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मेडिकल स्टूडेंट से शुरू हुआ नशा कैसे एमपी में फैला: 10 लाख से ज्यादा युवाओं को इस ‘ड्रग’ की लत, क्यों बढ़ रहा इसका एडिक्शन

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कफ सिरप में कोडीन फॉस्फेट नाम का ड्रग पाया जाता है, जो इस नशे का जिम्मेदार है।

ये बात साल 1996 की है। हम कॉलेज में पढ़ते थे। क्लास खत्म होने के बाद शाम 5 बजे सभी दोस्त चाय पीने एक गुमटी पर जाते थे। एक दिन मेरा एक दोस्त, जो उस समय रीवा में पदस्थ आईपीएस अफसर का बेटा था…उसने कफ सिरप की बोतल देते हुए कहा- आज इसे पीकर चाय पीयो, मज

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हमें पता ही नहीं चला कि अगले दो से तीन घंटे तक हम किस दुनिया में थे। उस समय ये सिरप फेंसीड्रिल के नाम से बाजार में मिलता था। इसके बाद तो हमें इसकी लत लग गई।

ये आपबीती है मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की एक फाइनेंस कंपनी के मैनेजर की। वे अपना नाम नहीं बताना चाहते, मगर इतना कहते हैं कि माता-पिता और ईश्वर के आशीर्वाद से मुझे 6-7 महीने में समझ आ गया था कि यदि मैं लगातार इसका नशा करता रहा तो कहीं का नहीं रहूंगा। हमारे कॉलेज के ज्यादातर लड़के इसके एडिक्ट थे।

फाइनेंस मैनेजर तो इसकी लत से बाहर आ गए मगर ये कफ सिरप रीवा ही नहीं बल्कि विंध्य क्षेत्र के 8 जिलों के करीब 10 लाख युवाओं को अपनी चपेट में ले चुका है। यहां ये ‘माहौल’ और ‘सिस्टम’ नाम के कोड वर्ड से बिकता है।

कफ सिरप में कोडीन फॉस्फेट नाम का ड्रग पाया जाता है, जो इस नशे का जिम्मेदार है। साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप की पूरी बोतल को ही एनडीपीएस एक्ट के दायरे में ला दिया है। इसके बाद से पुलिस और दूसरी एजेंसियों ने इसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की है।

भोपाल में 1814 करोड़ की एमडी ड्रग्स की फैक्ट्री के खुलासे के बाद दैनिक भास्कर ने पिछले दो दशक से चल रहे नशे के इस कारोबार की पड़ताल की। कैसे इस नशे की शुरुआत हुई, युवा कैसे इसकी गिरफ्त में आते गए…प्रतिबंध के बावजूद ये कारोबार कैसे फलता-फूलता रहा…पढ़िए, संडे स्टोरी

आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार।

1995 के आसपास पांडेन टोला से शुरुआत रीवा में एक जगह है पांडेन टोला। ये मेडिकल कॉलेज से सटा हुआ इलाका है। रीवा में नशा मुक्ति के लिए पिछले एक दशक से काम कर रही शहीद भगत सिंह सेवा समिति के सुजीत द्विवेदी कहते हैं- ये 1996 के आसपास की बात है। पांडेन टोला के लड़कों ने ही सबसे पहले कफ सिरप को नशे के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया था।

कफ सिरप का इस्तेमाल नशे के लिए किया जा सकता है, ये इन लड़कों को कैसे पता चला? इस सवाल के जवाब में द्विवेदी कहते हैं- इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, मगर 1995 के आसपास सबसे पहले मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स ने ही इसकी शुरुआत की थी।

उन्होंने ही बताया कि कफ सिरप का इस्तेमाल नशे के तौर पर किया जा सकता है। इसके बाद इसका दायरा बढ़ता गया। ये नशा स्कूल और कॉलेजों तक पहुंचता गया।

5 पॉइंट्स में जानिए, कफ सिरप के नशे का प्रचलन क्यों बढ़ा?

