60 वर्षीय महिला ने पांच साल तक शरिया के प्रावधान पर लड़ाई लड़ी
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शरिया की व्यवस्था को असंवैधानिक बताकर उसे हाई कोर्ट में चुनौती देने वाली 60 वर्षीय हुसना बेगम का ह्रदय परिवर्तन हो गया है। वो 5 साल से 116 वर्गमीटर जमीन में भाइयों के बराबर हिस्सा लेने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। अब उनका कहना है कि वे इस मामले को बातचीत के माध्यम से आपस में सुलझा लेंगी। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 (शरिया) को चुनौती देते हुए जो याचिका दायर की थी उसे मंगलवार को वापस लेने के लिए आवेदन दिया। इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया। जब उनके वकील ने बताया कि वे केस वापस लेना चाहते हैं तो कोर्ट ने कहा कि हमें इसका पूर्वानुमान था। ऐसी याचिकाएं वापस ले ली जाती हैं।
दतिया निवासी हुसना के पिता की मौत के बाद उसके भाई मजीद और रहीस खान ने राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा दिया। हुसना ने नजूल कार्यालय में भाइयों के बराबर (1/3 हिस्सा)भूमि अपने नाम दर्ज करने के लिए आवेदन दिया। नजूल अधिकारी ने उनके पक्ष में फैसला किया, जिसे बाद में एडिशनल कमिश्नर ने निरस्त कर दिया।
इस पर हुसना ने कोर्ट में याचिका दायर की। 2019 से लेकर 2024 तक वह शरिया के उस प्रावधान के खिलाफ लड़ाई लड़ती रहीं, जिसमें पिता की संपत्ति में बेटी को बेटे का आधा हिस्सा देने की बात कही गई है। कोर्ट ने इस मामले में हुसना बेगम के वकील को विस्तार से अपनी बात रखने के लिए समय दिया था। मामला आगे बढ़ता , उससे पहले ही याचिका वापस ले ली गई।
शरिया को बताया था अरब देशों की व्यवस्था
हुसना बेगम की ओर से दायर याचिका में शरिया को अरब देशों की व्यवस्था बताया गया। सवाल उठाया गया कि इसका पालन भारत में क्यों हो रहा है। भारत के संविधान में सभी एक समान हैं, जबकि शरिया में पिता की संपत्ति पर जितना हिस्सा बेटे को मिलता है , उसका भी आधा हिस्सा बेटी को मिलता है। आजादी के बाद हिंदुओं के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 बनाया गया। जबकि मुसलमानों के लिए कोई नया कानून नहीं बनाया गया।
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