जब मैं लोगों को काम के लिए फोन करती तो कुछ लोग मिलने बुला लेते थे। कुछ लोग कहते थे कि सीडी भेज दो, तो ऐसे में मैं उन्हें सीडी भेजती थी, लेकिन इससे काम नहीं बना।

सलमान सर ने पहली मुलाकात में कहा, तुम मेरी फिल्म में गाओगी

मुंबई में पहले से हम लोग सिर्फ रूमी जाफरी को जानते थे। मुंबई आने के सात दिन बाद ही उनका कॉल आया और उन्होंने कहा कि तुम स्टूडियो आ जाओ। तुम्हें किसी से मिलवाना है। मैं स्टूडियो गई और वहां मैं सलमान सर से मिली। उन्होंने पहली मुलाकात में बोला कि तुम बहुत अच्छा गाती हो और जल्द ही तुम मेरी फिल्म के लिए गाओगी। उनसे मिलने के एक महीने बाद मुझे फिल्म ‘वीर’ में गाना गाने का मौका मिल गया। मेरे करियर में उन्होंने मुझे ऐसे सपोर्ट किया, जैसे कोई फैमिली मेंबर करता है। उन्होंने करियर, फिटनेस हर जगह मुझे गाइड किया है।

पलक के मिशन में योगदान के तौर पर सलमान ने 100 बच्चों की सर्जरी का खर्च उठाया था।

पलक के मिशन में योगदान के तौर पर सलमान ने 100 बच्चों की सर्जरी का खर्च उठाया था।

‘आशिकी-2’ के बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

चौदह साल पहले 2011 में हम लोग इंदौर छोड़कर मुंबई आए थे। जब हम आ रहे थे, तब आधा शहर हमें स्टेशन छोड़ने आया था। बसा-बसाया घर छोड़कर आ जाना एक बहुत बड़ा फैसला था। खासकर मेरी फैमिली के लिए। वो फैसला एक रिस्क था, जो पूरी फैमिली ने मिलकर लिया था। सलमान सर की वजह से मुझे अपना पहला ब्रेक जल्दी मिला गया था और ‘आशिकी-2’ के बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिल्म ‘आशिकी-2’ में गाने का मौका मेरे फोन कॉल की वजह से ही मिला था।

लता जी के लिए लंदन में कॉन्सर्ट करना स्पेशल मोमेंट था

मैं लता दीदी की बहुत बड़ी फैन हूं। मैंने उन्हें ट्रिब्यूट देने के लिए लंदन के रॉयल अल्बर्ट में परफॉर्म किया था। वो बीबीसी प्रोम्स का एक बहुत ही प्रेस्टीजियस शो था। वो कॉन्सर्ट ऐसा था, जिसमें मैं पर्सनली इन्वॉल्व थी। मैं प्रोडक्शन, अरेंजमेंट सबकुछ देख रही थी। मेरे साथ बर्मिंघम सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा के 127 म्यूजिशियन भी परफॉर्म कर रहे थे। वो कॉन्सर्ट और पल मेरे लिए बहुत स्पेशल था।

एक गाने का सपना लेकर मुंबई आई थी

उस वक्त बड़ा सपना सिर्फ एक गाना गाने का था। लगता था कि मेहनत करके एक गाना मिल जाए और कैसेट के पीछे मेरा नाम आ जाए। मैं उसी से खुश हो जाती, लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने इंडस्ट्री में सबके साथ काम कर लिया है। मैं 17 भाषाओं में गाना गा चुकी हूं। अब मेरी बकेट लिस्ट में सिर्फ विशाल-शेखर और सलीम-सुलेमान जी बचे हैं। शायद जल्द मैं इनके साथ भी काम कर लूंगी।

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2025-03-07 22:30:00
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