  • आसानी से मिलने वाला: कफ सिरप मेडिकल स्टोर्स में आसानी से मिलता है। इसके लिए डॉक्टर के पर्चे की जरूरत है, मगर मेडिकल स्टोर बगैर पर्चे के देते हैं।
  • परिजन को शक नहीं: युवा इसे खांसी की दवा बताकर पीते हैं। खांसी की दवा को आज भी नशे की कैटेगरी में नहीं रखा जाता।
  • दूसरे नशे की तरह बदबू नहीं: कफ सिरप को नशे की तरह इस्तेमाल करने की सबसे बड़ी वजह है कि शराब या दूसरे नशे की तरह इसकी बदबू नहीं आती।
  • बाकी नशेड़ियों जैसा बर्ताव नहीं: इसका नशा करने वालों का बर्ताव स्मैक, हेरोइन या शराब पीने वाले नशेड़ियों जैसा नहीं होता। नशा करने के बाद इंसान अकेले रहना पसंद करता है।
  • हर वर्ग के दायरे में: इस नशे का इस्तेमाल निम्न आय वर्ग से लेकर उच्च आय वर्ग के युवा कर रहे हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप से 65 से 70 फीसदी युवाओं की तादाद इस वर्ग में आती है।

नशे की लत पूरी करने अपराध की तरफ बढ़ रहे युवा रीवा में एसपी रहे अधिकारी ने कहा- साल 2020 में रीवा में मेरी पोस्टिंग को कुछ दिन ही हुए थे। जब मैं दफ्तर से निकल रहा था, उसी समय एक कॉल आया। कॉल करने वाली एक महिला थी। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि मुझे मेरे बेटे से बचा लो।

मैंने तुरंत ही वायरलेस सेट पर मैसेज दिया और संबंधित थाने के टीआई को वहां जाकर देखने के लिए कहा। उसके बाद मैंने उस महिला से बात की। उसने बताया कि उस दिन उसके पढ़े लिखे बेटे ने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया था। वो कफ सिरप खरीदने के लिए पैसे मांग रहा था। मेरे पास पैसे नहीं थे तो उसने मुझसे मारपीट की।

अधिकारी ने बताया- जब मैंने इस मामले की तफ्तीश की तो पता चला कि चेन स्नैचिंग, लूट और चोरी के जो मामले बढ़ रहे हैं, वो इसी नशे की वजह से है।

रीवा पुलिस नशीले कफ सिरप के खिलाफ जब्ती की कार्रवाई लगातार करती है।

रीवा पुलिस नशीले कफ सिरप के खिलाफ जब्ती की कार्रवाई लगातार करती है।

पैसे के लिए चेन स्नैचिंग, लूट और चोरी करते हैं अधिकारी ने कहा- कफ सिरप का नशा ऐसा है कि शुरू में तो केवल एक बोतल से काम चल जाता है। एक बोतल सस्ते में मिल जाती है। धीरे-धीरे एडिक्ट को इसकी ऐसी आदत पड़ती है कि एक बोतल से काम नहीं चलता। नशे का प्रभाव बढ़ाने के लिए दो से तीन बोतल और फिर इससे ज्यादा बोतल पीने लगते हैं।

जब उनके खर्च बढ़ने लगते हैं तो परिवार से पैसा मांगते हैं। वहां से पैसा नहीं मिलता तो चेन स्नैचिंग, लूट और चोरी की वारदातों को अंजाम देने लगते हैं। कुछ युवा अपने नशे की आदत पूरी करने के लिए इसका धंधा भी करने लगे। वो बड़े डिस्ट्रीब्यूटर से ज्यादा बोतलें खरीदते हैं, उसे और महंगे दामों पर बेचते हैं। जब पुलिस उन्हें पकड़ती है तो वो रजिस्टर्ड क्रिमिनल हो जाते हैं।

हर साल 50% नशे के मरीज बढ़ रहे, ज्यादातर 30 साल से कम रीवा मेडिकल कॉलेज में मानसिक रोग विभाग की एचओडी डॉ. निमिषा मिश्रा कहती हैं- वर्ष 2021 में हमने 21 हजार मरीजों की जांच की। 2022 में ये आंकड़ा 28 हजार हो गया। 2023 में 32 हजार मरीज हमारी ओपीडी में आए।

