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MP में BJP नेताओं के निशाने पर अफसर क्यों: उल्टा टांग दूंगा…से शुरू हुई बात एसपी की अपराधियों से दोस्ती तक पहुंची

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‘नशा बेचने वाला और करने वाला कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाए। कठोर कार्रवाई करें, नहीं तो फिर हम सख्त एक्शन लेंगे।’ -कैलाश विजयवर्गीय, कैबिनेट मंत्री, 26 सितंबर 2024

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‘मैं एसपी से कहना चाहता हूं कि अपराधियों से दोस्ती करना बंद करो और कार्रवाई करो। तुम्हारे संपर्क में कसाई भी हैं और छेड़छाड़ के आरोपी भी हैं।’ रामेश्वर शर्मा, बीजेपी विधायक, 13 सितंबर 2024

‘होशंगाबाद कलेक्टर ने पैसे देकर पद खरीदा है। मीडियाकर्मी ईमानदारी से स्टिंग करें तो यह तथ्य सामने आ जाएगा।’ जीतू पटवारी, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस, 13 सितंबर 2024

‘कलेक्टर को बीजेपी और आरएसएस के लिए काम करना है तो कलेक्टरी छोड़कर उनकी शाखा में जाएं।’ उमंग सिंघार, नेता प्रतिपक्ष, 23 सितंबर 2024

इन बयानों से साफ है कि चाहे वह सत्ताधारी दल हो या विपक्ष के नेता, सभी के निशाने पर ब्यूरोक्रेसी है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे मामले भी हैं, जिनमें अधिकारियों और नेताओं के बीच विवाद हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ है कि मंत्री-विधायक अचानक अधिकारियों पर हमलावर हो गए?

दैनिक भास्कर ने नेताओं के इन बयानों को लेकर एक्सपर्ट से मुद्दा समझने की कोशिश की। इस मामले पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं से भी बात की। पढ़िए रिपोर्ट…

पहले वो पांच मामले, जिनमें सत्ताधारी दल और ब्यूरोक्रेसी के बीच टकराव हुआ

1. तीन दिन में इंदौर में नशे का कारोबार बंद हो- कैलाश विजयवर्गीय

मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के ये सख्त तेवर बीजेपी सदस्यता अभियान कार्यक्रम के दौरान नजर आए थे। दरअसल, इंदौर के कार्यक्रम में पहुंचे नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का महिलाओं ने घेराव कर दिया। उन्होंने इलाके में चल रहे नशे के कारोबार की शिकायत की। महिलाओं ने कहा- इलाके में नशे का कारोबार इतना जोर पकड़ रहा है कि वो खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।

महिलाओं की शिकायत के बाद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मंच से परदेसीपुरा पुलिस चौकी को चेतावनी देते हुए कहा- तीन दिन के अंदर नशे का कारोबार बंद होना चाहिए, नहीं तो चौथे दिन सख्त कदम उठाए जाएंगे। विजयवर्गीय ने कहा- यदि किसी नेता का फोन नशा करने वाले या नशा बेचने वाले को छुड़ाने के लिए आता है तो थाना प्रभारी सीधे मुझसे संपर्क करें। अगर मंच पर बैठा कोई व्यक्ति भी इस अवैध धंधे में शामिल पाया जाता है तो उसकी सिफारिश भी न मानी जाए।’

नगरीय प्रशासन मंत्री ने दूसरी बार ये चेतावनी दी। इससे पहले वे एक कार्यक्रम में थाना प्रभारी से कह चुके थे कि नशा करने वालों को उल्टा लटका देना।

इससे पहले विजयवर्गीय 24 घंटे बाजार खोलने का खुलकर विरोध कर चुके हैं।

नशे के बढ़ते कारोबार को लेकर महिलाओं ने नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को ज्ञापन सौंपा था।

नशे के बढ़ते कारोबार को लेकर महिलाओं ने नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को ज्ञापन सौंपा था।

