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एमपी में नहीं शुरू होगा सड़क परिवहन निगम: ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी बनेगी; 20 सरकारी कंपनियों के हवाले होगा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम – Madhya Pradesh News

मध्यप्रदेश सरकार सड़क परिवहन निगम को फिर से शुरू करने के बजाय अब नई व्यवस्था बनाने जा रही है। सरकार ने तय किया है कि एक ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी बनाई जाएगी। जिसके तहत 20 सरकारी कंपनियां प्रदेश की परिवहन व्यवस्था का जिम्मा संभालेंगी। ये कंपनियां फिलहाल शहर

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नई व्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ एक जिले से दूसरे जिले के बीच बस ऑपरेट का जिम्मा भी इन कंपनियों के पास होगा। बसों का रूट सरकार तय करेगी, लेकिन संचालन प्राइवेट ऑपरेटर करेंगे। एक हफ्ते पहले प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन के सामने नई व्यवस्था का प्रेजेंटेशन हो चुका है।

दरअसल, इसी साल जून के महीने में कैबिनेट बैठक के दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए चर्चा हुई थी। इस बैठक में सड़क परिवहन निगम को फिर से शुरू करने की भी बात उठी थी। सीएम डॉ. मोहन यादव ने परिवहन विभाग से प्रस्ताव मांगा था। अब ये प्रस्ताव तैयार हो चुका है।

प्रस्ताव के तहत ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के गठन का फैसला हुआ है। यह अथॉरिटी मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन की तरह काम करेगी। सड़क परिवहन निगम को फिर से शुरू करने के बजाय ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के गठन से किस तरह से ट्रांसपोर्ट सिस्टम दुरुस्त होगा, आम लोगों को क्या फायदा मिलेगा, इसे लेकर क्या कहते हैं निगम के पुराने कर्मचारी और प्राइवेट बस ऑपरेटर्स। पढ़िए ये रिपोर्ट

4 पॉइंट्स में जानिए कैसी होगी नई व्यवस्था, क्या फायदा मिलेगा

1. ट्रांसपोर्ट स्पेशल पर्पज व्हीकल का दायरा बढ़ाने की तैयारी

मप्र में इस समय 20 कंपनियां ट्रांसपोर्ट स्पेशल पर्पज व्हीकल के तौर पर काम कर रही है। स्पेशल पर्पज व्हीकल का मतलब होता है एक अलग से कानूनी इकाई जो किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुख्य कंपनी या विभाग से अलग हटकर बनाई जाती है। कंपनी एक्ट 2013 के तहत इन कंपनियों का गठन किया गया है।

नगरीय निकायों के पास इनके ऑपरेशन का जिम्मा है। इन 20 में से 16 कंपनियां ही अभी वर्किंग स्टेज में हैं। ये शहरों के भीतर सिटी बस के तौर पर और शहरों के बाहर सूत्र सेवा के जरिए परिवहन व्यवस्था का जिम्मा संभाल रही है। इन रूट पर अभी डीजल बसें चल रही हैं, जिन्हें ईवी( इलेक्ट्रिक व्हीकल) में बदला जाएगा।

परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इनके रूट निर्धारित करने के लिए नए सिरे से सर्वे किया जाएगा। साथ ही जो कंपनियां बंद हैं, उन्हें फिर से शुरू किया जाएगा। यह जिम्मेदारी नगरीय विकास एवं आवास विभाग को सौंपी गई है।

2. उज्जैन को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना

मुख्य सचिव के सामने जो प्रेजेंटेशन दिया गया गया है उसमें बताया गया कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम का पायलट प्रोजेक्ट उज्जैन से शुरू किया जाएगा। दरअसल, उज्जैन में साल 2008 में जवाहर लाल नेहरू अर्बन मिशन के तहत उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड कंपनी का गठन किया गया था। पिछले महीने तक यहां सिर्फ 6 सिटी बसें ही संचालित हो रही थी। अब ये भी बंद हो चुकी है।

अब इस कंपनी को नए सिरे से अपग्रेड किया जाएगा। सरकार नई बसों को खरीदेगी। इन्हें उज्जैन शहर के अलावा बड़नगर, महिदपुर और तराना तक चलाए जाने की योजना है। प्रेजेंटेशन में ये भी बताया गया कि अभी 16 कंपनियां सूत्र सेवा के जरिए शहर के बाहर 383 बसों का संचालन कर रही है।

अब ग्रामीण इलाकों की कनेक्टिविटी के लिए हर कंपनी अपना रूट तैयार करेगी। इन रूट पर कितने यात्री हर रोज सफर करते हैं, मौजूदा किराया कितना है, कंपनी बस चलाएगी कि उसे कितना खर्च आएगा। रूट पर कितनी बसें चलाना फायदेमंद होगा? इसका पूरा प्रस्ताव तैयार किया जाएगा।

3. सरकार बसों को खरीदेगी, ऑपरेटर चलाएंगे

इलेक्ट्रिक बसों को खरीदने के लिए सरकार वीजीएफ फंड का इस्तेमाल करेगी। वायबिलिटी गैप फंडिग (वीजीएफ) भारत सरकार की एक योजना है जो इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों का विभाग इस योजना का संचालन करता है।

