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मालवा के वैष्णो देवी मंदिर को कहते हैं आरोग्य तीर्थ: मान्यता- बावड़ी के जल से लकवा, मिर्गी जैसे रोगों से मिलती है मुक्ति – Neemuch News

नवरात्रि का आज यानि रविवार को चौथा दिन है। देवी मंदिर दर्शन की सीरीज में आपको दर्शन करवाते हैं भादवा माता के। इन्हें मालवा की वैष्णो देवी और आरोग्य देवी के नाम से भी जानते हैं। नीमच जिला मुख्यालय से करीब 24 किलोमीटर दूर इस मंदिर को आरोग्य तीर्थ भी कह

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तो चलिए, भादवा माता मंदिर की यात्रा शुरू करते हैं। यह मंदिर भदवा गांव में स्थित है, इसलिए इनका नाम भादवा माता पड़ा। मंदिर में शुरुआत से मुख्य पुजारी भील समुदाय का ही रहा है। वैसे, गांव में ब्राम्हण और भील समुदाय के लोग रहते हैं।

नवरात्रि में भादवा माता के दर्शन के लिए रोजाना करीब 20 हजार से ज्यादा लोग आते हैं।

नौ देवियां, भगवान विष्णु और शिवजी की मूर्ति

मंदिर के पुजारी अर्जुन पंडित बताते हैं कि मंदिर में भादवा माता चांदी के सिंहासन पर विराजित हैं। माता की मूर्ति के चारों ओर नौ देवियों की मूर्तियां रखी हैं। यहां- ब्रह्मणी, महेश्वरी, कुमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, इंद्री, शिवदत्ती व चामुंडा विराजमान हैं। नौ देवियों के सामने अखंड ज्योति कई साल से लगातार जल रही है। मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी, माता पार्वती व भगवान शंकर की आलिंगनबध प्रतिमा भी स्थित है।

गर्भ गृह के बाहर मुख्य द्वार के पहले गणेशजी और हनुमान जी विराजे हैं। वहीं, पश्चिम में भैरव व गौराजी की प्रतिमा विराजित है। मान्यता है कि माता के धूनी से निकाले गए धागा या कलावा रोगी को बांधने से जल्द ही रोग से मुक्ति मिलती है।

मान्यता- बावड़ी के जल मिलती है रोगमुक्ति

भादवा माता के मंदिर में प्राचीन बावड़ी है। इस बावड़ी में सालभर पानी रहता है। यहां आने वाले भक्त बावड़ी में स्नान और आचमन करते हैं। बोतल में भरकर पानी भी ले जाते हैं। इसके अलावा, रोग ग्रस्त अंग पर भस्म का लेप करते हैं। मन्नत मांगकर यहां श्रद्धालु कलावा भी बांधते हैं। मंदिर में सालभर लकवा, चर्मरोग समेत अन्य असाध्य रोगों से पीड़ित यहां आते हैं। श्रद्धालु यहां कई दिन तक रहते हैं। उनका मानना है कि भस्म लेपन, बावड़ी के जल और कलावा बांधने, मंदिर की परिक्रमा करने और माता की कृपा से उनका रोग ठीक हो जाता है। दैनिक भास्कर को दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने अपने अनुभव बताए।

भादवा माता मंदिर में बावड़ी मौजूद है। यहां से लोग पानी भरकर ले जाते हैं।

भादवा माता मंदिर में बावड़ी मौजूद है। यहां से लोग पानी भरकर ले जाते हैं।

मंदिर के अस्तित्व को लेकर दो मान्यताएं

इतिहासकार विपिन सुराव के मुताबिक 500 साल से भी ज्यादा पुराने मंदिर के अस्तित्व को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं।

पहली मान्यता – ब्राह्मणों के अनुसार विक्रम सम्वत् 1458 में राजस्थान के मेणार से पंडित पीताम्बरदास के पुरखे गांव भादवा मे आकर बसे। एक दिन पीताम्बरदास को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए। कहा- ‘गांव में स्थित आरणी वृक्ष के मूल में मेरी प्रतिमा दबी है। तुम इसे निकालकर स्थापित करो।’ जब इस स्थान पर खुदाई गई, तो यहां से मां की प्रतिमा निकली।