2. एसपी अपराधियों से मिले हैं- रामेश्वर शर्मा

भोपाल हुजूर से भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने भोपाल ग्रामीण के एसपी प्रमोद सिन्हा के लिए कहा कि वे अपराधी हैं। अपराधियों को शरण देते हैं। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने एसपी को नसीहत दी- अपराधियों से दोस्ती करना बंद कर दीजिए।

दरअसल, भोपाल के बैरसिया में नाबालिग छात्राओं को अश्लील मैसेज करने और फोटो-वीडियो वायरल करने की धमकी देने का मामला सामने आया था। इस मामले में कार्रवाई को लेकर हुई लेट लतीफी पर विधायक ने एसपी को जिम्मेदार ठहराया।

उन्होंने कहा- पुलिस प्रशासन ने जो कार्रवाई में लापरवाही की है, वह गलत है। वहां एसपी अपराधी हैं। वे अपराधियों को शरण देते हैं, नहीं तो कार्रवाई तत्काल हो जाती।

3. स्मार्ट सिटी सीईओ को तत्काल हटाओ- चैतन्य काश्यप

ये वाकया 20 सितंबर का है। भोपाल के प्रभारी मंत्री चैतन्य काश्यप जिले की समीक्षा बैठक ले रहे थे। लेकिन स्मार्ट सिटी सीईओ केएल मीणा बैठक में नहीं आए। इससे काश्यप सहित अन्य जनप्रतिनिधि नाराज हो गए। इस दौरान कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने मीणा को फोन लगाया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे 10 मिनट में आ रहे हैं, लेकिन आधा घंटे में भी नहीं आए।

जिस पर सांसद आलोक शर्मा और हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा भी भड़क गए। जनप्रतिनिधियों की नाराजगी को देखते हुए भोपाल जिले के प्रभारी मंत्री चैतन्य कश्यप ने कलेक्टर को कहा ऐसा नहीं चलेगा। सीईओ के बारे में उचित निर्णय लीजिए। प्रभारी मंत्री के निर्देश पर कलेक्टर ने सीईओ को नोटिस दे दिया है।

भोपाल के प्रभारी मंत्री चैतन्य काश्यप ने 20 सितंबर को बैठक ली जिसमें स्मार्ट सिटी सीईओ नहीं पहुंचे थे।

भोपाल के प्रभारी मंत्री चैतन्य काश्यप ने 20 सितंबर को बैठक ली जिसमें स्मार्ट सिटी सीईओ नहीं पहुंचे थे।

4. RSS पदाधिकारी से एसडीएम का विवाद, हटाए गए

21 सितंबर को बुधनी एसडीएम राधेश्याम बघेल का आरएसएस के जिला कार्यवाहक जुगल सिसोदिया से विवाद हो गया था। दरअसल, रेहटी में लव जिहाद और छेड़छाड़ की घटना को लेकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व नेता व अन्य लोग ज्ञापन देने पहुंचे थे। इस दौरान आरएसएस कार्यकर्ता जुगल सिसोदिया एसडीएम से चर्चा करते-करते उनके पीछे पहुंच गए।

एसडीएम ने जुगल सिसोदिया को सामने से आकर बात करने को कहा और उनसे अभद्रता की। जब सिसोदिया ने इस बात का विरोध किया तो एसडीम उनसे कहने लगे कि आप लोग ज्ञापन देने आए हैं या गुंडागर्दी करने आए हैं। क्या मुझे धमका रहे हो।

इस पर हिंदू संगठन ने कहा कि हम गुंडागर्दी करने नहीं बेटियों की रक्षा के लिए ज्ञापन देने आए हैं। SDM बघेल इसी बात पर अड़े रहे कि RSS पदाधिकारी उनके पीछे खड़े नहीं हो सकते। क्या आप सब लोग मुझे मारने आए हो? इसको लेकर कलेक्टर से भी शिकायत की गई। बाद में एसडीएम आर एस बघेल को हटा दिया।