इस साल अब तक 30 हजार मरीजों की जांच हो चुकी है। इसमें नशे के एडिक्शन के पेशेंट भी लगातार बढ़ रहे हैं। 2021 में नशे वाले मनोरोगी 10 हजार थे। 2022 में ये 15 हजार हुए और 2023 में इनकी संख्या 20 हजार के पार हो गई।

डॉ. निमिषा कहती हैं कि कोरेक्स, गांजा और एल्प्रोजेलम की टेबलेट का नशा करने वाले मरीज ज्यादा हैं। कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप का प्रचलन युवाओं में ज्यादा बढ़ा है। जहां तक आयु वर्ग की बात करें तो 14 से 30 साल तक की उम्र वाले युवा ज्यादा हैं। ये पीयर प्रेशर, जिज्ञासा और इंजॉय के लिए नशा लेना शुरू करते हैं, फिर इसके एडिक्ट हो जाते हैं। एक बार नशे का इस्तेमाल शुरू किया तो फिर वे उस पर निर्भर हो जाते हैं। नशे के बिना वे असहज हो जाते हैं। कई बार ऐसे पेशेंट क्रिटिकल हो जाते हैं।

वे कहती हैं- पेशेंट्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए हमने नशा मुक्ति वार्ड में 20 बेड का प्रस्ताव सरकार को भेजा है।

अब जानिए कहां से आता है कफ सिरप, कितना बड़ा कारोबार मार्च 2016 में जब कोरेक्स पर प्रतिबंध लगा, तब इसे बनाने वाली कंपनी ने 2015 में 175 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। इसके बाद कई कंपनियों ने कोडीन फॉस्फेट का इस्तेमाल कर इसके मिलते-जुलते नामों से ये सिरप बनाना शुरू किया।

पुलिस अधिकारियों ने बताया- अब तक की जांच में पता चला है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कानपुर में कोडीन फॉस्फेट वाले कफ सिरप का प्रोडक्शन हो रहा है। ये पड़ोसी राज्यों से होते हुए मध्यप्रदेश में सप्लाई होता है।

संगठित गिरोह की तरह सप्लाई चेन का पुख्ता सिस्टम रीवा के एसपी विवेक सिंह कहते हैं- विंध्य के जिलों में कफ सिरप की सप्लाई का सिस्टम संगठित गिरोह जैसा है। पिछले दिनों हमने चोरहटा थाने में प्रतिबंधित कोडीन फॉस्फेट युक्त नशीली दवा ऑनरेक्स कफ सिरप की बरामदगी की थी। आरोपियों से पूछताछ में पुलिस को सागर का लिंक मिला।

आरोपियों ने बताया कि सागर के मोतीनगर थाना क्षेत्र में रहने वाले अरविंद जैन और उसका बेटा सत्तू जैन नशीली दवाओं का कारोबार कर रहे हैं। दोनों ने पूछताछ में बताया कि रीवा के सरगना के जरिए वो इस दवा की सप्लाई करते थे। पुलिस ने सागर स्थित गोदाम पर दबिश दी तो तो प्रतिबंधित दवा की 800 पेटी जब्त की। इनकी कीमत एक करोड़ 22 लाख 40 हजार रुपए है।

सतना में कफ सिरप सप्लाई का चल रहा था सिंडिकेट एक महीने पहले सतना पुलिस ने सप्लाई सिंडिकेट का खुलासा किया है, जिसमें राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी के बहनोई शैलेंद्र सिंह राजावत को गिरफ्तार किया था। हालांकि, राजावत की गिरफ्तारी के बाद राज्यमंत्री ने कहा था कि वह उनका रिश्तेदार नहीं है।

शैलेंद्र राजावत की गिरफ्तारी के बाद इंटर स्टेट सिंडिकेट का खुलासा हुआ था। इसमें कफ सिरप की सप्लाई के बदले पैसों का लेन-देन बड़े संगठित तरीके से हो रहा था। राजावत की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद पुलिस ने रैगांव के कियोस्क संचालक रिपुदमन सिंह सोलंकी को गिरफ्तार किया।

