शुक्रवार को इंदौर शहर के कर सलाहकारों ने नए सिस्टम पर चर्चा करते हुए कहा कि इसे लागू तो शुरुआत से ही होना था लेकिन सात साल बाद सिस्टम लागू हुआ है। आजमाने के बाद इसी खूबियां और खामियां बेहतर तरीके से समझ आ सकेगी।
By Lokesh Solanki
Publish Date: Fri, 25 Oct 2024 09:07:44 PM (IST)
Updated Date: Fri, 25 Oct 2024 09:50:13 PM (IST)
HighLights
- जीएसटी कॉमन पोर्टल पर इस नए सिस्टम को लागू किया गया है।
- इसका नाम इनवाइस मैनेजमेंट सिस्टम (आईएमएस) दिया गया है।
- करदाताओं को उपलब्ध आईटीसी निर्धारित करने में मदद मिलेगी।
नईदुनिया प्रतिनिधि,इंदौर। गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में अब हर बिल, इनवायस, चालान की आनलाइन एंट्री होगी और उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का विकल्प भी दर्ज करना होगा। 1 नवंबर से यह नई व्यवस्था लागू हो रही है। जीएसटी कॉमन पोर्टल पर इस नए सिस्टम को इनवाइस मैनेजमेंट सिस्टम (आईएमएस) के नाम से लागू किया गया है।
मप्र टैक्स ला बार एसोसिएशन ने परिचर्चा इनवाइस मैनेजमेंट सिस्टम(आईएमएस) की कार्यप्रणाली और आईटीसी पर पड़ने वाले प्रभावों का व्यावहारिक एवं प्रायोगिक विश्लेषण आयोजित की। सेवानिवृत्त सहायक आयुक्त संजय सूद और एडवोकेट अमित दवे चर्चा के सूत्रधार थे।
मुख्य वक्ता एडवोकेट अंकुर अग्रवाल और गौरव अग्रवाल ने आईएमएस को समझाते हुए कहा कि इनवाइस मैनेजमेंट सिस्टम जीएसटी सिस्टम में एक सुविधा है। इसमें आपूर्तिकर्ता द्वारा जीएसटीआर-1,1ए,आइएफएफ में सहेजे गए इनवाइस और रिकार्ड को प्राप्तकर्ता द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकेगा।
करदाताओं को मिलेगा यह फायदा
- एडवोकेट गौरव नीमा ने कहा कि करदाताओं को उपलब्ध आईटीसी निर्धारित करने में आईएमएस महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- यह सुनिश्चित करेगा कि केवल वैध और सत्यापित आईटीसी ही ले पाएगा, इससे त्रुटियों और धोखाधड़ी के मामले कम होंगे।
- मप्र टैक्स लॉ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट अश्विन लखोटिया द्वारा कहा गया कि अब भी इसमें कई कमियां है। आईएमएस में सप्लायर एवं रिसीवर दोनों को संशोधन का विकल्प मिलना चाहिए।
- इसका उपयोग करने पर ही इससे संबंधित कमियां सामने आयेगी। वरिष्ठ कर सलाहकार संतोष मोलासरिया, सुभाष बाफना, केदार हेडा, एके गौर, अमर माहेश्वरी ने चर्चा में हिस्सा लिया।
नई व्यवस्था में यह होगा
- आपूर्ति कर्ता अपने जीएसटीआर-वन में मूल चालान या रिकार्ड फाइल करेंगे।
- प्राप्तकर्ता को आइएमएस में ये उपलब्ध होंगे। इसके बाद प्राप्तकर्ता इन बिलों-चालानों पर कार्रवाई करेंगे।
- इसमें तीन तरीके से प्राप्तकर्ता को कार्रवाई करना होगी। या तो वे उसे स्वीकार करेंगे।
- आइएमएस में स्वीकार करने पर ऐसे बिल आइटीसी उपलब्ध वाले अनुभाग का हिस्सा बन जाएंगे और इनका आइटीसी हासिल करने के लिए रिटर्न फार्म थ्री-बी स्वत: भर जाएगा।
- दूसरी स्थिति में जिन बिलों को अस्वीकार किया जाएगा वे अस्वीकृत अनुभाग में आ जाएंगे।
- ये आइटीसी का हिस्सा नहीं बन सकेंगे। इसके साथ रिकार्ड को लंबित श्रेणी में रखा जा सकेगा।
- ऐसे रिकार्ड आइएमएस डेशबोर्ड पर दिखेंगे लेकिन रिटर्न फार्म 2-बी या 3-बी का हिस्सा नहीं बनेंगे। जब तक कि इन्हें स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया जाता।
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