गुलाबी गमछा ओढ़े जुगलकिशोर सिसोदिया और उनसे बात करते एसडीएम आर एस बघेल।

गुलाबी गमछा ओढ़े जुगलकिशोर सिसोदिया और उनसे बात करते एसडीएम आर एस बघेल।

5. सीएम के ओएसडी को धमकी देने के बाद बीजेपी नेता को जेल

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के ओएसडी लोकेश शर्मा को धमकाने और गाली देने के आरोप में भाजपा नेता हरेंद्र बहादुर सिंह को 10 अगस्त को पुलिस ने गिरफ्तार किया गया था। सिंह पर आरोप था कि उन्होंने अटल बिहारी सुशासन संस्थान में एक समारोह के दौरान शर्मा से विवाद किया था। शर्मा सीएम के ओएसडी होने के साथ-साथ इस संस्थान के सीईओ भी हैं।

संस्थान की तरफ से नायब तहसीलदार निमेश पांडे ने कमला नगर पुलिस थाने में भाजपा नेता के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें कहा गया था कि हरेंद्र बहादुर सिंह ने संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लोकेश शर्मा के खिलाफ “सरकारी काम में बाधा डाली, अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और धमकी दी।

पीएम मोदी के साथ बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हितेंद्र सिंह। वे विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के भी करीबी हैं।

पीएम मोदी के साथ बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हितेंद्र सिंह। वे विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के भी करीबी हैं।

सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष भी हमलावर

नर्मदापुरम कलेक्टर ने कितने पैसे देकर खरीदी कलेक्टरी: जीतू पटवारी

मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने 13 सितंबर को इटारसी में किसान न्याय यात्रा के दौरान एक आम सभा में नर्मदापुरम कलेक्टर सोनिया मीणा पर पैसे देकर कलेक्टरी खरीदने का आरोप लगाया। पटवारी ने कहा था – होशंगाबाद कलेक्टर ने पैसे देकर पद खरीदा है।

मीडिया कर्मी ईमानदारी से स्टिंग करें तो यह तथ्य सामने आ जाएगा। एसपी, एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी,थानेदार कोई भी बिना पैसे लिए काम नहीं करते। उन्होंने सुसनेर में किसान न्याय यात्रा के दौरान ये आरोप लगाया कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। कई उच्च अधिकारियों का नार्को टेस्ट कराया जाए तो वे भ्रष्ट साबित होंगे।

जीतू पटवारी के आरोपों पर सीएम मोहन यादव ने पलटवार किया। उन्होंने कहा ‘रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। कांग्रेस नेताओं द्वारा नर्मदापुरम जिले के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया गया है, वह प्रदेश के समस्त अधिकारियों और कर्मचारियों का अपमान है।

कलेक्टरी छोड़कर RSS की शाखा में जाएं अलीराजपुर कलेक्टर: उमंग सिंघार

नर्मदापुरम के बाद अलीराजपुर कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर कांग्रेस ने आरोप लगाए। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अलीराजपुर में 21 सितंबर को किसान न्याय यात्रा के दौरान कलेक्टर अभय बेड़ेकर पर आरोप लगाए। उन्होंने कहा था – कलेक्टर अभय बेडेकर को बीजेपी और आरएसएस के लिए काम करना है तो कलेक्टरी छोड़कर उनकी शाखा में जाएं।

कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो अपनी कुर्सी को छोड़कर बीजेपी की दलाली कर रहे हैं। आप निष्पक्ष और बिना किसी डर के लोगों की सेवा करें। ऐसा नहीं करेंगे तो कांग्रेस को आपके खिलाफ बिगुल बजाना पड़ेगा।सिंघार के बयान पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने पलटवार किया। शर्मा ने कहा -ये वही उमंग सिंघार हैं, जिन्होंने दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा बिचौलिया और शराब माफिया कहा था।

नेता और अफसरों में क्यों हो रहा टकराव

एक्सपर्ट बोले- करप्शन का लेवल बढ़ा है

इस सवाल का जवाब राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह 7 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक बयान का उदाहरण देकर समझाते हैं। जिसमें शिवराज ने कलेक्टर को कहा था-उल्टा टांग दूंगा। सिंह कहते हैं कि शिवराज से पहले देश में किसी भी राजनेता ने इस तरह सार्वजनिक तौर पर किसी कलेक्टर को सीधे चेतावनी नहीं दी थी।