कंपनियां बसों को खरीदेगी, जबकि इनके संचालन का जिम्मा ऑपरेटर्स का होगा। हर रूट के लिए टेंडर जारी किए जाएंगे। जिन रूट्स पर प्राइवेट बसें नहीं चल रही हैं पहले वहां बसें चलाई जाएंगी। कंपनियों के संचालन के लिए UMTA यानी अर्बन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का गठन किया जाेगा। यह अथॉरिटी मेट्रो रेल कार्पोरेशन की तर्ज पर काम करेगी। इसका अध्यक्ष परिवहन मंत्री या एसीएस ट्रांसपोर्ट को बनाया जा सकता है।

4. पहले चरण में 300 इलेक्ट्रिक बस चलाने की तैयारी

सूत्रों के मुताबिक फर्स्ट फेस में 300 इलेक्ट्रिक बसें चलाने की योजना है। इसमें तीन कैटेगरी की बसें शामिल होंगी। इसके लिए केंद्र सरकार से 30% सब्सिडी मिलेगी। प्राइवेट बसों की तुलना में किराया कम रहे, इसलिए राज्य सरकार भी बसों का संचालन करने वाली कंपनी को सब्सिडी देगी।

साथ ही केंद्र सरकार की पीएम ई-बस योजना के तहत प्रदेश के छह शहरों में 552 इलेक्ट्रिक बसें चलेंगी। इसमें से इंदौर को 150, भोपाल को 100, ग्वालियर को 70, जबलपुर- उज्जैन में 100-100 और सागर को 32 ई-बसें मिलेंगी। 25% बसों में 12 मीटर और 9 मीटर की बसों के लिए व्हील-चेयर चढ़ाने के लिए हाइड्रोलिक लिफ्ट/रैंप सिस्टम भी होगा। इन बसों को अप्रैल 2025 तक सड़क पर उतारने का प्लान है।

अब जानिए क्यों शुरू नहीं हो पाएगा सड़क परिवहन निगम

कोर्ट केसेस में उलझा निगम का मामला

सड़क परिवहन निगम को 2005 में बंद किया गया था, लेकिन तकनीकी रूप से इसे बंद करने का गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया था। इसके लिए केंद्रीय परिवहन एवं श्रम मंत्रालय की सहमति नहीं ली गई थी। मप्र में अभी इसके 167 कर्मचारी भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में काम कर रहे हैं।

इनमें से 140 प्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभागों में कार्यरत हैं। परिवहन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि राज्य सड़क परिवहन निगम को फिर से शुरू करने में कानूनी अड़चनें हैं। कई मामले कोर्ट में लंबित है। जब तक इन मामलों में फैसला नहीं आता तब तक निगम को शुरू करने का निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

दरअसल, सड़क परिवहन निगम को बंद करने की कवायद 1990 के बाद से ही शुरू हो गई थी। निगम के संचालन में 29.5% राशि केंद्र और 70.5% राशि राज्य सरकार द्वारा दी जाती थी। इसमें से राज्य ने अपना हिस्सा देना बंद कर दिया था।

तीन विकल्प रखे गए थे

सड़क परिवहन निगम को बंद करते समय तीन विकल्प भी रखे गए थे। इनमें सेटअप छोटा करने पर 900 करोड़ रुपए, दोबारा पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए 1400 करोड़ रुपए और पूरी तरह बंद करने पर 1600 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। तब सरकार ने तीसरा विकल्प चुना था। सबसे ज्यादा खर्च कर्मचारियों को वीआरएस की एकमुश्त राशि देने पर किया गया था।

सपनि के पास 29 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी

सपनि (सड़क परिवहन निगम) के पास 29 हजार करोड़ प्रॉपर्टी है, जिसे कॉमर्शियल उपयोग के लिए निजी कंपनियों को सौंपा जा सकता है। निगम भले ही बंद हो गया है, लेकिन उसकी संपत्ति अभी भी प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में मौजूद है। यही कारण है कि सरकार पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर को अपडेट करते हुए प्रदेश के यात्रियों के बेहतर यातायात उपलब्ध कराने की कवायद कर रही है।

सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में जितने भी बस स्टैंड हैं, उन्हें भी पीपीपी मॉडल पर देने पर विचार किया गया है। हालांकि अभी सहमति बनना बाकी है। जिस कंपनी को बस स्टैंड देंगे, वह उसके कुछ हिस्से का कॉमर्शियल उपयोग कर सकेगी।

कर्मचारी बोले- पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जिम्मा कंपनियों को देना अव्यवहारिक

सरकार की नई परिवहन व्यवस्था को लेकर सड़क परिवहन निगम के पूर्व कर्मचारी और प्राइवेट ऑपरेटर्स का कहना है कि इससे आम जनता को नुकसान होगा। यात्री सेवा परिषद् के अध्यक्ष और सड़क परिवहन निगम के पूर्व कर्मचारी श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि सरकार यदि सड़क परिवहन निगम को फिर से शुरू करती हैं तो यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिलेगी।

इसके बजाय यदि कंपनियों को बसों के संचालन का जिम्मा सौंपा गया तो आम लोगों के साथ धोखा होगा। वहीं प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा का कहना है कि जब से सड़क परिवहन निगम बंद हुआ उसके बाद से लोक परिवहन का जिम्मा प्राइवेट ऑपरेटर्स ही संभाल रहे हैं।

यदि सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में कुछ बदलाव करना है तो पुराने और अनुभवी मोटर मालिकों से बात करना चाहिए ताकि लोगों को सस्ती और सुलभ परिवहन सेवा मिल सकें।

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