मप्र के पुलिस थानों में बन रहे मंदिरों पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रदेश के डीजीपी और मुख्य सचिव समेत जिम्मेदारों को नोटिस दिया है। उन्हें अगली सुनवाई में इसका जवाब देना है। कोर्ट ने निर्माणाधीन मंदिरों पर रोक लगाई है, लेकिन जो मंदिर पहले
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दैनिक भास्कर ने जब इस मामले की पड़ताल की तो पाया कि प्रदेश में 1159 थाने हैं उनमें से 800 थानों में मंदिर हैं। खास बात ये है कि ज्यादातर थानों में हनुमान जी के मंदिर है। कुछ थाने तो ऐसे हैं जहां अंग्रेजों के शासनकाल से मंदिर बने हैं। आखिरकार थानों में मंदिर बनाने की पीछे क्या वजह है, क्या कहता है कानून? इसे लेकर भास्कर ने रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों और कानून के जानकारों से बात की। पढ़िए रिपोर्ट
अब जानिए प्रदेश के किन शहरों में कितने थानों में मंदिर हाईकोर्ट के नोटिस और नए निर्माण पर रोक लगाने के आदेश के बाद दैनिक भास्कर ने प्रदेश के सभी 55 जिलों के थानों की पड़ताल की। मप्र में 1159 थाने हैं, इनमें अजाक, ट्रैफिक, महिला और जीआरपी थाने शामिल है। इनमें से 800 थाने में मंदिर बने हैं। ऐसे थाने भी शामिल हैं, जो पांच साल पहले बने हैं और इनमें भी मंदिर बनाए गए हैं।
दतिया में चल रहा निर्माण रोका गया
दतिया जिले में 25 थाने हैं। इसमें पांच थानों में बने मंदिर 100 साल सभी अधिक प्राचीन हैं। 20 थानों में मंदिर बने हैं। कोतवाली में नया मंदिर बनाया जा रहा था। पर हाईकोर्ट के नोटिस के बाद वहां निर्माण कार्य बंद कर दिया गया है। दतिया के सिविल लाइंस थाने में तो हर शनिवार को बड़े कार्यक्रम का आयोजन होता है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद दतिया के थाने में मंदिर का काम रोक दिया गया है।
कई थानों में अंग्रेजों के समय बने हैं हनुमान मंदिर
प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे थाने भी हैं, जहां अंग्रेजों के समय से मंदिर बने हैं। जबलपुर में ही कोतवाली थाना परिसर में बना हनुमान मंदिर 150 वर्ष पुराना है। तब यहां अंग्रेजी शासन था। इस मंदिर का निर्माण अंग्रेजी शासन काल में सैनिक पद पर रहने वाले पंडित नाथूराम व्यास द्वारा कराई गई थी। इसी तरह मंडला, कटनी, रीवा, सागर, बालाघाट, बैतूल में भी कई थाने हैं, जो अंग्रेजों के समय के हैं। रिटायर्ड पुलिस अधिकारी मदन मोहन समर कहते हैं कि ब्रिटिश सरकार की सैन्य और पुलिस छावनी में मंदिर और दूसरे धार्मिक स्थल बनाए जाने की परिपाटी शुरू हुई थी। थानों में जो मंदिर बने हैं वह ज्यादातर आवासीय परिसर में बने हैं।
बायीं ओर जबलपुर के कोतवाली में 150 साल पहले हनुमान मंदिर की प्रतिमा। दायीं ओर भोपाल के एमपी नगर थाने में विराजित भगवान हनुमान की प्रतिमा।
पुलिस अधिकारी बोले- हनुमान जी दुनिया के पहले इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर समर कहते हैं कि हनुमान जी के मंदिर बनाने के पीछे तर्क ये है कि पहले थाने आबादी से दूर हुआ करते थे। थानों में बल भी ज्यादा नहीं होता था। न तो बिजली की व्यवस्था होती थी। तब डर दूर करने के लिए हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया जाता था। दूसरा कारण वे बताते हैं कि हनुमान जी को दुनिया का पहला इन्वेस्टिगेशन अधिकारी माना जाता है। उन्होंने लंका जाकर माता सीता का पता लगाया था। उनके पास माता सीता की अंगूठी के रूप में केवल एक क्लू था। इसके बाद उन्होंने अपने बुद्धि-बल और विवेक से कार्य को पूरा किया था।
मंदिरों का निर्माण और मेंटेनेंस कैसे होता है
थाना परिसर में मंदिर बनाने के लिए सरकार की तरफ से कोई गाइडलाइन नहीं है, तो फिर मंदिरों का निर्माण कैसे होता है और निर्माण होने के बाद इसका मेंटेनेंस कौन करता है? रिटायर्ड आईजी बीएस चौहान कहते हैं कि थाना परिसर में बनने वाले मंदिरों का निर्माण जनसहयोग से किया जाता है। इसमें पुलिसकर्मी भी सहयोग राशि देते हैं। मंदिर बनने के बाद रोजाना पूजा अर्चना के लिए पंडितजी आते हैं। मंदिर में जो चढ़ावा आता है वो पंडितजी को दिया जाता है। मंदिर में सालाना होने वाले भंडारे का आयोजन भी जनसहयोग से किया जाता है। बीएस चौहान कहते हैं कि मैंने जब पुलिस सेवा जॉइन की थी तो गांव के कई बड़े-बड़े विवाद थाना परिसर में बने हनुमान मंदिर की चौखट पर सुलझ जाया करते थे।
याचिकाकर्ता के वकील बोले- केवल मंदिर क्यों सभी धार्मिक स्थल बने वकील सतीश वर्मा ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ में याचिका लगाई थी। तब हाईकोर्ट ने इसे स्वत: संज्ञान में लेते हुए पूरे प्रदेश में सार्वजनिक स्थलों पर बने धार्मिक निर्माण को हटाने के आदेश दिए थे। अकेले जबलपुर में 600 से अधिक धार्मिक स्थल हटाए गए थे। यहीं नहीं जबलपुर में जब नए जिला कोर्ट का भवन बना तो उसके गेट के पास एक मंदिर का भी निर्माण कराया गया था। तब भी अधिवक्ता सतीश वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में अपनी बात रखी। तब हाईकोर्ट के आदेश पर ये निर्माण तोड़ दिया गया था। थानों में बने मंदिरों को लेकर सतीश वर्मा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इस तरह के निर्माण अवैध हैं और इसे हटाना ही होगा। वह सवाल करते हैं कि क्या थानेदारों का काम परिसर में मंदिर बनवाना ही रह गया है। यदि धार्मिक स्थल ही बनाना है, तो फिर मंदिर ही क्यों? गुरुद्वारा, मस्जिद, चर्च क्यों नहीं बनाए जाते।
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