दूसरी – भीलों के पूर्वज राजस्थान से आकर नीमच के महेंन्द्री गांव में बसे। यहां से दो भाई धन्ना जी और रूपाजी भादवा आए। रूपाजी पास के ही गांव सावन में चले गए। वहीं, धन्नाजी भादवा में बस गए। एक दिन किसी बात से नाराज होकर रूपाजी रूठकर आरणी के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उसी रात रूपाजी को स्वप्न में माता ने दर्शन दिए। कहा- मेरी प्रतिमा आरणी के मूल में दबी है, उसे निकाल कर स्थापित करो।’ रूपाजी ने माता की मूर्ति निकालकर स्थापित कर दी।

भीलों को मिला पूजा का एकाधिकार

कहा जाता है कि जब मेवाड़ के महाराणा मोकल को माता के चमत्कार के बारे पता चला, तो वे भादवा आए। उन्होंने संवत् 1482 में भीलों को पूजा का अधिकार दिया था। आज भी मंदिर के पुजारी उसी भील परिवार के हैं। ब्राह्मणों का तथ्य वंश परंपरागत है, जबकि भीलों के कथन का आधार भाटो की पोथियां हैं, जो हस्तलिखित हैं। वर्तमान में भील समाज के धन्नाजी के वंशज ही पूजा कर रहे हैं।

जिंदा मुर्गा, बकरा तक चढ़ाते हैं श्रद्धालु

मंदिर में भक्त अपनी मन्नत लेकर आता है। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता को छत्र, मुकुट, माला, टीका, नथ, कमर बंध, पायजेब, बिछिया, त्रिशूल, तलवार, चंवर, सोने चांदी के आभूषण के साथ साड़ी, चुनरी, लहंगा, चोली, सोलह श्रृंगार, तोरण आदि चढ़ाते हैं। बच्चों की मनोरथ के लिए उनका मुंडन कर बाल चढ़ाए जाते हैं।

कुवांरी कन्याएं पति की मनोकामना के लिए सोलह श्रृंगार, रोग ग्रस्त अंग के ठीक होने पर चांदी की प्रतिकृति बनाकर चढ़ाते हैं। चूंकि मंदिर में बलि का रिवाज नहीं है। कुछ लोग जिंदा मुर्गा, बकरा आदि भी यहां चढ़ाते हैं। इसके बाद ये प्राणी मंदिर परिसर में ही घूमते रहते हैं। हालांकि प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी है। अब मंदिर में चांदी के बकरे व मुर्गे अर्पित किए जाते हैं।

मंदिर परिसर में स्थित धर्मशाला में लकवा और चर्मरोग से पीड़ित लोग ठहरे हुए हैं।

मंदिर परिसर में स्थित धर्मशाला में लकवा और चर्मरोग से पीड़ित लोग ठहरे हुए हैं।

अष्टमी के दिन जिले में रहता है अवकाश

आमतौर पर रोजाना करीब 1500 से दो हजार श्रद्धालु आते हैं। नवरात्रि के दिनों में 15 से 20 हजार रोजाना श्रद्धालु आते हैं। अष्टमी के दिन एक लाख तक श्रद्धालु आते हैं। हर साल चैत्र और अश्विन महीने की नवरात्रि में यहां मेला भी लगता है। माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है। मेले का आयोजन जिला प्रशासन की देख रेख में किया जाता है। यहां देशभर से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। माता के दरबार में श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हुए पैदल भी आते हैं। नवरात्रि में अष्टमी के दिन हवन भी होता है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए कलेक्टर द्वारा इस दिन जिले में छुट्‌टी भी कर दी जाती है।

मंदिर परिसर में श्रद्धालु धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं।

