हालांकि ये मकड़ियां तो बिलकुल नहीं हैं। जब मंगल ग्रह पर जीवन ही नहीं है, तो वहां मकड़ियां कहां से आएंगी। ईएसए के अनुसार, ये छोटे और डार्क कलर के ऐसे फीचर्स हैं, जो तब बनते हैं जब सर्दियों के महीनों में जमने वाले कार्बन डाईऑक्साइड पर सूर्य की रोशनी पड़ती है।
रिपोर्ट के अनुसार, सूर्य की रोशनी से बर्फीली कार्बन डाइऑक्साइड, गैस में बदल जाती है। इस दौरान तीन फीट तक मोटी बर्फ विस्फोट के साथ फटती है और धूल के साथ निकलते हुए सतह पर जम जाती है, जिससे यह धब्बे बनते हैं।
तस्वीर में ये काले धब्बे आपको छोटे दिख रहे होंगे, लेकिन असल में इनका साइज बड़ा है। सबसे छोटे धब्बे 145 फीट के और सबसे बड़े आधे मील के हो सकते हैं।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, मकड़ी जैसे इस पैटर्न को साल 2020 में भी देखा गया था। तब इसे एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर ने कैप्चर किया था। साल 2016 में लॉन्च हुआ वह स्पेसक्राफ्ट मंगल ग्रह पर जीवन के संकेतों की तलाश कर रहा है। वैज्ञानिकों के लिए मंगल ग्रह हमेशा से उत्सुकता की वजह रहा है। वह मानते आए हैं कि कभी मंगल ग्रह पर जीवन हुआ करता था जो बाद में तबाह हो गया।
हालिया तस्वीर को लेकर ESA ने कहा है कि इस इलाके के निर्माण के बारे में उसे मालूम नहीं है। अनुमान है कि यहां कभी रेतीले टीले हुआ करते थे, जो बाद में पत्थरों में बदलते गए।
ESA का मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर साल 2003 में लाल ग्रह के इलाके में पहुंचा था। यह कई वर्षों से मंंगल का चक्कर लगा रहा है। इसी ऑर्बिटर ने मंगल का मैप तैयार किया। उसकी सतह पर पानी के इतिहास की जानकारी जुटाई। और भी कई काम किए।
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2024-04-26 08:10:46
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