अपनों की पहचान विपरीत परिस्थिति में होती है। जो हमारा साथ दे, हमारी पीड़ा को समझे, वह अपना, भले ही वह सगा-संबंधी न हो। पर यदि कोई हमें बार-बार प्रताड़ित करे, हमारे अधिकारों का हनन करे तो वह हमारा कितना भी सगा-संबंधी हो, या तो हमें उसे त्याग देना चाहिए
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में सोमवार को यह बात कही।
जब अर्जुन के हाथ कांपने लगे और धनुष हाथों से खिसकने लगा…
महाराजश्री ने श्रीमद् भागवतजी का एक प्रसंग सुनाया- गीता में भगवान श्रीकृ्ष्ण दोनों सेनाओं के बीच में जब रथ ले जाते हैं, तो अर्जुन अपने सगे-संबंधी, गुरु, दादा, ताऊ आदि को देखकर मोहवश कांपने लगता है। उसका धनुष हाथों से खिसकने लगता है। वह निष्क्रिय अवस्था में होकर श्रीकृष्ण के हाथ जोड़कर कहता है आप मेरा मार्ग प्रशस्त कीजिए, कि मैं अपने सगे-संबंधियों और बड़ों के साथ कैसे युद्ध करूं। तब श्रीकृष्ण भगवान ने कहा यदि कोई अत्यधिक प्रताड़ित कर रहा हो, अपने अधिकार छीन रहा हो तो चाहे वह कोई भी हो, उसे दंडित करना ही चाहिए, क्योंकि वह अधर्म के साथ खड़ा है। उससे और अधिक अधर्म होगा, और वह पाप का भागीदार हो जाएगा। जब वह हमें कुछ नहीं समझ रहा है तो हम क्यों समझें?
संसार मिथ्या, यहां कोई किसी का नहीं
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि अभिमन्यु के मारे जाने की खबर आने पर अर्जुन दु:खी हो गया, उसके मरणोपरांत भगवान ने अर्जुन को ले जाकर अभिमन्यु से मिलवा दिया। अभिमन्यु ने अर्जुन को पहचानने तक से इंकार कर दिया। अर्जुन ने कहा मैं तुम्हारा पिता हूं। अभिमन्यु बोला- न कोई किसी का पिता होता है न पुत्र होता है। मैं न जाने कितनी बार आपका पिता रहा होऊंगा और आप मेरे पुत्र। संसार मिथ्या है, यहां कोई किसी का नहीं है। दुष्ट व्यक्ति सज्जन मनुष्य की सरलता, विनम्रता और दया को कायरता समझ लेता है। जब कोई बहुत अधिक प्रताड़ित करने लग जाए तो उस पर दया नहीं करना चाहिए। फिर चाहे वह किसी भी प्रकार का संबंध रखता हो।
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