मंदिर परिसर में श्रद्धालु धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं।

100 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात

नीमच के एएसपी नवल सिंह सिसोदिया ने बताया कि सुरक्षा के लिहाल से मंदिर में जगह-जगह पर सीसीटीवी लगाए गए हैं। पुलिस, चौकीदार और प्राइवेट एजेंसी के करीब 100 लोग मेले की सुरक्षा में हैं। अष्टमी के दिन जिले के सभी थाना प्रभारी सहित वरिष्ठ अधिकार और 300 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात रहेंगे। कंट्रोल रूम भी बनाया गया है। विशेष चिकित्सा केंद्र और स्थाई पुलिस चौकी बनाई गई है।

मालवी भाषा में फिल्म भी बनी

माता की महिमा मंडित करने से पहला प्रयास कवि और वरिष्ठ राजनेता बालकवि बैरागी ने किया था। उन्होंने माता की महिमा पर मालवी भाषा में ‘जय भादवा माता’ फिल्म भी बनाई। मंदिर की बावड़ी के पानी को लेकर बालकवि का यह गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं। ‘ मालवा की राणी थारो अमृत पानी, थारी महीमा कोणी जाए बखाणी मारी माय।’ उन्होंने लोगों के रोग मुक्त होने के कारण पानी को अमृत कहा है।

श्रद्धालुओं ने दैनिक भास्कर के साथ अनुभव साझा किए

आठ जोन में बांटकर किया जा रहा काम

भादवा माता मंदिर के विकास व परिसर को सर्व सुविधा युक्त बनाने के लिए 26 करोड़ की लागत से मास्टर प्लान बनाया गया। इसमें 10 करोड़ के काम जनसहयोग से किए जा रहे हैं। बाकी 16 करोड़ का बजट प्रदेश सरकार ने दिए हैं। इसके तहत मंदिर क्षेत्र को 8 जोन में बांटकर काम किया जा रहा है। इसमें अन्न क्षेत्र, सुलभ कॉम्प्लेक्स, सीसी रोड, स्नानघर, डिवाइडर, पार्किंग, बगीचे, धर्मशाला, मंदिर कॉरिडोर, मंदिर जीर्णोद्धार, सड़क चौड़ीकरण, बायपास आदि का निर्माण कार्य किए जा रहे हैं।

ऑनलाइन दर्शन की भी व्यवस्था

भादवा माता ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष कलेक्टर व सचिव एसडीएम हैं। मंदिर समिति के सदस्य अलग-अलग क्षेत्र के वरिष्ठ व्यक्ति और जनप्रतिनिधि हैं। साल 1935 से ट्रस्ट का संचालन शासन के अधीन है।

ट्रस्ट की जिम्मेदारी मंदिर परिसर व मंदिर में साफ सफाई की जिम्मेदारी है। यात्रियों के रहने के लिए धर्मशाला, स्नान-ध्यान के लिए सुलभ कॉम्प्लेक्स, अन्न क्षेत्र के माध्यम से श्रृद्धालुओं को रियायती भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। भक्तों को घर बैठे ऑनलाइन दर्शन की सुविधा भी है।

‘MP के देवी मंदिरों के दर्शन’ सीरीज से जुड़े पिछले पार्ट यहां पढ़ें-

पार्ट 1- 800 फीट ऊंचे पर्वत पर विराजी हैं विजयासन देवी:विकराल रूप धर किया था रक्तबीज का संहार; 1401 सीढ़ियां चढ़कर होते हैं मां के दर्शन

पार्ट 2- देवास टेकरी यहां माता का शक्तिपीठ नहीं, रक्तपीठ:300 फीट ऊंची चोटी पर बहन के साथ विराजीं तुलजा भवानी; 5 पान के बीड़े का भोग

पार्ट-3 विक्रमादित्य ने 12 बार शीश काटकर चढ़ाया:यहां आज भी तंत्र सिद्ध करते हैं तांत्रिक; ऐसा है उज्जैन का 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर

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