अब वर्तमान समय में जिस तरह से नेताओं के निशाने पर ब्यूरोक्रेट्स हैं, इसकी बड़ी वजह यह है कि पिछले कुछ सालों में करप्शन का लेवल बढ़ा है। अब अफसरों पर आरोप लग रहे हैं, उसमें कुछ नेताओं के अपने निजी कारण भी होते हैं। लेकिन अधिकतर मामलों को देखें तो धुआं वहीं उठता है, जहां आग होती है।

एक वजह और है, ट्रांसफर-पोस्टिंग में नेताओं का दखल। अफसर उस नेता को तवज्जो देता है, जिसने पोस्टिंग में अहम रोल निभाया। ऐसे में क्षेत्र के अन्य नेता अफसरों को निशाने पर लेते हैं। इसका असर यह हो रहा है कि जिस तरह से नेताओं की ब्यूरोक्रेट्स को लेकर सोच बदलती जा रही है, उससे सिविल सर्विस में आने का जज्बा भी कम हुआ है।

नेताओं-ब्यूरोक्रेट्स, दोनों के नैतिक मूल्यों में गिरावट आई

मध्य प्रदेश के एक पूर्व मुख्य सचिव ने कहा कि नेताओं, खासकर जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव की वजह से दोनों के नैतिक मूल्यों में गिरावट आना है। यदि चिंगारी निकली है तो आग लगने की संभावना ज्यादा ही रहेगी। इस दिशा में सामूहिक तौर पर गौर करने की जरूरत है।

बड़े पदों और खासकर मैदान स्तर पर कलेक्टर-एसपी की पोस्टिंग मुख्य सचिव, डीजीपी और मुख्यमंत्री के तालमेल से होती है। बावजूद इसके प्रशासनिक कार्यप्रणाली में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन इसे समय रहते दुरुस्त कर लेना बेहतर प्रशासक होने का प्रमाण माना जाता है।

बीजेपी बोली- क्षेत्राधिकार में दखल होगा तो विवाद बढ़ेंगे ही

बीजेपी के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि संविधान में विधायिका और कार्यपालिका का कार्यक्षेत्र तय किया है। जब एक दूसरे को ओवरटेकिंग करने की प्रक्रिया शुरू होती है। दूसरे के काम में दखल देने की प्रवृत्ति शुरू हो जाती है, तो ऐसी समस्या आती है।

विधायिका में चुने हुए जनप्रतिनिधि होते हैं। उन पर जनता का दबाव होता है। उन्हें परिणाम देना होता है, क्योंकि जनता की उनसे अपेक्षा होती है। कार्यपालिका में बैठे अधिकारियों को एग्जीक्यूशन करना होता है। ये काम नहीं हो सकता ऐसा कहने की बजाय अधिकारी यदि कहें कि ये काम ऐसे होगा तो बेहतर समन्वय होगा। अधिकारियों को एप्रोच बदलना होगी।

कांग्रेस बोली- प्रशासनिक सेवाओं का निजीकरण हो गया

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी मुकेश नायक कहते हैं कि बीजेपी पिछले 20 सालों से सत्ता में है। राज्य में ऐसा वातावरण बन गया है कि कोई फायदे की जगह लेना हो तो बिना नेताओं के सहयोग से संभव नहीं है। पूरी प्रशासनिक सेवाओं का निजीकरण होता दिखाई दे रहा है।

विपक्षी पार्टियों का दबाव नहीं रहा है। जो अधिकारी नेताओं का संरक्षण लेकर और पैसे के जोर से जिम्मेदारी की जगह लेगा, तो वह निरंकुश होकर काम करेगा। उसे किसी का भय नहीं रहेगा। मध्यप्रदेश के सरकारी दफ्तरों में रूटीन के काम नहीं हो रहे हैं। लोग सरकारी दफ्तरों में भटक रहे हैं। अफसरशाही का मप्र में बेहद बुरा हाल है।

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