पूछताछ में उसने बताया कि शैलेंद्र राजावत और इस मामले में फरार आरोपी आशीष गौतम उसके खाते में पैसे भेजते थे, जिन्हें वह डीलर के खाते में ट्रांसफर करता था। एक और फरार आरोपी अमित गुप्ता भी उसे नकद रकम लाकर देता था। इस काम के एवज में उसे 10 प्रतिशत कमीशन मिलता था।

पुलिस पूछताछ में उसने बताया कि दो साल में उसने 5 करोड़ 35 लाख रुपए का ट्रांजेक्शन दूसरे बैंक खातों से किया है।

पुलिस गिरफ्त में कियोस्क संचालक रिपुदमन सिंह रीवा संभाग में 10 महीने में 2 करोड़ का सिरप पकड़ा मामले दर्ज 425 आरोपी गिरफ्तार 615 कफ सिरप जब्त 943 पेटी नशे की गोलियां जब्त 177012 नग कुल कीमत 2 करोड़ 63 लाख 510 रुपए रुपयों का लेन-देन 9 करोड़ 85 लाख रुपए आंकड़े- जनवरी 2024 से लेकर 10 अक्टूबर 2024 तक

पुलिस गिरफ्त में कियोस्क संचालक रिपुदमन सिंह रीवा संभाग में 10 महीने में 2 करोड़ का सिरप पकड़ा मामले दर्ज 425 आरोपी गिरफ्तार 615 कफ सिरप जब्त 943 पेटी नशे की गोलियां जब्त 177012 नग कुल कीमत 2 करोड़ 63 लाख 510 रुपए रुपयों का लेन-देन 9 करोड़ 85 लाख रुपए आंकड़े- जनवरी 2024 से लेकर 10 अक्टूबर 2024 तक

कोरेक्स सिटी के तमगे को लेकर गर्मा चुकी राजनीति रीवा जिले के सेमरिया विधायक अभय मिश्रा ने विधानसभा सत्र में कोरेक्स की बोतलें ले जाने का ऐलान किया था। मिश्रा ने रीवा को कोरेक्स सिटी कहते हुए डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था- मेरी मुलाकात दिल्ली में एक व्यापारी से हुई। उसने मुझसे पूछा कि आप कहां के रहने वाले हैं? मैंने रीवा का नाम लिया तो वो मुझसे कहने लगा- अच्छा, आप कोरेक्स सिटी से आए हो।

मैंने पूछा कि कोरेक्स सिटी कैसे तो उन्होंने बताया- मैं खांसी की सिरप का मैन्युफैक्चरर हूं। मेरा आधे से ज्यादा माल रीवा में ही बिकता है। इतना सुनकर मैं हैरान रह गया।

डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल की यूपी के सीएम से मुलाकात इसी साल जून के महीने में मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर सीमावर्ती क्षेत्रों से सप्लाई किए जाने वाले कोडीन फॉस्फेट पर रोक लगाने की मांग की थी। वे योगी को पत्र भी लिख चुके हैं।

उन्होंने लिखा था- यूपी के मिर्जापुर, प्रयागराज, वाराणसी आदि जिलों में कोडीन फॉस्फेट आसानी से मिल रहा है। यूपी में इस ड्रग को रखने वालों के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट में कार्रवाई नहीं हो रही है। ऐसे में कोडीन फॉस्फेट का इस्तेमाल कफ सिरप में कर इसे विंध्य के इलाकों में बेचा जा रहा है। राजेंद्र शुक्ल ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया था।

सांसद ने कहा- नए पार्क में कोरेक्स की बोतल मत फेंकना रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा ने हाल ही में नवरात्रि के पहले दिन अटल पार्क के लोकार्पण कार्यक्रम में कहा था- शहर के किसी भी पार्क में चले जाओ। हर जगह कोरेक्स की बोतलें पड़ी मिल जाती हैं। अब ये नया पार्क बनकर तैयार हुआ है। ये इतनी आसानी से नहीं बना है।

इसे बनाने के लिए काफी प्रयास करने पड़े हैं। अब जब पार्क बनकर तैयार हो गया है तो मेरी गुजारिश है कि इस पार्क में कोई कोरेक्स की बोतल न फेंके।

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