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पूर्व गृहमंत्री के फोन टैपिंग के आरोप में कितना दम: जांच एजेंसियां कैसे सुनती हैं कॉल, कमलनाथ–शिवराज सरकार में भी लग चुके आरोप – Madhya Pradesh News

‘मुझे मत समझाइए, मैं गृह मंत्री रहा हूं। मुझे सब पता है। ये बताइए कि किसकी अनुमति से सीडीआर निकाली जा रही है।’ प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के सामने मप्र के पूर्व गृहमंत्री और बीजेपी विधायक भूपेंद्र सिंह ने जब ये कहा तो सागर एसपी और कलेक्टर

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दरअसल, सागर की जिला योजना समिति की बैठक में भूपेंद्र सिंह ने आरोप लगाए कि कुछ स्थानीय पुलिस अधिकारी बिना एसपी और आईजी की इजाजत के लोगों के मोबाइल की कॉल डिटेल रिपोर्ट(CDR) निकालकर उन्हें धमका दे रहे हैं। हालांकि सिंह ने ये नहीं बताया कि किन लोगों की सीडीआर निकाली गई और उनसे उनके क्या संबंध है।

भूपेंद्र सिंह के इन आरोपों के बाद डिप्टी सीएम ने मामले की जांच के आदेश दिए तो पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने कहा कि पूर्व गृह मंत्री ही इस प्रदेश में असुरक्षित हैं तो संदेश साफ है कि यहां माफिया का राज है।बहरहाल, इस मामले के बाद एमपी में राजनेताओं व उनसे जुड़े लोगों के फोन टैप और उनकी कॉल डिटेल्स निकालने का मामला फिर चर्चा में है।

क्या किसी के फोन टैप करना या उसकी कॉल डिटेल्स निकालना इतना आसान है? पुलिस या कोई भी जांच एजेंसी कब किसके फोन टैप कर सकती है? कितने दिन तक कर सकती है? कैसे करती है? कानून में इसके क्या प्रावधान है? इन तमाम सवालों की पड़ताल इस रिपोर्ट में….

भूपेंद्र सिंह ने किसी का नाम नहीं लिया

खुरई से विधायक भूपेंद्र सिंह शिवराज सरकार में पावरफुल मिनिस्टर रहे हैं। मोहन सरकार में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। जिला योजना समिति की बैठक में ये आरोप उन्होंने लगाए जरूर, मगर किसी का नाम नहीं लिया। ये भी नहीं बताया कि जिन लोगों ने उन्हें ऐसी शिकायतें की उनसे उनके क्या संबंध है।

भास्कर ने जब भूपेंद्र सिंह के इस सवाल पर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह से बात की तो वे बोले कि मुझे नहीं मालूम उनका इशारा किसकी ओर है? इसका जवाब तो खुद भूपेंद्र सिंह ही दे सकते हैं। वैसे भी किसी का फोन टैप कराना या सीडीआर निकालना कोई आसान काम नहीं है।

अब जानिए इससे पहले कब-कब सामने आए फोन टैपिंग के मामले

फोन टैपिंग मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद एडवोकेट विवेक तन्खा के करीबी प्रशांत पाण्डे की ओर से साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि राज्य सरकार एक अमेरिकन एजेंसी की मदद से फोन टैपिंग कर रही है। इस मामले में स्पंदन द आईटी पल्स कंपनी का नाम भी लिया गया था।

भास्कर से बात करते हुए एडवोकेट तन्खा कहते हैं कि हमने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कैसे एक एजेंसी के सब्सक्राइबर बनकर तत्कालीन सरकार ने बिना किसी मंजूरी के लोगों के फोन टैप कराए। ये याचिका अब भी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

तन्खा कहते हैं कि अब बदलते दौर में फोन टैपिंग के तरीके भी बदल गए हैं। इजराइल बेस्ड पेगासस भी इसी का उदाहरण है। अब ऐसी तकनीक भी हैं, जिसमें एक इंस्ट्रूमेंट 6 किलोमीटर या 10 किलोमीटर के दायरे में कोई भी फोन सर्विलांस कर सकती है।

कमलनाथ सरकार पर अपने ही विधायक-मंत्रियों की जासूसी के आरोप

मप्र में 15 साल बाद 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी। ये पूर्ण बहुमत वाली सरकार नहीं थी, बल्कि निर्दलीय और दूसरे दलों के विधायकों के समर्थन से मिलकर बनी थी। सरकार पर हर वक्त बहुमत साबित करने के तलवार लटकी रहती थी।

साल 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद कमलनाथ सरकार को हॉर्स ट्रेडिंग (विधायकों की खरीद-फरोख्त) का डर सताया था। उस वक्त बीजेपी की तरफ से आरोप लगाए गए थे कि कमलनाथ सरकार मंत्री और विधायकों की गतिविधियों की निगरानी कर रही है। इसके लिए इंटेलिजेंस विंग का सहारा लिया गया है।

