सिद्धों की आराधना के बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता है। जब तक व्यक्ति का शरीर पवित्र नहीं होता तब तक विशुद्धि नहीं बढ़ सकती है। शरीर में कोई रोग नहीं होना चाहिए। शरीर स्वस्थ होना चाहिए। कोई जख्म घाव नहीं होना चाहिए। द्रव्य शुद्ध नहीं तो भाव शुद्ध नह
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परिणाम शुद्धि के बिना आत्मा शुद्ध नहीं होती और आत्मा शुद्धि के बिना सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है। पवित्र सिद्धि की साधना के बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है। यह विचार विधानाचार्य अजित कुमार शास्त्री ने मंगलवार को नई सड़क स्थित दिगंबर जैसवाल जैन धर्मशाला में आयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
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