मध्य प्रदेश सरकार आयुष्मान योजना के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए एक नई नीति बना रही है। इसके तहत, यदि अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं, तो निजी डॉक्टरों को इलाज के लिए बुलाया जाएगा। इस योजना का लाभ भर्ती मरीजों को मिलेगा और भविष्य में इसे ओपीडी मरीजों तक बढ़ाने की योजना है।
By Neeraj Pandey
Publish Date: Sat, 09 Nov 2024 07:20:03 PM (IST)
Updated Date: Sat, 09 Nov 2024 07:20:03 PM (IST)
HighLights
- आयुष्मान धारक मरीज निजी अस्पतालों में जाने को नहीं होंगे मजबूर
- विशेषज्ञों की कमी को पूरा करने के लिए बुलाए जाएंगे निजी डॉक्टर
- प्रदेश में 400 से अधिक चिकित्सा विशेषज्ञों के पद रिक्त, मिलेगी राहत
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल : सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक में आयुष्मान योजना के अंतर्गत आने वाले अधिकतर रोगियों का उपचार अब वहीं पर हो जाएगा। उन्हें मेडिकल कालेज या दूसरे बड़े अस्पताल में रेफर करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके लिए राज्य सरकार नीति बना रही है, जिसमें किसी विशेषज्ञता के डाक्टर नहीं होने पर निजी डाक्टर को बुलाया जा सकेगा।
अभी भर्ती होने वाले मरीजों को मिलेगी सुविधा
अभी यह सुविधा मात्र भर्ती होने वाले मरीजों को मिल पाएगी। बाद में ओपीडी मरीजों के लिए भी इसका विस्तार किया जा सकता है। निजी डाक्टरों को उपचार के बदले प्रति विजिट के हिसाब से राशि दी जाएगी। यह राशि आयुष्मान भारत योजना के पैकेज से उपलब्ध कराई जाएगी। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सिविल अस्पताल और जिला अस्पतालों के रोगियों को इसका लाभ मिल सकेगा। प्रदेश की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या आयुष्मान योजना की परिधि में है, जिन्हें इसका लाभ मिल सकेगा।
अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी
बता दें कि प्रदेश में आधे से अधिक सिविल अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सभी विषय के विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में मरीज को भर्ती ही नहीं किया जाता। उदाहरण के तौर पर हड्डी का डॉक्टर है, लेकिन एनेस्थीसिया का नहीं है तो सर्जरी नहीं हो सकती। अब एनेस्थीसिया का निजी विशेषज्ञ बुलाया जा सकेगा। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पांच तरह के विशेषज्ञ होने चाहिए।
कई पद हैं रिक्त
मेडिसिन, सर्जरी, स्त्री एवं प्रसूति रोग, शिशु रोग और एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ मिलाकर कुल 826 पद हैं। इनमें 400 से अधिक रिक्त हैं। सर्जरी के साथ ही कई बीमारियों में एक साथ दो से तीन विषय के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, पर एक के भी नहीं होने से मरीज को रेफर करना पड़ जाता है।
एक सर्जरी के लिए कई तरह के विशेषज्ञ डाक्टरों की आवश्यकता
सभी सीएचसी में सीजर डिलीवरी की सुविधा होनी चाहिए। इसके लिए स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ और एनेस्थीसिया विशेषज्ञ होना जरूरी है। किसी एक के भी नहीं होने से सीजर डिलीवरी नहीं हो पाती।
स्थिति यह है कि 52 जिला अस्पताल, 161 सिविल अस्पताल और 348 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मिलाकर 140 अस्पतालों में ही सीजर डिलीवरी की सुविधा है। देशभर में मप्र की शिशु मृत्युदर सबसे अधिक होने के बाद यह स्थिति है। संसाधन होने के बाद भी विशेषज्ञ नहीं होने से सीजर डिलीवरी नहीं हो पा रही है।
हमारी कोशिश है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जिला अस्पतालों की तरह सुविधाएं मिलें। इन अस्पतालों में जांचों और दवाओं की संख्या भी बढ़ाई गई है। ऐसा प्रयास कर रहे हैं कि बड़ी मजबूरी न हो तो उन्हें रेफर नहीं करना पड़े।
राजेंद्र शुक्ल, उप मुख्यमंत्री, मप्र
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