इसके बाद भी कमलनाथ सरकार बच नहीं सकी और एक साल बाद 2020 में सिंधिया समर्थक विधायकों के पाला बदलने से सरकार गिर गई। हालांकि, कमलनाथ सरकार में गृहमंत्री रहे बाला बच्चन इस बात से इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि विपक्ष तो ऐसे आरोप लगाता रहता है, लेकिन ये साबित नहीं हुए थे।

अब समझिए कैसे होती है फोन टैपिंग

इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 के तहत फोन टैपिंग की जाती है। केंद्र या राज्य सरकार को लगता है कि पब्लिक सेफ्टी या देश की संप्रुभता पर किसी तरह का खतरा है या फिर किसी दुर्घटना को रोकने के लिए टैपिंग जरूरी है, तब सरकार इजाजत देती है। केंद्र में केंद्रीय गृह सचिव और राज्यों में फोन टैपिंग की मंजूरी देने का अधिकार राज्यों के गृह सचिवों को है। इसकी पूरी प्रक्रिया निर्धारित है।

  • जिलों में आईजी रैंक के अधिकारी के मार्फत ही रिक्वेस्ट भेजी जाती है।
  • ये रिक्वेस्ट पीएचक्यू में एडीजी इंटेलिजेंस को लूप में रखते हुए टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर तक पहुंचती है।
  • 7 दिन से ज्यादा फोन टैप करने के लिए गृह सचिव की अतिरिक्त मंजूरी लगती है। ये पूरा ऑपरेशन प्रोसेस एक सिक्योर्ड पोर्टल पर ही होता है।
  • इसमें किसी इंसान का दखल नहीं होता। जिस नंबर की रिक्वेस्ट टेलीकॉम पोर्टल पर पहुंचती है, वो ऑटोमेटेड तरीके से उसे सर्विलांस करके उसकी रिकॉर्डिंग उसी पोर्टल पर अपलोड करता है।
  • इसे सुनने के लिए भी निर्धारित लॉगिन, पासवर्ड की जरूरत होती है।

अपराधियों के मामले में कैसे होती है ये प्रोसेस

  • संदिग्ध व्यक्ति के नंबर की फोन टैपिंग की रिक्वेस्ट: जांच एजेंसियां सर्विस प्रोवाइडर को रिक्वेस्ट भेजती हैं। इसका पूरा सिक्योर्ड सिस्टम है। इसका सर्वर भी अलग है। रिक्वेस्ट भेजने से लेकर फोन टैप के रिकॉर्ड सेव होने के सर्वर अलग होते हैं। इसमें एक्सेस उसी अधिकारी को होता है, जिसने रिक्वेस्ट भेजी है।
  • बातचीत, टैक्स्ट मैसेज की निगरानी:पुलिस टैप किए गए बातों की निगरानी करती है। इसमें फोन कॉल्स, टैक्स्ट मैसेज और कभी कभी ऐप्स से प्राप्त डेटा भी शामिल होते हैं। इसका पूरा ट्रांसक्रिप्शन तैयार होता है।
  • फोन कॉल्स और मैसेज का एनालिसिस:फोन कॉल्स और मैसेज के डेटा का विश्लेषण, जांच से संबंधित साक्ष्य के लिए किया जाता है। यदि ये जानकारी आरोपों की ओर ले जाती है तो इसका उपयोग कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है।

कैसे निकाली जाती है सीडीआर

किसी संदिग्ध व्यक्ति की कॉल डिटेल्स निकालने के लिए भी संबंधित जिले के एसपी के अधिकृत ईमेल से रिक्वेस्ट भेजी जाती है। ये उसी निर्धारित पोर्टल पर अपलोड होती है। इसका पूरा डेटा बेस तैयार होता है कि किस व्यक्ति की कॉल डिटेल्स इससे पहले कब किस अपराध में निकाली गई। यही प्रोसेस किसी संदिग्ध व्यक्ति की टावर लोकेशन के लिए भी निर्धारित है।

अवैध फोन टैपिंग पर 3 साल जेल का प्रावधान

  • यदि किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि अवैध रूप से उसका फोन टैप किया गया है तो वह भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 26(बी) के तहत ऐसा करने वाले व्यक्ति या कंपनी के खिलाफ कोर्ट में जा सकता है। इसमें 3 साल की सजा का प्रावधान है।
  • गैरकानूनी रूप से फोन टैपिंग राइट टू प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है। इस संबंध में मानवाधिकार आयोग के पास शिकायत की जा सकती है।
  • यदि व्यक्ति को पता चल जाए कि उसके फोन गैरकानूनी तरीके से टैप हो रहे हैं तो वह पास के पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कर सकता है।
  • इतना ही नहीं, पीड़ित व्यक्ति फोन टैप करने वाले के खिलाफ इंडियन टेलीग्राफिक एक्ट के सेक्शन 26 (बी) के तहत कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर सकता है। इसके तहत गैरकानूनी टैपिंग करने वाले को तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।
  • अधिकृत तौर पर फोन टैपिंग करने पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है यदि रिकॉर्ड किए गए डेटा को गलत तरीके से शेयर किया जाता है।

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